यूपी में ब्लैक फंगस तेजी से फैलने लगा है, सरकार ने एडवाइजरी जारी की

इसे ज़ायगोमायकोसिस के नाम से भी जाना जाता है। सीडीसी यानि सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेन्शन के मुताबिक..

यूपी में ब्लैक फंगस तेजी से फैलने लगा है, सरकार ने एडवाइजरी जारी की
ब्लैक फंगस

लखनऊ कोविड के बाद ब्लैक फंगस (Black Fungus) यानि म्यूकरमाइकोसिस (Mucormycosis) ने पूरे उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। पश्चिम से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसके रोज दर्जनों मरीज निकल रहे हैं। कुछ की मौत की भी खबर है।

इस बीच योगी सरकार ने ब्लैक फंगस को लेकर एडवाइजरी जारी कर दी है। इसमें कहा कहा गया है कि कोविड-19 संक्रमण के उपरान्त ब्लैक फंगस या म्यूकरमाइकोसिस चेहरे नाक, साइनस, आंख और दिमाग में फैलकर उसको नष्ट कर देती है। इससे आंख सहित चेहरे का बड़ा भाग नष्ट हो जाता है और जान जाने का भी खतरा रहता है।

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  • क्या है ब्‍लैक फंगस ?

इसे ज़ायगोमायकोसिस के नाम से भी जाना जाता है। सीडीसी यानि सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेन्शन के मुताबिक, ये एक दुर्लभ लेकिन खतरनाक फंगल इन्फेक्शन है जो म्यूकोरमाइसेट्स नाम के फफूंद यानि मोल्ड या फंगस के समूह की वजह से होता है। ये फंगस वातावरण में प्राकृतिक तौर पर पाया जाता है। ये इंसानों पर तब ही हमला करता है जब हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर पड़ती है।

हवा में मौजूद ये फंगल स्पोर्स यानि फफूंद बीजाणु सांस के जरिए हमारे फेफड़ों और साइनस में पहुंच कर उन पर असर डालते हैं। ये फंगस शरीर में लगे घाव या किसी खुली चोट के ज़रिये भी शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।सीडीसी ने पिछले साल जानकारी दी थी कि आमतौर पर ये फंजाई ज्यादातर लोगों को नुकसान नहीं पहुंचाता, पर किसी कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले व्यक्ति की सांस के ज़रिये म्यूकोरमाइकोसेट के बीजाणु फेफड़ों और साइनस में संक्रमण पैदा कर सकते हैं। और ये यहां से शरीर के दूसरे अंगों में भी फैल सकता है।

सीडीसी ने ये भी स्पष्ट किया था कि म्यूकोरमाइसिस संक्रामक नहीं होता है। इसका मतलब ये एक इंसान से दूसरे इंसान या जानवर से इंसान में नहीं फैलता है। सीडीसी का कहना है कि जल्दी से पहचान कर इलाज शुरू करना और सही एंटीफंगल दवाओं के ज़रिये मरीजों का उपचार किया जाना इसमें बेहद अहम होता है।

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  • कौन आ सकता है चपेट में?

सर गंगाराम अस्पताल के ईएनटी (नाक, कान, गला) विभाग के अध्यक्ष डॉ. अजय स्वरूप के मुताबिक कोविड -19 के मरीज जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होती है, उन्हें ब्लैक फंगल म्यूकोरमाइकोसिन बीमारी से ज्यादा खतरा होता है।

कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के लिए दी जाने वाली स्टेरॉयड और कई मामलों में कोविड-19 के मरीजों को डायबिटीज सहित दूसरी बीमारियों का होना, ब्लैक फंगस के मामलों के दोबारा बढ़ने की एक वजह हो सकता है।

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  • क्या है उपचार?

इससे होने वाली मृत्युदर 50 फीसद से ज्यादा नहीं होती है और अगर शुरुआत में ही लक्षण की जानकारी मिल जाए तो इस पर आसानी से काबू पाया जा सकता है। सर गंगाराम अस्पताल के ईएनटी विभाग के कन्सलटेंट वरुण राय ने पिछले साल बताया था, ‘शुरुआती लक्षण जैसे नाक में अड़चन लगना, आंखों या गालों में सूजन आना और नाक के अंदर सूखी काली पपड़ी जमने जैसी बातों का पता लगने पर तुरंत मरीज की बायोप्सी की जाना चाहिए और जितनी जल्दी हो सके उसे एंटीफंगल दवाएं देना शुरू कर देना चाहिए।’ इस साल मुंबई की एक बायो-फार्मास्यूटिकल फर्म ने औषधि नियामक प्रशासन से म्यूकोरमाइसिस के उपचार के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली एंटी फंगल दवा के इस्तेमाल की अनुमति ली है।

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  • सावधानिया

स्वयं या किसी गैर विशेषज्ञ डॉक्टर के, दोस्त मित्र या रिश्तेदार के कहने पर स्टेरॉयड दवा कतई शुरू ना करें। स्टेरॉयड दवाएं जैसे - डेक्सोना, मेड्रोल इत्यादि।लक्षण के पहले 5 से 7 दिनों में स्टेरॉयड देने से दुष्परिणाम होते हैं। बीमारी शुरू होते ही स्टेरॉयड शुरू ना करें।

इससे बीमारी बढ़ जाती है।स्टेरॉयड का प्रयोग विशेषज्ञ डॉक्टर कुछ ही मरीजों को केवल 5-10 दिनों के लिए देते हैं, वो भी बीमारी शुरू होने के 5-7 दिनों बाद केवल गंभीर मरीजों को।

इसके पहले बहुत सी जांच आवश्यक है। इलाज शुरू होने पर डॉक्टर से पूछें कि इन दवाओं में स्टेरॉयड तो नहीं है। अगर है, तो ये दवाएं मुझे क्यों दी जा रही हैं?स्टेरॉयड शुरू होने पर विशेषज्ञ डॉक्टर के नियमित संपर्क में रहें।

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