करवाचौथ से शुरू होगा बुंदेली महिलाओं का यह अनूठा पर्व

बुंदेली महिलाओं का लोक पर्व कार्तिक नहान मनवांछित फल पाने की लालसा से मनाया जाता है। कृष्ण भक्ति से सराबोर यह सांस्कृतिक ..

Nov 4, 2020 - 17:33
Nov 4, 2020 - 17:45
 0  2
करवाचौथ से शुरू होगा बुंदेली महिलाओं का यह अनूठा पर्व

बुंदेली महिलाओं का लोक पर्व कार्तिक नहान मनवांछित फल पाने की लालसा से मनाया जाता है।कृष्ण भक्ति से सराबोर यह सांस्कृतिक अनुष्ठान जहां एक और अध्यात्म तथा धर्म से प्रेरित है वहीं दूसरी ओर लोक कलाओं की साधना का अनुपम उदाहरण है।इसके अंतर्गत कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी से शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक लोक कला के विविध अंगों लोक चित्रांकन, लोक रागिनी, लोकनाट्य ,लोक गीत, लोक कथाओं के संरक्षण के साथ भक्ति का अखिल प्रभाव देखा जा सकता है।

कतकियारी या सखी

इस लोक पर्व में किसी गांव या मोहल्ले की महिलाएं टोलियां बनाकर भाग लेती हैं। इन्हें कतकियारी तथा टोली की प्रत्येक महिला को सखी कहते हैं।

बुंदेलखंड में ब्रह्म मुहूर्त में कतकियारियो के झुंड नंगे पैर प्रभाती गीत गाते हुए हर गली में देखी जा सकती हैं। इन कतकियारियो की कठोर आचार संहिता है। नित्य भूमि पर शयन, ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय के लगभग दो-तीन घंटे पूर्व जागरण, बिना तेल साबुन के स्नान करना होता है। केशो में कंघी, भोजन में नमक वर्जित है।

यह भी पढ़ें - विदेशों में मोरिंगा की मांग बढ़ी, बुंदेली किसानों को सुनहरा अवसर

इस बारे में महिला पत्रकार संगीता सिंह बताती हैं कि इस लोक पर्व का श्री गणेश कार्तिक कृष्ण चतुर्थी गणेश चैथ जिसे करवा चैथ के नाम से जाना जाता है के दिन से होता है।इसमें भाग लेने की इच्छुक महिलाएं उस दिन एक वस्त्र में गांठ बांधकर कार्तिक नहाने का संकल्प लेती हैं।  यह गांठ अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद खोली जाती है इस दिन गणेश व्रत रखा जाता है जो महिलाएं करवा चैथ का व्रत रखती हैं वह उसके साथ ही गणेश वृत तथा गांठ बांधने का विधान करती हैं।

जो महिलाएं पूरे माह व्रत पूरा नहीं कर पाती हैं वह संक्षेप में नहाती हैं।वह इच्छा नवमी को आंवले के वृक्ष के नीचे गांठ बांधकर संकल्प लेती हैं तथा शुक्ल पक्ष की दशमी से चतुर्थदशी में किसी तालाब नदी कुएं या अन्य जलाशय पर जाकर सामूहिक स्नान करती हैं।

जहां यह सुविधाएं नहीं हैं वहां घर पर स्नान करके कार्तिक पूजा के निर्धारित स्थान पर आना होता है। कार्तिक पूजा का विशेष अचार विधान हैं किसी मंदिर या देव चबूतरा पर एक छोटी चैकी जिसे जन भाषा में चैतरिया कहते हैं बनाई जाती है।उस पर नित्य सफेद वस्त्र बिछाकर रेत मिट्टी से राधा कृष्ण सूरज चांद तथा बिरवा (तुलसी) के धूलि चित्र बनाए जाते हैं।इसके बाद लोक गायन होता है।भोर के सन्नाटे को चीरते हुए इनकतकियारी की मधुर स्वर लहरी  सर्वप्रथम भगवान कृष्ण का जागरण तथा आवाहन करती है। इसके साथ ही सखियों की लोक रागिनी ,राधा कृष्ण की लीला प्रसंगों की कहानियां सखियाँ आपस में सुनती हैं।

