बेहाल हैं ‘सदानीराएं’
चित्रकूट की धरती पर एक बार फिर से जल का बड़ा संकट खड़ा होने वाला है। सरयू नदी तो विलुप्त हो चुकी है, पयस्वनी नदी की धारा दम तोड़ चुकी है। ऐसा हाल बना रखा है कि आने वाले दिनों में मन्दाकिनी भी इस भू-लोक से गायब होने के संकेत दे रही है। एक बार शब्द का उपयोग इसलिए किया गया है क्योंकि दृष्टांत है कि जब यहां पर सतयुग में पेयजल के लिए भयानक हाहाकार मचा तो माँ अनुसुइया ने दस हजार साल तपकर सहस्र धाराओं वाली माँ मन्दाकिनी को धरती पर अवतरित किया। वैसे इसके प्रमाण भी अभी कुछ साल पहले तक मिलते रहे। अपने उद्गम स्थल अनुसुइया आश्रम के घने जंगलों से लेकर रामघाट के आगे तक तमाम स्रोत हमारी पीढ़ी ने देखे हैं। आधुनिकीकरण के चलते पैसे कमाने और सुविधाएं जुटाने के लिए जब सदानीराओं के किनारे घाट बने, नाले व नालियों के साथ भवन, लाॅज व धर्मशालाएं, मठ मंदिर बने तो नदियों के स्रोतों की बलि चढ़ गई। नदी की जलवायु व वनस्पति ने दम तोड़ दिया। पानी में आॅक्सीजन की मात्रा कम होने पर मछलियों व कछुओं के साथ ही अन्य जीव जन्तुओं की जीवनलीला समाप्त हो गई। कभी अनुसुइया आश्रम से लेकर रामघाट व कर्वी तक एक-एक फुट की रंग-बिरंगी मछलियां साफ पानी में आराम से तैरती दिखाई देती थीं, पर आज उनकी जगह गंदगी ने ले ली है। मल-मूत्र के साथ ही नाले व नालियों का गंदा जल मन्दाकिनी की पहचान बन चुका है। कई बार पानी इतना जहरीला व गंदगी से भरा हुआ होता है कि बाहर से आने वाले श्रद्धालु इसको छूना भी पसंद नही करते। वह स्थानीय लोगों व सरकारी नुमाइंदों को कोसते हुए वापस चले जाते हैं।
वैसे यह हाल केवल मन्दाकिनी का ही नहीं है, बल्कि प्रजापिता ब्रह्मा के कमण्डल से श्रीहरिविष्णु के पाद प्रक्षालन के फलस्वरूप निकली पयस्वनी नदी (दूध के समान जल की धारा वाली) के भी हैं। श्रीकामदगिरि परिक्रमा में महानिर्वाणी अखाड़े के सामने ब्रह्मकुंड से उद्गमित मानी जाने वाली पयस्वनी का प्रताप वृहद चित्रकूट महात्म में लिखा है। लगभग डेढ़ किलोमीटर दूरी वाली इस नदी का प्रमाण एक नहीं बल्कि दो-दो पुल हैं। विश्व की पहली नदी के रूप में विख्यात इस नदी का हाल यह है कि चित्रकूट के रहने वाले ही इसका नाम नहीं लेते। वैसे हर बार कुछ सालों के अंतराल में इससे दूध की धारा जरूर निकलकर अपना प्रभाव दिखा देती है। चित्रकूट के साथ ही आसपास के तमाम जिलों में इसका दुग्धजल लोगों के घरों में मिल जाएगा। उधर, ‘एक निमिष सरयू बसै‘ वाली उक्ति को आत्मसात कर श्रीकामदगिरि की परिक्रमा लगाने वाला हर व्यक्ति इसके सामने पांच मिनट जरूर बैठता है और सोचता है कि यहां पर माँ सरयू कैसे आई? क्यों आई और कहां चली गईं? चित्रकूट में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा का निर्धारण करने वाली सरयू नदी का पुल इस बात का प्रमाण है कि कभी यह नदी सदानीरा थी और कल-कल धार के साथ बहा करती थी। इसके अलावा मन्दाकिनी में कावेरी, सरस्वती, नर्मदा, शुचि की धाराएं भी अनुसुइया आश्रम के लगभग 3 किलोमीटर आगे पंचप्रयाग में मिलती हैं। चित्रकूट परिक्षेत्र में वाल्मीकि, गुंता, बागै, यमुना, मोहना नदी या सिंघा स्रोत, बरदहा आदि नदियां इस धरा को सिंचित करती हैं। अब सवाल उठता है कि कुछ साल पहले साल भर तक जल से भरी रहने वाली यह नदियां आज दम क्यों तोड़ चुकी हैं? इसके लिए कौन जिम्मेदार है, क्या सरकारी तंत्र या हम स्वयं?
