तिंदवारी विधानसभा के मतदाताओं में, भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे का दिखाई पड़ रहा है असर

जनपद के तिंदवारी विधानसभा में योगी सरकार द्वारा कराए गए विकास कार्य और भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे का असर मतदाताओं में साफ दिखाई पड़ रहा है..

Feb 10, 2022 - 09:00
Feb 10, 2022 - 09:46
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तिंदवारी विधानसभा के मतदाताओं में, भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे का दिखाई पड़ रहा है असर

जनपद बाँदा के तिंदवारी विधानसभा में योगी सरकार द्वारा कराए गए विकास कार्य और भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे का असर मतदाताओं में साफ दिखाई पड़ रहा है। यही वजह है कि पार्टी द्वारा बनाए गए प्रत्याशी रामकेश निषाद को जनता का समर्थन मिलता दिखाई दे रहा है। यह दावा है भाजपा के मीडिया प्रभारी आनंद स्वरूप द्विवेदी का। आनन्द स्वरूप बताते हैं कि सरकार द्वारा इस क्षेत्र में जो भी विकास कार्य कराए गए हैं, उससे जनता संतुष्ट है और वह एक बार फिर प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने के पक्ष में है। 

हालांकि आम जनमानस में भाजपा द्वारा तिंदवारी विधानसभा से प्रत्याशी बनाए गए रामकेश निषाद की छवि एक निर्विवाद और सरल स्वभाव के व्यक्ति की है। जो भाजपा के जिलाध्यक्ष पद पर रहते हुए विकास कार्यों को गति दिलाने में अहम भूमिका अदा करते रहे हैं। जिलाध्यक्ष के कार्यकाल में संगठन को मजबूत करने में रामकेश के प्रयास का ही परिणाम था कि संगठन ने उनकी निष्ठा को ध्यान में रखकर और तिंदवारी में जातीय गणित के आधार पर ही रामकेश निषाद को तिंदवारी से प्रत्याशी घोषित किया। और टिकट पाने से पहले रामकेश ने तिंदवारी विधानसभा में काफी फोकस किया हुआ था। तिंदवारी में केन्द्र और राज्य सरकार की कई योजनाओं का लाभ यहां के निवासियों को दिलाने में रामकेश ने बराबर प्रयास किया और इसी के चलते आज वह इस विधानसभा क्षेत्र से अपनी मजबूत दावेदारी ठोंक रहे हैं।

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तिंदवारी के ही कई लोग मानते हैं कि अगर रामकेश निषाद  चुनाव जीतकर विधायक बने तो निश्चित इस क्षेत्र का विकास और तेज हो जाएगा। इसके साथ ही रामकेश ने विकास कार्यों के अलावा पार्टी के हिंदुत्व वाले एजेंडे को भी खूब बढ़ावा दिया था। फिर वो चाहे राम मंदिर का मामला हो या फिर कश्मीर से धारा 370 और 35 ए हटाए जाने का केन्द्र सरकार का साहसिक कदम हो और या फिर वाराणसी में बाबा विश्वनाथ के मंदिर का कॉरिडोर और भव्य बनाने का मामला हो। रामकेश ने जिलाध्यक्ष रहते हिन्दुओं को संगठित करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। कुंभ मेले में की गई सुंदर व्यवस्थाएं, देश के इतिहास में पहली बार कांवड़ यात्रियों पर सरकार द्वारा हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा, मथुरा में कृष्ण मंदिर को भव्य रूप देने की घोषणा को तिंदवारी तक घर-घर पहुंचाने में रामकेश ने भरपूर मेहनत की। और शायद संगठन भी ऐसे ही जुझारू कार्यकर्ता को विधानसभा में भेजना चाहता था, इसीलिए रामकेश आज भाजपा के प्रत्याशी हैं। 

