कथाओं के जरिए चित्रकूट का दर्शन कराते कथावाचक

- विदुषी संतों की कथाओं में बरसता है अमृत
‘रामकथा, मंदाकिनी, चित्रकूट चित चारू, तुलसी सुभग सनेह वन श्री रघुवीर बिहारू‘ संत शिरोमणि तुलसीदास जी की इन लाइनों का अर्थ जिन्होंने समझा वह खुद संत हो गए। चित्रकूट का अर्थ चित्त को कूटकर राममय होना है। यानि मान अपमान, अभिमान से परे हटकर खुद को भक्त बना दिया जाए। ऐसी ही लाइनें जब अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड सहित अन्य देशों में बड़े मंचों पर बोली जाती हैं तो हिंदुस्तान गर्वित महसूस करता है। श्री राम कथा व भागवत कथा के साथ चित्रकूट का प्रचार करने वाले तो देश में बहुत से कथावाचक हैं। क्योंकि रामकथा का वर्णन बिना चित्रकूट के हो ही नहीं सकता। संत मोरारी बापू, रमेश भाई ओझा जैसे कितने ही नाम हैं जो निरंतर देश व विदेश में रामकथा के माध्यम से चित्रकूट का दर्शन कराते हैं। लेकिन चित्रकूट ऐसी तपस्थली है जहां पर राम कथा का गुणगान करने वाले हर घर में पाए जाते हैं। यहां की संस्कृति ऐसी है कि हर एक बालक व बालिका को बचपन से ही राम जी की कथाएं सुनाई व सिखाई जाती हैं। राम कथा का गुणगान करने वाले स्थानीय संत वैसे तो बहुत हैं, लेकिन बाहर से आकर यहां पर अपना ठिकाना बनाकर राम कथा का प्रचार करने वालों की संख्या कम नहीं है।
जगद्गुरू स्वामी रामभद्राचार्य जी महराज
जगद्गुरू रामभद्राचार्य वैसे तो जौनपुर जिले के रहने वाले है। बचपन में ही आंखों की रोशनी चली गई। स्वामी रणछोड़दास जी की तपस्थली रघुवीर मंदिर बड़ी गुफा आए तो फिर चित्रकूट भा गया। बस फिर यहीं तुलसी पीठ की स्थापना कर विश्व भर में जाकर वैदिक धर्म की पताका लहराने का काम करने लगे। कथाओं से मिलने वाले धन से जगद्गुरू रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय, तुलसी प्रजाचक्षु विद्यालय, दिव्यांग बालिका विद्यालय का संचालन कर रहे हैं।
जगद्गुरू रामस्वरूपाचार्य जी महराज
इनका जन्म स्थान बुंदेलखंड में ही है। चित्रकूट के प्रमुख द्वार के यह मुख्य महंत हैं। विश्व भर में रामकथा के लिए सुविख्यात कथा आचार्यों में गिनती होती है।
आचार्य नवलेश दीक्षित
वृन्दावन से भागवत कथा का अध्ययन करने वाले आचार्य नवलेश दीक्षित की गिनती देश के चोटी के कथावाचकों में होती है। कामदगिरि परिक्रमा के बीच में पड़ने वाले खोही गांव में भागवत पीठ की स्थापना की और देश भर में भागवत कथा का गान करते हैं।
आचार्य रामहृदय दास जी महराज
बचपन से ही संत परंपरा का पालन करने वाले संत राम हृदय दास जी महराज रामायणी कुटी के महंत हैं। अपनी रसभरी वाणी से किसी का भी मन मोहने की क्षमता रखने वाले संत रामहृदय दास जी की कथाएं भी देश भर में चलती रहती हैं।
डाॅ. रामनारायन त्रिपाठी
गायत्री शक्ति पीठ के प्रमुख डा. रामनारायन त्रिपाठी वैसे तो शिक्षक हैं। लेकिन संत परंपरा की बात करें तो उनका पूरा जीवन तप से भर हुआ है। गायत्री साधक होने के साथ ही श्री त्रिपाठी राम जी की भी आराधना करते हैं। देश भर में इनकी कथाएं होती रहती हैं।
युवराज बद्री प्रपन्नाचार्य जी महराज
युवराज इद्री प्रपन्नाचार्य जी नयागांव के आचार्य मंदिर के प्रमुख हैं। इनकी कथाएं भी अत्यंत भाव भरी होती हैं। देश भर में इनकी कथाएं लगातार चलती रहती हैं।
बाल व्यास आचार्य बृजेन्द्र शास्त्री
खोही के निवासी आचार्य बृजेन्द्र खोही गांव के मूल निवासी हैं। यह बहुत कम उम्र से पूरे देश में श्री राम व भागवत कथा सुनाने का काम कर रहे हैं।
आचार्य चंदन दीक्षित
आचार्य चंदन दीक्षित वैसे तो आचार्य नवलेश दीक्षित जी के शिष्य हैं। लेकिन कथा में माधुर्य और संगीत के जानकार होने के कारण इनकी ख्याति काफी ज्यादा हो गई है। रामधाट के चरखारी मंदिर से ही अपनी कथाओं की यात्रा प्रारंभ की।
आचार्य महेंद्र शास्त्री
पौरोहित्य कर्म के परिवार में जन्में कर्वी के निवासी आचार्य महेंद्र बचपन से ही रामानुरागी थे। विरासत में उन्हें बाबा व पिता ने रामचरित मानस व भगवत गीता का पाठ सुनाया। आज यह एक बड़े कथावाचक के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं।
आचार्य राम चंद्र दास (जय मिश्र)
जगद्गुरू राम भद्राचार्य के पास बचपन से रहकर अध्ययन करने के साथ कथा सीखी। अभी हाल ही में जगद्गुरू ने इन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। यह देश व विदेश में कथा कहते हैं।
इसके अलावा चित्रकूट में रहने वाली महिला संतों की भी एक लंबी परंपरा है। जो कथाओं के जरिए राम रस की वर्षा पूरे देश में करती रहती हैं।
वंदना रामायणी
इनका जन्म बाबा भोले की नगरी में हुआ। पिता न्यायिक सेवा में थे। बांदा में पिता की पोस्टिंग के दौरान चित्रकूट आईं तो फिर मन चित्रकूट में रम गया। पिता ने भी सेवानिर्वत होने के बाद चित्रकूट में ही रहना पसंद किया। उच्च शिक्षा प्राप्त वंदना रामायणी की पांडित्यपूर्व रामकथा पूरे देशभर में होती रहती है। इसके अलावा पुष्पा रामायणी,स्वर्णलता रामायणी, नीलम गायत्री आदि विदुषियां भी रामकथा देश भर में कहने का काम कर रही हैं।
- अजीत सिंह
(लेखक बुन्देली सेना के जिलाध्यक्ष व खजुराहो फिल्म फेस्टिवल के यूपी बुन्देलखण्ड संयोजक हैं)
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