बांदा नवाब और रानी लक्ष्मीबाई के बहन-भाई रिश्ते की प्रतीक उनकी तस्वीर लाल किले में सजी

बुन्देलखण्ड में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और बांदा नवाब अली बहादुर के बीच भाई-बहन का रिश्ता था...

बांदा नवाब और रानी लक्ष्मीबाई के बहन-भाई रिश्ते की प्रतीक उनकी तस्वीर लाल किले में सजी

बुन्देलखण्ड में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और बांदा नवाब अली बहादुर के बीच भाई-बहन का रिश्ता था। रानी लक्ष्मीबाई द्वारा मदद मांगने पर बांदा नवाब ने दस हजार सैनिकों के साथ अंग्रेजों से युद्ध किया था और रानी लक्ष्मीबाई के शहीद होने पर मुस्लिम होते हुए भी उनका अन्तिम संस्कार किया था। भाई-बहन के रिश्ते के प्रतीक बने नवाब बांदा अली बहादुर और रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर इस समय दिल्ली के लाल किले में सजी है।

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नवाब बांदा के वंशज इस समय नवाब शादाब अली बहादुर नवाब बांदा हाउस फतेहगढ़ भोपाल में रहते हैं। वह बताते हैं कि उनके पूर्वज अली बहादुर नवाब बांदा अली बहादुर अपनी मुंहबोली राखी बहन लक्ष्मीबाई की चिट््ठी पर अपनी रियासत, दौलत, खजाना सबकुछ दांव पर लगा दिया और दस हजार सैनिकों को साथ झांसी जाकर रानी लक्ष्मीबाई के लिए फिरंगियों से लड़े और ग्वालियर पर कब्जा भी कर लिया। नवाब शादाब अली बहादुर के अनुसार उनका परिवार हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। इनके पूर्वज बाजीराव पेशवा एवं कुंवर मस्तानी जो महाराजा क्षत्रसाल की पुत्री थीं तथा नवाब अली बहादुर रानी लक्ष्मीबाई के मुंहबोले भाई थे और बाजीराव पेशवा के परपोते थे। जिनको रानी लक्ष्मीबाई राखी बांधती थीं। उन्होंने बताया कि युद्ध के दौरान ही रानी लक्ष्मीबाई ने नवाब अली बहादुर से वचन लिया था कि भइया मेरा पार्थिव शरीर फिरंगियों के हाथों न लगने देना। 

इसीलिए 18 जून, 1858 को जब रानी लक्ष्मीबाई युद्ध में लड़ते हुए शहीद हुईं, तब नवाब अली बहादुर ने साधु का वेश धारण करके बाबा गंगादस राव की कुटिया में ले जाकर अपनी राखी बहन का वचन पूरा किया। नवाब अली बहादुर धर्म से मुसलमान थे। फिर भी रानी की चिता जलवाई और राखी का रिश्ता निभाया। नवाब अली बहादुर को इसकी बड़ी सजा भुगतनी पड़ी, अंग्रेजों ने नवाब अली बहादुर का सारा खजाना जब्त कर रियासत से बेदखल कर इंदौर के पास महू में पूरे परिवार के साथ नजरबन्द कर दिया और छत्तीस हजार रुपए पेंशन देते रहे।

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आजादी के बाद नवाब अली बहादुर के पोते नवाब सैफ अली सीहोर आ गए और वर्तमान में नवाब सैफ अली बहादुर के पुत्र नवाब अश्फाक अली बहादुर एवं पोते नवाब शादाब अली बहादुर भोपाल में रहते हैं। यह परिवार हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल है। जिन्हें देश व विदेश में सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जाता है। अभी हाल में ही रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर नवाब शादाब अली बहादुर एवं उनके पुत्र अरबाब अली बहादुर को नोएडा, झांसी व दिल्ली में सम्मानित किया गया है। उधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली के लाल किले में स्वतन्त्रता सेनानी नवाब अली बहादुर एवं रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर लगाकर स्वयं उद््घाटन किया। साथ ही इसकी तस्वीर शादाब अली बहादुर को भोपाल में प्रेषित की है। यह तस्वीर भाई-बहन के रिश्ते की मिसाल बन गई है।

बताते चलें कि रानी लक्ष्मीबाई की बांदा के नवाब अली बहादुर से मुलाकात तात्यां टोपे ने कराई थी। तात्यां टोपे और बांदा के नवाब अली में गहरी दोस्ती थी। इतिहासकारों के मुताबिक लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों के बीच युद्ध चल रहा था। इसी बीच रक्षाबन्धन का त्योहार पड़ा। रानी बिठूर में अपने मायके पहुंच गईं। अंग्रेज फौज तात्यां व अली बहादुर के साथ रानी को गिरफ्तार करने के लिए जोर लगा रही थी। इन स्थितियों में भी नवाब अली बहादुर बांदा से निकलकर फतेहपुर पहुंचे और वेश बदलकर नाव के जरिए आगे बढ़े। वह तीन दिन के बाद कानपुर के भैरवघाट पहुंचे। जहां से फिर नाव बदली और बिठूर के घाट पहुंचे। सुबह वह नाना साहब के गोपनीय ठिकाने पर पहुंचे और अपनी बहन लक्ष्मीबाई से राखी बंधवाई। बताते हैं कि रानी ने भी अपने भाई के इन्तजार में अन्न-जल ग्रहण नहीं किया था।

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