ramkesh nishad banda

वैसे हिन्दूवादी का तमगा धारण किए रामकेश निषाद की माने तो भाजपा सरकार के प्रयास केवल हिन्दुओं के लिए ही नहीं थे, बल्कि उन तमाम योजनाओं का लाभ समाज के हर वर्ग और धर्म के व्यक्तियों को बराबरी के साथ मिला। फिर वो चाहे मुफ्त खाद्यान्न हो, मुफ्त शौचालय हो या फिर मुफ्त आवास की सुविधा हो। सरकार ने इन योजनाओं का लाभ देते समय न तो हिन्दू देखा और न ही मुसलमान। हालांकि इसका असर व्यापक न सही तो कुछ तो दिखाई ही दे रहा है कि हिन्दुओं के साथ साथ क्षेत्र का मुसलमान भी भाजपा की ओर नरम रुख अख्तियार करता नजर आ रहा है।

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फिर भी रण तो रण ही होता है, लड़कर ही विधानसभा पहुंचना पड़ता है। इसी तरह रामकेश की भी मुश्किलें यूं आसान नहीं हैं। उनके बराबरी में खड़े बसपा प्रत्याशी जयराम सिंह का पलड़ा भी कमजोर नहीं दिखाई दे रहा है। क्षेत्र के क्षत्रिय वोटों की बदौलत जयराम सिंह ने भी विधानसभा पहुंचने में अपनी पूरी जुगत लगा रखी है। हालांकि विगत कुछ वर्षों में बसपा की कमजोर राजनीति से उनका कैडर वोट सरका है, फिर भी जयराम के आने से बसपा कार्यकर्ता प्रफुल्लित नजर आ रहे हैं। जयराम भी जमीन से जुड़े नेता हैं, लिहाजा क्षेत्र में उनके भी चाहने वाले कुछ कम नहीं।

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लेकिन इन सबके बीच भाजपा सरकार में पूरे पांच साल मौज करके अंतिम समय में भाजपा पर वंचितों की आवाज न सुनी जाने का आरोप लगाकर सपा में गये वर्तमान विधायक बृजेश प्रजापति का पलड़ा यहां पर कमजोर जान पड़ा है। बृजेश मूलतः स्वामी प्रसाद मौर्या के समर्थक हैं, स्वामी की कृपा पर बृजेश को यहां से विधायकी नसीब हुई थी, लिहाजा स्वामी प्रसाद के भाजपा छोड़ने के कुछ ही मिनटों में बृजेश प्रजापति ने भी भाजपा से इस्तीफा दे दिया था।

पर पूरे पांच साल क्षेत्र में विकास कार्यों में रूचि न लेना इस बार उनके लिए भारी पड़ सकता है। यहां के निवासियों में उनकी छवि ऐसे व्यक्ति की बनी है, जो केवल अपने फायदे के लिए विधायक बना, जबकि जनता ने उन्हें अपनी आवाज विधानसभा में उठाने के लिए विधानसभा भेजा था।

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उधर कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष राजेश दीक्षित की पत्नी आदि दीक्षित भी तिंदवारी से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर मैदान में जमी हुई हैं। आदि दीक्षित को महिलाओं का भी खासा सपोर्ट मिल रहा है, पर कांग्रेस की पतली हालत किसी से भी छिपी नहीं है। विगत कुछ समय में जिलाध्यक्ष पद से हटाये जाने के बाद राजेश दीक्षित गुट और वर्तमान जिलाध्यक्ष लालू दुबे गुट की आंतरिक गुटबाजी जगजाहिर हो चुकी है। और यहीं पर कांग्रेस कमजोर होती दिखाई दे रही है।

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फिर भी नये प्रत्याशी के रूप में आदि दीक्षित को लोग काफी पसंद कर रहे हैं। कुल मिलाकर रायशुमारी की मानें तो तिंदवारी का रण भाजपा और बसपा के बीच है, किसी का ज्यादा तो किसी का कम, पर कांटे की इस टक्कर में भाजपा के विकास कार्यों और हिन्दुओं के बीच भाजपा की छवि को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उधर जयराम का भी जयकारा क्षेत्र में छाया हुआ है।

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