आज भी इतिहास को समेटे हुए है टीकमगढ़ के किले

इस जिले के अन्तर्गत क्षेत्र ओरछा के सामंती राज्य के भारतीय संघ के साथ अपने विलय तक हिस्सा था। ओरछा राज्य रुद्र प्रताप द्वारा....

आज भी इतिहास को समेटे हुए है टीकमगढ़ के किले

इतिहास

जिले का मुख्यालय टीकमगढ़ है। शहर का मूल नाम ‘टेहरी’ था। सन् 1783 में ओरछा के नरेश विक्रमजीत ने ओरछा से अपनी राजधानी टेहरी में स्थानांतरित की। ‘टीकम’ भगवान विष्णु का एक नाम है, उन्हीं के नाम पर इसे टीकमगढ़ कहा गया। टीकमगढ़ जिला बुंदेलखण्ड क्षेत्र का एक हिस्सा है। यह जामनी, बेतवा और धसान की एक सहायक नदी के बीच बुंदेलखण्ड पठार पर है।

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भौगोलिक स्थिति 

अक्षांश एवं देषान्तर 23॰ 45’ से 25॰ 10’ उत्तर
79॰ 45’ से 80॰ 40’ पूर्व
सीमायें- उत्तर में झाँसी 
दक्षिण में सागर
पश्चिम में ललितपुर
पूर्व में छतरपुर
प्रमुख नदी- जामनी, बेतवा

इस जिले के अन्तर्गत क्षेत्र ओरछा के सामंती राज्य के भारतीय संघ के साथ अपने विलय तक हिस्सा था। ओरछा राज्य रुद्र प्रताप द्वारा 1501 में इसे स्थापित किया गया था। विलय के बाद, यह सन् 1948 में विंध्य प्रदेश के आठ जिलों में से एक बन गया। 1 नवम्बर को राज्यों के पुनर्गठन के बाद, सन् 1956 में यह नए मध्य प्रदेश राज्य का एक जिला बना। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित गढ़ कुंडार नाम का एक कस्बा है।

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यह नाम यहां स्थित प्रसिद्ध दुर्ग (या गढ़) के नाम पर गढ़-कुंडार पड़ा है। गढ़कुण्डार का प्राचीन नाम गढ़ कुरार है। गढ़कुंडार किला उस काल की न केवल बेजोड़ शिल्पकला का नमूना है बल्कि ऐतिहासिक समृद्धि का प्रतीक भी है। गढ़कुंडार किले का सम्बन्ध चंदेल और खंगार नरेशों से रहा है, परंतु इसके पुनर्निर्माण और इसे नई पहचान देने का श्रेय खंगारों को जाता है।

वर्तमान में खंगार क्षत्रिय समाज के परिवार गुजरात, महाराष्ट्र के अलावा उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं। 12वीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान के प्रमुख सामंत खेतसिंह खंगार ने परमार वंश के गढ़पति शिवा को हराकर इस दुर्ग पर कब्जा करने के बाद खंगार राज्य की नींव डाली थी।

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 टीकमगढ़ का एक प्रमुख नगर है ओरछा। ओरछा का शाब्दिक अर्थ ‘छिपी हुई जगह’ है। इसकी स्थापना टीकमगढ़ के बुन्देला राजा रुद्रप्रताप सिंह ने सन् 1501 में की थी। परन्तु असमय उनकी मृत्यु हो जाने के कारण इस जगह को संवारा महाराजा वीर सिंह जूदेव ने। 17वीं शताब्दी के शुरुआत में ओरछा के राजा ने मुगल साम्राज्य से विद्रोह कर दिया। फिर शाहजहां ने यहाँ पर आक्रमण करके इस पर कब्जा कर लिया जो सन् 1635 से 1641 तक बना रहा। 

आईये डालते है है एक नज़र टीकमगढ़ के क्षेत्रफल पर 

क्षेत्रफल 5,048 वर्ग किमी
जनसंख्या 1,445,166
पुरुष 760,355
महिला 684, 811
ग्रामीण 82.71 प्रतिषत
शहरी 17.29 प्रतिषत
लिंगानुपात 901 (प्रति 1000 पुरुषों पर)
साक्षरता 60.87 प्रतिषत
जनसंख्या घनत्व 286 व्यक्ति/वर्गकिमी

यहाँ के प्रमुख दर्शनीय स्थल

ओरछा (रामराजा सरकार)
कुंडेष्वर महादेव
जतारा
बल्देव गढ़
बडे़ महादेव
बगाज माता मन्दिर
माँ गिद्धवाहिनी मन्दिर
पपौरा जी 
अछरू माता