पिछले दिनों जेनेवा में आयोजित जलवायु परिवर्तन की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व विश्व के सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों के सामने स्विटजरलैंड निवासी 16 वर्ष की बेटी ग्रेटा थम्बर्ड ने रो-रो कर गुस्से में कहा था कि आपने हमारे सपने, हमारा बचपन हमारे ही सामने अपने खोखले शब्दों से छीना है। अब सभी को समझ में आ रहा है कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर आपने हमें छला है। पूरे विश्व में कहीं-कहीं पारिस्थितिकी तन्त्र ध्वस्त हो चुका है। आपने हम लोगों को प्रकृति के सामने असफल बना दिया है। ग्रेटा तब यह बात कह रही है, जब यूरोप शिक्षित है और भारत में भी साक्षरता दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। किन्तु विश्वविद्यालयों की गतिविधि जल, जंगल, जमीन के संरक्षण की नहीं है। चित्रकूट में दो-दो विश्वविद्यालय हैं, इसके बावजूद चित्रकूट की नदियां और जलस्रोत रो रहे हैं। बिना स्वच्छ जल के बच्चे कैसे स्वस्थ रहेंगे?
चित्रकूट में अनुसुइया आश्रम में ब्रह्मविद्या का विश्वविद्यालय था। वाल्मीकि रामायणम् के अनुसार तारा मण्डल के पांचवें स्थान पर अधिष्ठापित महर्षि अत्रि इस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति थे। अध्यात्म रामायण के अनुसार यहां विद्या अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों, ऋषियों-मुनियों को पीने का पानी दुर्लभ था और यह काफी दूर से पीने का पानी लाते थे। अत्रि मुनि की पत्नी महासती अनुसुइया थीं, जिन्होंने घोर तपस्या की और उनके तप से देव गंगा की धाराएं पहाड़ के नीचे से निकलने लगीं और यहीं से मन्दाकिनी नदी का उद्गम है। माता अनुसुइया ने वह कार्य किया जिसके कारण चित्रकूट की धरती में पानी की समस्या सदैव-सदैव के लिये हल हो गयी और यहां की जलवायु समृद्ध हुई। भारत में आज ऐसे ही कुलाधिपतियों और विश्वविद्यालयों की जरूरत है। विशेषकर चित्रकूट के विश्वविद्यालयों की जिम्मेदारी है कि वह बच्चों को प्रकृति बचाने वाली शिक्षाओं और अभ्यासों से अभ्यस्त कराए। सबसे दुखद प्रश्न है कि आज चित्रकूट के विद्यार्थियों और शिक्षकों को भी नहीं मालूम कि चित्रकूट में कितनी नदियां हैं और साल भर में कितना पानी चित्रकूट में बरसता है। आज चित्रकूट की माँ मन्दाकिनी जब सूखती हैं तो वहां का समाज भूख और प्यास से जूझता है। चित्रकूट में पानी के अकूत भण्डार होने के बाद भी चित्रकूट प्यासा है यह बात हास्यास्पद प्रतीत होती है।
मन्दाकिनी-पयस्वनी नदी स्वाध्याय यात्रा के दौरान यात्रियों ने नदी के जल भण्डारण को नजदीक से महसूस किया। सभी ने यह जाना कि अनुसुइया आश्रम के भूभाग में कावेरी, नर्मदा, सरस्वती और शुचि मन्दाकिनी में मिलती हैं उसे पंचप्रयाग कहते हैं। मन्दाकिनी जब आगे बढ़ती है तब करीब 2 किलोमीटर लम्बी तथा 500 मीटर चैड़ी जल की बड़ी गहरी दहार (कुण्ड) है जिसकी गहराई आज तक कोई नहीं नाप सका। इसे भंवरा दहार कहते हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि पाठा में पीने के पानी की बहुत दिक्कत आज से 30 वर्ष पहले थी, तब उस इलाके के कई गांव की महिलाएं पानी खोजते हुये कई किलोमीटर पैदल चलकर मन्दाकिनी में स्थित भंवरा दहार में पानी लेने आती थीं।