खो जाते हैं कृष्ण कन्हैया

सूर्य जागरण का गीत पूरा होते ही गांव के पंडित जी आ जाते हैं वही चैतरिया पर विराजमान भगवान के धूल आलेखन का पूजन विधि पूर्वक कराते हैं।आचमन, पान समर्पण, दर्पण झूला के बाद कार्तिक व्रत का महत्व सुनाते हैं। फिर सभी सखियां भगवान की परिक्रमा करती हैं।नित्य प्रति कोई एक सखी क्रम से भगवान को अपने घर ले जाकर जलाशय में विसर्जित कर देती है।यह क्रम दीपावली के पूर्व चतुर्दशी (नरक चैदस) तक चलता है। कतकियारी उसी दिन मौन व्रत रखकर करई तुमरिया किसी जलाशय में विसर्जित कर देती हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि श्री कृष्ण यमुना में कहीं छुप गए हैं।

Radha Krishna

श्री कृष्ण को ढूंढती हैं सखियां

अगले दिन घाटों घाट श्रीकृष्ण को खोजने का प्रयास किया करती है कतकियारियां कृष्ण को ढूंढते ढूंढने विभिन्न नदी तालाबों आदि पर जाती हैं।वहां स्नान करती हैं वहां सखी छेड़ने का लोकनाट्य होता है। इसके अंतर्गत दो टोलियां बनती हैं एक पुरुषों की तथा दूसरी स्त्रियों की पुरुष गोप तथा सखा बनकर सखियों को छेड़ने माखन छीन कर खाने आदि का अभिनय करते हैं। सखियां को छेड़खानी की यह लोक नाट्य लीलाएं अत्यंत रोचक होती हैं।

यह भी पढ़ें - बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे, लीजिये पूरी जानकारी

यह लोक नाट्य परंपरा भैया दूज तक चलती है।उस दिन श्रीकृष्ण मिल जाते हैं उसी दिन उसी चैकी पर राई दामोदर की स्थापना करके नवमी तक पूजन क्रम चलता है। दशमी से चतुर्दशी तक पचबिकिया मनाते हैं।इन दिनों कतकिरिया व्रत रखती हैं वह फलाहारी लेती हैं चतुर्दशी के दिन भीत पांखें  का डला चढ़ाते हैं। इसके अंतर्गत मकान के विभिन्न अंगों जैसे खपरैल, दरवाजे खिड़कियां दीवारें आदि को व्यंजन पकवान के रूप में बनाते हैं भगवान के आभूषणों के भी पकवान बनाए जाते हैं।

विष्णु तुलसी विवाह

चतुर्दशी को दिन में विष्णु तुलसी के विवाह का आयोजन किया जाता है।इसमें धूमधाम से बैंड बाजों के साथ बारात निकाली जाती है।विवाह की रस्में जैसे कन्यादान पैर पखराई, डलिया, विदा पंगत होती है। विदा की डलिया के रूप में भीत पाखे का डला देते हैं।भीगी पलकों से दान दहेज के साथ तुलसी की विदाई होती है।अनेक निसंतान महिलाएं कन्यादान का पुण्य प्राप्त करने के लिए तुलसी के विवाह का आयोजन करती हैं।पूर्णिमा की रात्रि में कतकियारी किसी तालाब, नदी, नहर या जलाशय पर एकत्र होती है।

कागज की नाव बनाकर उस पर  आटा के प्रज्वलित दीपक रखकर उस नाव को जलाशय में प्रवाहित करती हैं।पूर्णिमा की चांदनी के उज्जवल प्रकाश में सैकड़ों हजारों दीपों का जल में प्रकाश अद्भुत दृश्य उत्पन्न करता है। पूर्णिमा को कतकियारी निराहार व्रत रखती हैं।अगले दिन ग्वाल चबैनी बांटकर व अन्य ग्रहण करती हैं।इस प्रकार कार्तिक नहान का लोक पर्व पूरा हो जाता है।महिलाओं में अधिक से अधिक संख्या में कार्तिक नहाने की ललक होती है।

What's Your Reaction?

Like Like 0
Dislike Dislike 0
Love Love 0
Funny Funny 0
Angry Angry 0
Sad Sad 0
Wow Wow 0