आवागमन

वायुमार्ग टीकमगढ़ से सबसे निकटतम हवाई अड्डा खजुराहो 140 किमी की दूरी पर स्थित है। इसके बाद ग्वालियर हवाई अड्डे से 205 किमी की दूरी पर स्थित है टीकमगढ़। तीसरा निकटतम हवाई अड्डा 249 किमी पर जबलपुर हवाई अड्डा है। रेलमार्ग टीकगमढ़ में नया रेलवे स्टेशन बना है। टीकमगढ़ पहुंचने के लिए अभी फिलहाल झांसी से ही ट्रेन मिलती है।

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सड़कमार्ग - चूंकि टीकमगढ़ में पहले रेलसेवा नहीं थी इसीलिए यहाँ से भारत के प्रमुख नगरों के लिए सीधी बससेवा उपलब्ध हैै। नई दिल्ली, ललितपुर, नागपुर, कानपुर, इंदौर, भोपाल, झांसी, ग्वालियर और जबलपुर के लिए बसों की सेवा उपलब्ध है।

ओरछा (राम दरबार मन्दिर) इसका इतिहास 16वीं शताब्दी से शुरू होता है, जब बुंदेला राजाओं ने इसकी स्थापना की थी। इस जगह की पहली और सबसे रोचक कहानी एक मंदिर की है। दरअसल, यह मंदिर भगवान राम की मूर्ति के लिए बनवाया गया था, लेकिन मूर्ति स्थापना के वक्त यह अपने स्थान से हिली नहीं। इस मूर्ति को मधुकर शाह के राज्यकाल (1554-92) के दौरान उनकी रानी अयोध्या से लाई थीं।

चतुर्भुज मंदिर बनने से पहले इसे कुछ समय के लिए महल में स्थापित किया गया। लेकिन मंदिर बनने के बाद कोई भी मूर्ति को उसके स्थान से हिला नहीं पाया। इसे ईश्वर का चमत्कार मानते हुए महल को ही मंदिर का रूप दे दिया गया और इसका नाम रखा गया राम राजा मंदिर।

आज इस महल के चारों ओर शहर बसा है और राम नवमी पर यहां हजारों श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं। वैसे, भगवान राम को यहां भगवान मानने के साथ यहां का राजा भी माना जाता है, क्योंकि उस मूर्ति का चेहरा मंदिर की ओर न होकर महल की ओर है।

कुंडेष्वर महादेव टीकमगढ़ से 5 किमी, दक्षिण में जामदर नदी के किनारे यह गांव बसा है। गांव कुंडदेव महादेव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि, मंदिर के शिवलिंग की उत्पत्ति एक कुंड से हुई थी। गांव के दक्षिण में बारीघर नामक एक खूबसूरत पिकनिक स्थल और आकर्षक ऊषा वाटर फाल है। विनोबा संस्थान और पुरातत्व संग्रहालय भी यहां देखा जा सकता है।

अछरू माता टीकमगढ़-निवाड़ी रोड पर स्थित यह गांव पृथ्वीपुर तहसील में है। एक पहाड़ी पर बसे इस गांव में माता अछरू का चर्चित मंदिर है। मंदिर एक कुंड के लिए भी प्रसिद्ध है जो सदैव जल से भरा रहता है। हर साल चैत्र नवरात्रि के अवसर पर ग्राम पंचायत की देखरेख में प्राचीनकाल से मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से लोग यहाँ आते हैं। यह स्थान ग्राम पृथ्वीपुरा, टीकमगढ़ में है। यहां मूर्ति नहीं है, एक कुंड के आकार का गड्ढा है। 

बल्देव गढ़ यह नगर टीकमगढ़-छतरपुर सड़क पर टीकमगढ़ से 26 किमी. दूर स्थित है। खूबसूरत ग्वाल सागर कुंड के ऊपर बना पत्थर का विशाल किला यहां का मुख्य आकर्षण है। एक पुरानी और विशाल बंदूक आज भी किले में देखी जा सकती है। विन्ध्यवासिनी देवी मंदिर बलदेवगढ़ का लोकप्रिय मंदिर है। चैत्र के महीने में सात दिन तक चलने वाला विन्ध्यवासिनी मेला यहां लगता है। यहां पान के पत्तों का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है।