नदियों के संगमित होने के स्थान को प्रयाग कहते हैं। इस तरह मन्दाकिनी नदी में दो प्रयाग हैं। पहले प्रयाग का नाम पंचप्रयाग और दूसरे प्रयाग का नाम राघव प्रयाग है। नदियों के संगम स्थल में पंच प्रयाग अभी शुद्ध और अविरल दिखता है किन्तु रामघाट के पहले स्थित राघव प्रयाग घाट की स्थिति अति दयनीय है, क्योंकि पयस्वनी तथा गायत्री नदियों का स्वरूप सीवर नालों में बदल गया है।
जल स्रोतों की वर्तमान स्थिति
21वीं सदी में मन्दाकनी मरने के करीब है तथा पयस्वनी और गायत्री-सरयू धारा जैसी नदियां मर चुकी हैं। इसी प्रकार कामदगिरि पर्वत का भी अपहरण हो चुका है। मध्य प्रदेश क्षेत्र में अनुसुइया आश्रम से लेकर राघव प्रयाग घाट तक मन्दाकिनी नदी में करीब 25-30 नालों और सीवर का गंदा पानी डाला जा रहा है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में रामघाट से लेकर बंधोइन तक पयस्वनी-मन्दाकिनी नदी में करीब 30 नाले और सीवर से गंदा पानी डाला जा रहा है। नदियों और पहाड़ों के पुनर्जीवन की आवाज चित्रकूट में बहुत कमजोर है। बल्कि नदी सफाई के काम की आवाज जरूर अनवरत आ रही है। वैसे तो यहां पर मन्दाकिनी सफाई के लिए आवाज प्रधानमंत्री जी के स्वच्छता अभियान से पूर्व कार्य गायत्री परिवार तथा कुछ साधकों द्वारा किया जाता रहा है। लेकिन आज सबसे बड़ा सवाल नदी के पुनर्जीवन का है।
नदी पुनर्जीवन पर किये गये प्रयास
नदी पुनर्जीवन तभी हो सकता है जब हम नदी को समग्रता से देखेंगे। नदी को समग्रता के साथ समझें इसके लिये महात्मा गांधी विश्वविद्यालय चित्रकूट के प्रोफेसर डॉ. जी.डी. अग्रवाल ने मन्दाकिनी पर शोध कार्य कराये थे और मृत हो रही पयस्वनी-मन्दाकिनी के लिये उन्होंने नदी के किनारे 2007-08 में संवाद किये थे। इसी दौरान पहली बार सिरसाबन में रावतपुरा सरकार ने मन्दाकिनी की धारा को मोड़कर अपने आश्रम के अन्दर कर लिया तो एक दैनिक समाचार पत्र के साथ स्थानीय संत व सपा नेता स्व. राजबहादुर यादव ने तगड़ा प्रतिरोध किया था। इसके बाद 2009 में एक दैनिक समाचार पत्र ने अप्रैल के महीने से मन्दाकिनी को बचाने के लिए अभियान छेड़ दिया। अखबार की आवाज जनता की आवाज बनी। कलम के द्वारा नेतृत्व रिपोर्टर संदीप रिछारिया ने किया तो जगदगुरू रामभद्राचार्य व भारतरत्न नानाजी देशमुख प्रो. जी.डी. अग्रवाल जैसे लोग सामने आ गए। मन्दाकिनी को बचाने के लिए पदयात्रा की कमान गायत्री परिवार के स्थानीय मुखिया डाॅ. रामनारायण त्रिपाठी व डीआरआई के तत्कालीन प्रधान सचिव डाॅ. भरत पाठक ने सम्भाली। 80 किलोमीटर की पदयात्रा में हिंदू-मुसलमान-ईसाईयों ने अपनी सहभागिता दर्ज कराई। 15 दिनों के बाद यह यात्रा मोहना घाट में जाकर समाप्त हुई। इसी क्रम में 2011 में मन्दाकिनी-पयस्वनी नदी सूखने लगी थीं। कर्वी के बाद बंधोइन बांध के आगे नदी ने बहना बंद कर दिया था।
