वामदेवेश्वर मंदिर में उमड़ी शिव भक्तों की भीड, पाइप से जलाभिषेक
जनपद मुख्यालय में स्थित प्रसिद्ध वामदेवेश्वर मंदिर में पहले श्रावण सोमवार मे शिव भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी, जिससे सामाजिक दूरी की व्यवस्था ध्वस्त हो गई,लेकिन शिवभक्तों को दूर से ही भोले बाबा के दर्शन हुए और पाइप के जरिए जलाभिषेक करने का मौका मिला।
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सावन मास में बामदेव ईश्वर मंदिर में हर साल भारी भीड़ उमड़ती है। इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण प्रशासन ने समाजिक दूरी बनाए रखने की शर्त पर दर्शनार्थियों को मंदिर में जाने की अनुमति दी है।गाइडलाइन के मुताबिक पांच पांच श्रद्धालुओं को मंदिर जाने का मौका मिल सकता है।परंतु आज वामदेवेश्वर मंदिर में जिस तरह भीड़ उमड़ी उससे पुलिस ने भी हाथ खड़े कर लिए,बाद में किसी तरह मंदिर कमेटी के सदस्यों ने व्यवस्था को संभाला।
पहाड़ की गुफाओं में विराजमान भोले बाबा के दर्शन के लिए एक एक श्रद्धालु को दूर से दर्शन करने और पाइप के जरिए जलाभिषेक करने का मौका दिया जा रहा है। मंदिर के पुजारी पुत्तन तिवारी ने बताया कि मंदिर के अंदर दो दो कार्यकर्ता मौजूद है जो आने वाले श्रद्धालुओं से बेल पत्ती इत्यादि लेकर चढ़ा देते हैं और इसके बाद दूसरे दर्शनार्थी को मौका दिया जाता है।कोशिश की जा रही है कि सामाजिक दूरी बनी रहे। उन्होंने बताया कि इतिहास में यह पहली बार है जब शिव भक्तों को शिवलिंग को स्पर्श करने का अवसर नहीं मिला है।
महर्षि बामदेव ने स्थापना की थी
ऐसी किवदंती है कि महर्षि बामदेव की तपस्या से बांबेश्वर पहाड़ पर शिवलिंग की स्थापना हुई थी। यह मंदिर रामायण कालीन माना जाता है।सावन मास में शिवभक्ति का खास महत्व है। इस माह में जो भी भगवान शिव की अराधना करते हैं उन्हें हजार गुना फल अधिक मिलता है। महर्षि बामदेव की नगरी में विराजमान श्रीबामदेवेश्वर बहुत ही प्राचीन स्थान हैं। इसका उल्लेख रामायण काल में भी बताया जा रहा है।
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पर्वत चोटी पर गुफा के अंदर विराजमान शिवलिंग की पूजा-अर्चना के लिए यूं तो प्रतिदिन भक्तों की भीड़ लगी रहती है लेकिन सावन मास में श्रद्धालुओं की संख्या और बढ़ जाती है। सोमवार के दिन लोग तड़के से ही प्रभु के दर्शन व पूजा अर्चना के लिए मंदिर में पहुंच जाते हैं और भीड़ इस कदर हो जाती है कि पंक्ति में खड़े होकर दर्शन के लिए पहुंचना पड़ता है।
गुफा के अंदर है शिवलिंग
मंदिर के पुजारी महाराज पुत्तन तिवारी बताते हैं कि महर्षि बामदेव का तपस्या स्थल बांबेश्वर पर्वत था। महर्षि की तपस्या से गुफा के अंदर शिवलिंग स्थापित हुए पहले यह गुफा इतनी नीची थी कि लोगों को लेटकर दर्शन के लिए जाना पड़ता था। लेकिन धीरे-धीरे कर गुफा ऊंची होती चली गई और अब लोग दर्शन के लिए खड़े होकर प्रवेश कर जाते हैं। पुजारी जी कहते हैं कि प्रतिवर्ष एक जौ गुफा की ऊंची होने की किवदंती है। प्रभु के दरबार में जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से आता है प्रभु उसकी जरूर सुनते हैं और मनोकामना पूरी होती हैं।
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