पपौरा जी अतिशय क्षेत्र पपौरा जी बुन्देलखण्ड में ही नही अपितु सम्पूर्ण भारत में जैन धर्म का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यहाँ पर 108 विशाल जैन मन्दिर स्थित है। इसके निकट स्थित अनेक प्राचीन मठ और सरोवरों की विद्यमानता इसे अत्यन्त प्राचीन क्षेत्र सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। यहाँ उत्कीर्ण शिलालेखों से स्पष्ट है कि ये मन्दिर विगत 8 शताब्दियों से निर्मित होते रहे हैं।

प्रमुख व्यक्तित्व

पत्रकारिता जगत की जानी मानी हस्ती हैं मृणाल पाण्डेय। टीकमगढ़ में 26 फरवरी 1946 को जन्मी मृणाल पाण्डेय की माँ शिवानी एक प्रसिद्ध उपन्यासकार व लेखिका थीं। मृणाल की प्रारम्भिक शिक्षा टीकमगढ़ व नैनीताल में हुई, इसके बाद इलाहाबाद और वाशिंगटन से उन्होंने उच्चशिक्षा ग्रहण की। 21 वर्ष की उम्र में उनकी पहली कहानी हिन्दी साप्ताहिक ‘धर्मयुग’ में छपी। तब से वे लगातार लेखन कर रही हैं।

अप्रैल 2008 में इन्हें पीटीआई बोर्ड का सदस्य बनाया गया। अगस्त 2009 तक वे हिन्दी दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ की सम्पादिका थीं। वे हिन्दुस्तान टाइम्स के हिन्दी प्रकाशन समूह की सदस्या भी हैं। इसके अलावा वो लोकसभा चैनल के साप्ताहिक साक्षात्कार कार्यक्रम (बातों बातों में) का संचालन भी करती हैं। वर्तमान में वे प्रसार भारती की अध्यक्षा हैं।

केशवदास हिन्दी साहित्य के रीतिकाल कविता के एक प्रमुख स्तंभ हैं केशवदास। वे संस्कृत काव्यशास्त्र का सम्यक् परिचय कराने वाले हिंदी के प्राचीन आचार्य और कवि हैं। सन् 1546 में सनाढ़ा ब्राह्मण कुल में जन्में केशवदास के पिता पं. काशीराम ओरछा नरेश मधुकरशाह के विशेष स्नेहभाजन थे। मधुकरशाह के पुत्र महाराज इंद्रजीत सिंह केशव को अपना गुरु मानते थे। इंद्रजीत सिंह की ओर से इन्हें इक्कीस गांव मिले हुए थे। वे आत्मसम्मान के साथ विलासमय जीवन व्यतीत करते थे। केशवदास संस्कृत के उद्भट विद्वान थे। सन् 1608 के लगभग जहांगीर ने ओरछा का राज्य वीर सिंह जूदेव को दे दिया। केशव कुछ समय तक वीर सिंह जूदेव के दरबार में रहे, फिर गंगातट पर चले गए और वहीं रहने लगे। सन् 1618 में उनका देहावसान हो गया।

उमा भारती 3 मई 1959 को टीकमगढ़ जिले के डुंडा नामक गांव में लोधी राजपूत समुदाय में जन्मी उमा भारती की शिक्षा छठी कक्षा तक हुई। युवावस्था में ही वे भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गयीं थी। सन् 1984 में लोकसभा का चुनाव लड़ीं लेकिन हार गई। दोबारा सन् 1989 में खजुराहो से वे सांसद चुनी गईं। इसके बाद वे राम मन्दिर आन्दोलन से भी अलावा वो लोकसभा चैनल के साप्ताहिक साक्षात्कार कार्यक्रम (बातों बातों में) का संचालन भी करती हैं। वर्तमान में वे प्रसार भारती की अध्यक्षा हैं।

इसके बाद वे राम मन्दिर आन्दोलन से भी जुड़ीं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें  कुछ मुसीबतों का सामना करना पड़ा। जिस कारण उन्होंने पार्टी छोड़कर नई पार्टी बनाई। लेकिन लगभग 6 वर्ष बाद 7 जून 2011 को उनकी भाजपा में पुनः वापसी भी हुई। उसके बाद वे चरखारी की विधायक भी रहीं और सन् 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में वे झांसी संसदीय क्षेत्र से चुनने के बाद मोदी मन्त्रिमंडल की कैबिनेट में जल संसाधन, नदी विकास व गंगा सफाई मंत्रालय का उत्तरदायित्व संभाल रही हैं।

प्रमुख होटल

होटल अमर महल
होटल मोनार्क रामा
होटल व्हाइट हाउस
ओरछा रेजीडेन्सी
होटल राज मन्दिर ओरछा
होटल फोर्ट व्यू
शीशमहल होटल

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