चन्द्रगहना से लेकर सूरजकुण्ड तक की दहारों मे भरा पानी जहरीला हो गया था। पशु मरने लगे थे। जिन गांवों में नदी सूख गयी थी वहां का समाज अपने को अपमानित व निरीह समझ रहा था। गांवों में गरीब परिवार पलायन करने लगे थे, भुखमरी बढ़ रही थी। सूखी पयस्वनी-मन्दाकिनी नदी को आपदा से बचाने के लिए जलपुरूष राजेन्द्र सिंह ने मन्दाकिनी संसद के निर्माण का प्रस्ताव किया था। इस दौरान मैंने बरगढ़ न्याय पंचायत की सूखी सिंहा स्रोत नदी में गांव द्वारा श्रमदान कर जलधाराएं खोजने का काम सफलता पूर्वक किया था। उस काम को देख कर प्रेरित हुए जिलाधिकारी ने सूखी मन्दाकिनी नदी को मनरेगा से खुदवाकर पानी खोजने का काम शुरू कराया था और लोगों को राहत दिलाई थी। इसके बाद नदी पुनर्जीवन का काम सरकार द्वारा नहीं दिखा। 2015 में संत गोविन्द दास, संत सियाराम दास और लेखक स्वयं ने मन्दाकिनी नदी के शबरी जल प्रपात से लेकर सूखी नदी क्षेत्र में अनुसुइया आश्रम तक नदी पुनर्जीवन के लिये विकल्प खोजने के लिये यात्रा की थी। नदी पुनर्जीवन की अवधारणा के तहत मार्च 2016 में सूखी पयस्वनी नदी के 10 गांवों में नदी संवाद उस समय किये, जब गांवों में पशु मर रहे थे। परिवारों की आजीविका जिन पशुओं पर निर्भर थी, वे पशु बूंद-बूंद पानी के लिये तरस रहे थे। गांव के लोगों द्वारा पयस्वनी नदी सूखने का मुख्य कारण बंधोइन बांध तथा कई जगह बनाये गये चेकडैम एवं पहाड़ों का दोहन बताया था।
ग्राम पंचायत सरधुआ, सगवारा तथा अरकी के प्रधानों ने 10 फरवरी 2016 को एक ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा। कर्वी से लेकर राजापुर तक पूर्व ब्लाक प्रमुख रूद्रदेव सिंह एड. के साथ पयस्वनी नदी किनारे के गांवों में संवाद किये गये। गांव के लोगों द्वारा मार्च-अप्रैल 2018 में सूखी पयस्वनी-मन्दाकिनी नदी के किनारे की ग्राम पंचायतों के प्रधानों तथा जनता ने मिलकर मन्दाकनी सत्याग्रह का संचालन करीब एक सप्ताह तक किया। मकरी ग्राम पंचायत में पयस्वनी नदी खुदाई का कार्य वर्तमान भाजपा जिलाध्यक्ष चन्द्रप्रकाश खरे व पत्रकारों ने भी किया, उन्होंने वहां जाकर गांव वालों के साथ फावडे़ चलाये और उन्हें नदी के साथ खराब व्यवहार करने के लिये मना किया। चित्रकूट के वर्तमान भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष चन्द्रप्रकाश खरे ने नदी में कुण्ड बनाये जाने की वकालत की थी तथा चेकडैमों को नदी विरोधी बताया था। इसी क्रम में मैंने भी अप्रैल 2018 में मन्दाकिनी नदी पुनर्जीवन में कई बुनियादी मांगों को लेकर सूरजकुण्ड में उपवास शुरू किया। इस उपवास में सूरजकुण्ड के संत रामबदनदास, सगवारा प्रधान रज्जन द्विवेदी, पुरवा तरौंहा के कामता प्रसाद बाजपेयी सहित दर्जनों संत और ग्रामीण शामिल थे। जिलाधिकारी को दिए गए ज्ञापन में नदी का सीमांकन कराने, सभी चेकडैम हटाने, गंदे नाले, सीवर हटाने के साथ ही सभी प्रकार के अतिक्रमण हटाने का निवेदन किया गया। मई 2018 में मैंने मन्दाकनी सत्याग्रही रामस्वरूप यादव, शिवबरन लाल प्रज्ञ, डाॅ. नरेन्द्र, नृसिंह पटेल तथा रामनरेश भाई को लेकर मन्दाकनी नदी शान्ति मार्च यात्रा निकाली।
नदी शांति यात्रा-सत्याग्रह का परिणाम
