मानस मर्मज्ञों ने प्रभु श्रीराम की महिमा पर दिए व्याख्यान
52वें राष्ट्रीय रामायण मेला के समापन सत्र के रामकथा भक्ति विचार मंच में बांदा से आए मानस किंकर राम प्रताप शुक्ल...

जिन्हे प्रभु पद प्रीति न सामुझ नीकी, तिनहि कथा सुन लागहि फीकी
चित्रकूट। 52वें राष्ट्रीय रामायण मेला के समापन सत्र के रामकथा भक्ति विचार मंच में बांदा से आए मानस किंकर राम प्रताप शुक्ल ने कहा कि गोस्वामी जी कहते हैं रामकथा तो मीठी होती है मगर ये मीठी उन श्रोताओं को लगती है जिन्हे हरि, हर पद रत मति न कुतर्की तिनकहु कथा मधुर रघुवर की। जिनको प्रभु के पदों में प्रीति नहीं होती और समुझ भी कुतर्को वाली होती है उन्हे ये कथा फीकी लगती है जिन्हे प्रभु पद प्रीति न सामुझ नीकी, तिनहि कथा सुन लागहि फीकी। इस प्रकार श्रोताओं को चाहिए कि कथा के प्रति अनुराग, प्रभु के चरणों में प्रीति लगाए। ताकि निरंतर मीठी कथा उन्हे भी फीकी न लगकर मीठी लगे और चारो पदार्थ पाने के लिए माता, पिता को प्राणों से भी अधिक प्रिय रखना चाहिए। तभी इन चारो फलों की प्राप्ति होती है। गोस्वामी जी कहते हैं धन्य जनम जगतीतल तासू, पितहि प्रमोद चरित सुन जासू। चारि पदारथ करतल ताके प्रिय पितु मातु प्राण सम जाके। यह बात प्रभु श्रीराम अपने पिता दषरथ जी से उस समय कहते हैं ज बह चाहते हैं कि मेरा पुत्र राम मेरा कहना न मानकर वन को न जाए। उस समय पिता की भावनाओ को समझते हुए संसार के लोगों को यह संदेष प्रभु श्रीराम देते हैं कि माता-पिता की रक्षा प्राण प्रण से करने पर ये चारो पुरुशार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष पुत्र की मुट्ठी में माता-पिता के आर्षीवाद से प्राप्त होते हैं।
ग्वालियर के श्रीलाल पचौरी ने भरत चरित्र पर कहा कि सबविधि भरत सराहन जोगू, सम्पति चकई भरत चक मुनि आयस खेलवार। तेहि निस आश्रम पींजरा राखे भा भिनसार। कृश्ण प्रताप तिवारी मानस कोकिल ने राम-कृश्ण के अवतारों की एकता व कलियुग पर व्याख्यान दिया। संचालक रामलाल द्विवेदी ने कहा कि राम की कथा मनुश्य के अंदर स्थित संषय को दूर करके निर्मल बुद्धि प्रदान कर भगवान के चरणों में ले जाती है। रामकथा सुंदर करतारी, संषय विहग उड़ावन हारी।
What's Your Reaction?






