न्याय नहीं मिला तो किसान आपस में एक दूसरे की जान ले सकते हैं
चकबंदी में तमाम खामियों के कारण जमीन के चक आवंटित नहीं हो पाए और बाद में चकबंदी भी निरस्त हो गई अब उनके अमल बरामद में निर्मल खतौनी में दर्ज ना होने से किसानों में आपस में तनाव हो गया है...
चकबंदी में तमाम खामियों के कारण जमीन के चक आवंटित नहीं हो पाए और बाद में चकबंदी भी निरस्त हो गई अब उनके अमल बरामद में निर्मल खतौनी में दर्ज ना होने से किसानों में आपस में तनाव हो गया है। किसानों ने चेतावनी दी है कि अगर उन्हें न्याय नहीं मिला तो वह या तो आत्महत्या कर लेंगे या फिर एक दूसरे के दुश्मन बन जाएंगे।
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इन किसानों ने बताया कि हम सबको ओरन गांव के रहने वाले हैं, हमारे ग्राम में चकबंदी वर्ष 72 में धारा चार (2) प्रकाशन होकर 17 जून 1961 तक चली। परंतु इन साडे 48 वर्षों में चकबंदी कतिपय कारणों बस चक आवंटित नहीं हो पाए। बाद में चकबंदी निरस्त हो गई, इन 48 वर्षों में चकबंदी में कई तरह के बदलाव हो गए तथा आकार पत्र 23 बनने के बाद हर किसान अपने अपने गाटा संख्या मे काबिज है।
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वर्तमान में चकबंदी निरस्त हो जाने के कारण पूर्व की भाँति आधार वर्षों में मूल खातेदार के नाम नई खतौनी बन गई है। 48 वर्ष बीत जाने के बाद उक्त कार्रवाई से पूरा गांव प्रभावित है हालांकि आयुक्त द्वारा यह आदेश निर्गत किए गए थे कि जिन काश्तकारों के सुलह समझौता के मुकदमे में जो अंतिम आदेश हो चुके हैं, जिनमें किसी तरह की रिट अपील आदि लंबित नहीं है उनको अमल बरामद निर्मल खतौनी में किया जाए, पर विभाग द्वारा ऐसा नहीं किया जा रहा है।
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किसानों ने कहा कि जिन काश्तकारों के आकार 23 के अनुसार अंतिम आदेश हो चुके हैं, जिनमें किसी तरह के रिवीजन नहीं है उनके अमल बरामद निर्मल खतौनी में दर्ज किया जाये था अन्यथा पूरे गांव में लड़ाई झगड़े मुकदमें तैयार होंगे, अगर ऐसा नहीं किया गया तो गांव में किसान आपस मे खून खराबा करेगेें और हम छोटे किसान मजबूरी में आत्महत्या को मजबूर होंगे। जिला जिलाधिकारी बांदा को इस आशय के दिए गए प्रार्थना पत्र के दौरान नगर पंचायत औरन के अध्यक्ष योगेश कुमार, ममता त्रिपाठी, राजेंद्र प्रसाद तिवारी, घनश्याम पांडे फूलचंद हत्यारी दर्जनों ग्रामीण शामिल रहे।