दो दिनो की वर्षा कृषि एवं कृषकों के लिए संजीवनी-कुलपति
जून में समय से मानसून का आगाज हुआ लेकिन जुलाई के प्रथम पखवाडे में अपेक्षित वर्षा नही हो पाने के कारण दलहन तिलहन फसलों की बोवाई..
जून में समय से मानसून का आगाज हुआ लेकिन जुलाई के प्रथम पखवाडे में अपेक्षित वर्षा नही हो पाने के कारण दलहन तिलहन फसलों की बोवाई पिछड़ गई परन्तु अब मानसून पुनः सक्रिय हो गया है जिसके कारण पिछले दो दिनो में 48 मिमी वर्षा हुई। वैज्ञानिको के अनुसार यह वर्षा कृषि एवं कृषकों के लिये संजीवनी का काम करेगी।
कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. यू.एस. गौतम ने कृषकों को सलाह दी है कि मृदा नमी का समुचित उपयोग करते हुये स्थलाकृति के अनुसार फसल का चयन कर यथाशीघ्र बोवाई एवं रोपाई का कार्य पूर्ण कर लेना चाहिये। फसलों की बोवाई व रोपाई हमेशा वैज्ञानिक पद्धति से करना लाभकारी होता है।
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कुलपति ने किसानों को वैज्ञानिक पद्धति जैसे कि पंक्ति में बुवाई करना, जल जमाव वाले भूमि में मेड़ों पर दलहन- तिलहन फसलों की बोआई, उचित पोषक तत्व का प्रयोग, जल निकासी की व्यवस्था आदि अपनाने की सलाह दी है। उन्होने कहा कि वर्षा जल का संग्रह कर उसे बोआई के अलावा फसल की वृद्धि विकास के समय वर्षा न होने की स्थिति में सिंचाई के लिये भी की जा सकती है। उन्होने समय से बुआई, वर्षा जल संग्रह तथा उसके समुचित उपयोग पर जोर दिया।
विश्वविद्यालय के मौसम इकाई से प्राप्त आंकडें के अनुसार अब तक इस वर्ष कुल 16 वर्षा दिवस में 210 मिमी वर्षा हुई है। सबसे अधिक वर्षा 102 मिमी जून माह में जबकि 78.3 मिमी 20 जुलाई तक रिकार्ड किया गया है। कृषि मौसम विज्ञान इकाई के प्रभारी डॉ दिनेश साह ने बताया कि आमतौर पर जुलाई माह में 230 से 250 मिमी तक वर्षा होती है। मानसून के एक बार पुनः सक्रिय होने के कारण अगले कुछ दिनो में और वर्षा होने की सम्भावना है।
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डॉ0 साह ने बताया कि जुलाई में दूसरे पखवाड़े के मध्य तक मूंग, उर्द एवं तिल की बोवाई अवश्य कर लेनी चाहिय। देर से वावाई करने पर कटाई में विलम्ब के कारण रबी मौसम के फसल की बोवाई समय पर नहीं हो पाती है।तिल की उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज बुआई करें। प्रति हेक्टेयर 5-7 किलो बीज दर से पर्याप्त होती है। बुआई कतारों में 30 सेमी0 का फसला रखकर 2-3 सेमी0 की गहराई पर करें। बोआई हमेशा कुंड एवं मेंड विधि से करना लाभदायक होता है। तिल की बुवाई अच्छे जल निकास वाली हल्की व मध्यम मृदा विन्यास में करना चाहिये।
वर्षा जल का उपयोग करते हुये धान की रोपाई माह के अन्त तक अवश्य पूर्ण कर ले। लगातार वर्षा होने के कारण खरीफ फसलों की बुूवाई के लिये कम समय मिल पाता है। कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अनुसार खरीफ फसलों की बुवाई में समय अति महत्वपूर्ण होता है अतः वर्षा जल का समुचित उपयोग करतेे हुये इसे समय से कर लेना चाहिये। किसान भाई वर्षा जल संग्रह, समुचित जल निकास व्यवस्था, प्रमाणित बीज का चयन, समुचित पोषक तत्व का प्रबन्ध, मेड-कुड विधि से तिल की बुआई, कतारों में बुआई, राइबोजियम कल्चर से दलहनी फसलों के बीज का उपचार, खरपतवार प्रबन्धन अवश्य करें।
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