26 मई 2018 को मंदाकनी-पयस्वनी नदी पुनर्जीवन के लिये नदी शांति मार्च का शुभारम्भ सूरजकुण्ड से हुआ था। गांव में संवाद के द्वारा जो समस्याएं मिलीं, उनकी एक रिपोर्ट जिलाधिकारी को 29 मई 2018 को सौंपी गयी। तत्कालीन जिलाधिकारी विशाख जी अय्यर ने नदी शांति मार्च एवं मन्दाकिनी नदी सत्याग्रह के प्रभावों को देखते हुये मई 2018 में सूखी मन्दाकिनी नदी के 19 ग्राम पंचायतों में नदी खुदाई का कार्य मनरेगा से शुरू कराया। मनरेगा में काम करने वालों को मन्दाकिनी सेनानी की उपाधि दी गई। उन्होंने माना था कि मन्दाकिनी नदी में 16 नाले सीधे गिर रहे हैं जोकि जल को जहरीला बनाते हैं। मन्दाकिनी में नाले सीधे न गिरें, इसके लिये उन्होंने शासन को पत्र लिखा। 13 जून 2018 को महुवा गांव में मन्दाकिनी सेवा की शपथ भी दिलाई गई।
अब 2019-20 में मन्दाकिनी नदी अहिंसा मार्च पर्यावरणविद् गुंजन मिश्रा के नेतृत्व में चल रहा है। इस अहिंसा मार्च में कृष्ण गोपाल गुप्ता एड., डाॅ. सुरेश प्रसाद त्रिपाठी, योगेश जैन, गुंजन मिश्रा, महेन्द्र गुप्ता आदि लोग सम्मलित हैं। 11 दिसम्बर को पयस्वनी उद्गम स्थल ब्रम्हकुण्ड से नदी परमार्थ स्वाध्याय यात्रा साध्वी कात्यायनी देवी के नेतृत्व में शुरू होकर राघव प्रयाग जा रही थी, लेकिन रास्ते में दिखा कि संत प्रेमदास त्यागी आश्रम के बाद नदी के किनारों में मकान बन गये हैं। उनके सीवर का पानी तथा श्रीकामतानाथ के निकट की आबादी के सीवर का पानी सीधा पयस्वनी नदी में जाता है।
नदी में जाने का रास्ता अतिक्रमण के कारण पूरी तरह बन्द हो चुका है। इस यात्रा में संतों की ओर से गंगा सागर महाराज, ब्रह्मकुण्ड के धर्मदास जी महाराज आदि शामिल थे। इसके बाद मन्दाकनी नदी स्वाध्याय यात्रा 12 दिसम्बर 2019 को मन्दाकिनी उद्गम क्षेत्र अनुसुइया से प्रारम्भ होकर पंच प्रयाग तक गई। यहां के संतों ने बताया कि कुछ मंदिरों के शौचालय सीधे मन्दाकनी में लगे हैं तथा पक्के निर्माण के कारण अधिकांश जलस्रोत बंद हो गये हैं या दब गये हैं। वहां के संत समाज ने मांग की कि यहां का नदी सीमांकन कराते हुये महर्षि अत्रि के विश्वविद्याालय को पुनर्जीवित किया जाये और नदी सीमा में किसी प्रकार का अतिक्रमण न हो। बाजार सहित सभी रिहायशी गतिविधियों को नदी सीमा से दूर रखा जाये ताकि मन्दाकिनी नदी की शुद्धता, अविरलता, पवित्रता, निर्मलता बची रहे। लोगों ने भी चित्रकूट के विकास को गलत बताया।
चित्रकूट का भूमि उपयोग चित्रकूट की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, प्राकृतिक एवं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सरकार के प्लान में कहीं नहीं दिखता। जिसका परिणाम है कि चित्रकूट की नैसर्गिक शान्ति समाप्त हो चुकी है और यहां का पर्यावरण पूरी तरह दूषित तथा वातावरण पूरी तरह भयाक्रान्त है। नदियों में सारा अतिक्रमण सरकार, समाज और महन्त इन तीनों के बीच रहने वाले लालची लोगों ने कर रखा है और सरकार मौन है। तब चित्रकूट की जलवायु जहरीली होगी और आने वाली पीढ़ी भीख और भुखमरी से जूझेगी। आस्था का केन्द्र चित्रकूट अनास्था में बदलेगा। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार को चाहिये कि तुलसी, वाल्मीकि एवं वृहद चित्रकूट महात्म के अन्दर चित्रकूट की सुन्दरता के जो सूचकांक दिये गये हैं उनके अनुसार चित्रकूट विकास का प्लान विकसित करें तभी चित्रकूट की जलवायु बदलेगी और चित्रकूट के प्रति लोगों की आस्थाएं मजबूत होगी।
- अभिमन्यु भाई
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं)