इतना अच्छा रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम आपने नहीं देखा होगा

Jun 24, 2020 - 14:54
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पानी 21वीं सदी की सबसे मुश्किल वस्तु और सर्वसुलभ भी। सर्वसुलभ इतना कि पूरी पृथ्वी का लगभग 71 फीसदी हिस्से पर पानी ही है। इसके अलावा 1.6 फीसदी पानी जमीन के नीचे है। यानि इतना सब होने पर भी सबसे मुश्किल वस्तु है पानी। पृथ्वी की सतह पर जो पानी है उसमें से 97 फीसदी महासागरों में है, जोकि नमकीन होने के कारण पीने योग्य नहीं है। मात्र 3 फीसदी पानी ही पीने योग्य है जिसमें से 2.4 फीसदी पानी उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के ग्लेशियरों में जमा हुआ है। कमोवेश यह भी पीने के लिए सुलभ नहीं है। अब बचता है मात्र 0.6 फीसदी पानी। वही जिसे पीने के लिए प्रयोग में लाते हैं। जोकि नदियों, झीलों और तालाबों में है। इसके अलावा जमीन के नीचे मौजूद 1.6 फीसदी पानी के भण्डार में से भी पीने हेतु पानी निकाला जाता है।

लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती, एक अनुमान है कि पृथ्वी पर लगभग 33 करोड़ खरब गैलन पानी है और ये कभी खत्म नहीं होता और न ही भविष्य में होगा। इस पर अब सवाल उठता है, तो फिर पानी हमारे लिए मुश्किल वस्तु क्यों है? क्योंकि पानी एक जगह से जरूर खत्म हो सकता है पर यह जल्द ही अपनी दूसरी जगह बना लेता है। यानि पानी अपना आशियाना बदलने में एक्सपर्ट हो चला है। और वो भी सिर्फ हमारी वजह से।

पानी केवल हमारी पहुंच से दूर हो रहा है और जो है भी, वह भी अशुद्ध, जिस कारण फैलती बीमारियों को देखते हुए इस पानी का इस्तेमाल नहीं हो सकता। इसका कारण है, अंधाधुंध जल का दोहन, लापरवाही से इस्तेमाल, सिंचाई और उद्योगों में बढ़ती मांग ने इसकी समस्या को और बढ़ाया है।

बुन्देलखण्ड में भी पानी एक समस्या के रूप में है। बरसात का पानी यदि हम सहेज सकें तो कम होते पानी की मुश्किल को काफी हद तक हम संभाल सकते हैं। और बुन्देलखण्ड को पानीदार बना सकते हैं।

बुन्देलखण्ड के बाँदा शहर में राजीव गांधी डीएवी काॅलेज के प्रिंसिपल डाॅ. रामभरत सिंह तोमर ने तो पूरे विद्यालय कैम्पस को वाटर हार्वेस्टिंग के लिए प्रयोग किया है। इतना शानदार वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम आपको भी शायद कहीं देखने को मिले। आईये जानते हैं कि उन्होंने इसे कैसे बनाया?

वाकई इतनी भारी बारिश में भी यह वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम इतना बढ़िया काम कर रहा था जिसकी कल्पना ही की जा सकती है। अगर उस मैदान की बात करें तो पूरा मैदान लबालब होने के बाद जब बारिश रूकी तो एक घंटे के अन्दर ही उस मैदान में एकत्र लगभग आधा पानी उसी जमीन में अवशोषित हो चुका था।

डाॅ. तोमर बताते हैं कि धीरे-धीरे इस जमीन की रिचार्जिंग कैपेसिटी बढ़ी है। यहां के दो हैण्डपंप पानी देना बन्द कर चुके थे। पर यह वाटर रिचार्ज सिस्टम इनके लिए वरदान साबित हुआ और आज यह पूरे वर्ष भर पानी देते हैं। शहरीकरण ने जगह-जगह प्राकृतिक व मानव निर्मित वाटर रिचार्जिंग सिस्टम को तबाह कर दिया है। घर का पानी नाली में बहते हुए बड़े नाले से होते हुए नदियों में मिल जाता है जो अन्तोगत्वा समुद्र में जाकर मिल जाता है।

अब सोचिये कि आपके घर का पानी बंगाल की खाड़ी तक पहुंच जाता है। आपने पानी अपने घर की बोरिंग से निकाला, प्रयोग किया और बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया। है न अजीब? इसी जगह हमने अगर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बना लिया होता तो जिस जमीन से हमने पानी लिया था उसे एक खास फिल्टर प्राॅसेस के बाद वापस जमीन में डाल दिया होता तो हमारे शहर का भूजल स्तर भी एक सा बना रहता।

इस बार जब पानी बरसे तो इसी पानी को बचाने पर हमारा सबसे ज्यादा ध्यान होना चाहिए। साथ ही घरों से व्यर्थ निकलने वाला पानी भी हम पृथ्वी के अन्दर सुरक्षित कर आने वाले कल के लिए बेहतर जीवन की कल्पना कर सकते हैं। इस पर जरूर सोचिए ! कितना पानी आप व्यर्थ में यूं ही अपनी जमीन का निकालते हैं और उसे हजारों किलोमीटर दूर समुद्र में फेंक देते हैं? अपनी आगे की पीढ़ी को क्या हम प्यास से मरता हुआ छोड़ जाना चाहते हैं? अगर नहीं तो डाॅ. रामभरत सिंह तोमर जैसी कोशिश आप भी कर सकते हैं।

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