तीन महापुरूष जिन्होंने बदल दिया चित्रकूट
- भक्ति व सेवा का समन्वय कर दिया अद्भुत संदेश
- सद्गुरू रणछोड़दास जी महाराज, भारतरत्न नानाजी देशमुख व जगद्गुरू स्वामी रामभद्राचार्य जी महराज की सेवाओं का क्रम अनवरत जारी है
प्रेरणा बनी तारा, मिली लाखों को नेत्रज्योति पर्वतों, नदियों, झरनों, गुफाओं के साथ अतुलनीय वन प्रस्तर वाले अलौकिक सुषमा के धनी चित्रकूट का प्राकृतिक हास्य देखकर यहां पर आने वाला हर व्यक्ति अपनी सुध-बुध खो बैठता है। ऐसे ही कुछ भक्त यहां आए और त्याग और वैराग्य की इस भूमि पर उन्होंने वह चमत्कार कर दिखाए जिससे आधुनिक चित्रकूट का निर्माण हुआ। भले ही अभी चित्रकूट को विश्व के मानचित्र में अपने आपको स्थापित करने के लिए प्रतीक्षा हो, पर इन तीन महानुभावों ने चित्रकूट की उस पहचान का संकट खत्म कर दिया है, जिसे पहले केवल वैदिक धर्म को मानने वाले रामानुरागी भक्त ही जाना करते थे और यदा कदा आकर यहां पर जप और तप किया करते थे।
देश में पांचवें धाम और शक्ति पीठ के रूप् में सुविख्यात चित्रकूट में भौतिक विकास और पहचान दिलाने की बात करें तो इसका श्रेय निसंदेह रूप से सद्गुरू रणछोड़दास जी महराज को जाता है। महाराष्ट प्रांत के रत्नागिरि जिले के निवासी पूज्य बापू जब चित्रकूट की धरती पर आजादी के पहले आए तो सबसे पहले वह देवांगना ( देवताओं के आंगन) में पहुंचे और यहां पर सदियों से गुफा में स्थापित हनुमान जी को श्रीराम जी से मिलाने का माध्यम मानकर तपस्या प्रारंभ की। इसके साथ ही उन्होंने अनुसुइया आश्रम, झूरी नदी के किनारे, मडफा, कामदगिरि परिक्रमा के साथ अन्य सघन वन प्रस्तरों व पर्वतों की गुफाओं में तपस्या की। सद्गुरू तप करने के अलावा पीड़ित मानवता की सेवा के लिए भी देश भर में जाकर सेवा का कार्य करते थे। बिहार में आई आपदा के दौरान बंका में जब वह लोगों को भोजन देने का काम कर रहे थे तो अचानक मफतलाल कंपनी के मालिक अरविंद भाई आए और सेवा करने के लिए पूंछा तो सद्गुरू ने सहज भाव से कहा कि जो काम दिखाई पड़े कर लो। यह सेवा का काम ह, यहां कोई आदेश नहीं दिया जाता। अरविंद भाई खाना परोसने की सेवा में लग गए। समय बीतने के साथ अरविंद भाई का रिश्ता सद्गुरू के साथ गुरू व शिष्य का हो गया।
चित्रकूट में अचानक एक नेत्ररोग से पीड़ित महिला खंभे से टकराकर घायल हो गई। सद्गुरू ने उठाया और शिष्यों के माध्यम से उसे अस्पताल में दिखाया। अस्पताल में जब डाक्टरों ने उन्हें बताया कि महिला अंधी नही हैं। मोतियाबिंद के कारण इसकी नेत्रज्योति क्षीर्ण हो गई है। अगर इसका आपरेशन करा दिया जाए तो यह पुनः देख सकेगी। फिर क्या था सद्गुरू महिला को नेत्र ज्योति दिलाने के प्रण के साथ लग गए। शिष्यों के माध्यम से पहला नेत्रदान यज्ञ वर्ष 1950 में प्रमोदवन की उन कोठरियों में किया गया जो रींवा के महाराज ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ के लिए बनवाई थीं। तप की कोठरियों में मुम्बई के डाक्टरों की टीम ने एक ही दिन में 950 आपरेशन किए। तारा का पहला आपरेशन हुआ और इस नेत्रदान यज्ञ का नाम तारा नेत्रदान यज्ञ हो गया। इस दौरान मुम्बई से आये मुख्य चिकित्सक डा0 वीएस जोबनपुत्रा को चित्रकूट इतना भाया कि उन्होंने सद्गुरू से अस्पताल बनाने की विनती की। फिर क्या था डा0 जोवनपुत्रा ने मुम्बई की शानदार जिंदगी छोड़कर सपरिवार चित्रकूट में रहने का निर्णय लिया। सेठ जी ने सभी व्यवस्थाओं को जुटाना प्रारंभ किया और देखते ही देखते जानकीकुंड चिकित्सालय ने मूर्त रूप लेना शुरू कर दिया। इस दौरान यहां की व्यवस्था डा0 वीके जैन के हाथों में आ गई और देखते ही देखते यह देश में बड़ा आंखों का अस्पताल हो गया। आज की तारीख में प्रतिदिन 700 से 800 आपरेशन यहां पर हो रहे हैं। साल भर में लगभग डेढ़ लाख आपरेशन होते हैं। विदेशों के डाक्टर यहां पर ट्रेनिंग लेने आते हैं। इसी दौरान शिक्षा, स्वावलंवन व महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में भी सद्गुरू टस्ट ने काम करना प्रारंभ कर दिया। लातूर का भूकंप हो या फिर देश में आने वाली अन्य आपदाएं इस ट्रस्ट के स्वयंसेवकोें ने लोगों को वस्त्र व भोजन बांटने का काम करते हैं।
वानप्रस्थी नानाजी का समाज बदलने का संकल्प चित्रकूट को गौरव दिलाने वाले दूसरे व्यक्ति भारतरत्न नाना जी देशमुख का नाम अग्रणी रूप से लिया जा सकता है। जनसंघ के दिमाग माने जाने वाले भारतरत्न नानाजी देशमुख देश के इकलौते ऐसे नेता रहे जिन्होंने कांगे्रेस को सत्ता से हटाने का संकल्प पूरा करने के साथ ही स्वेच्छापूर्वक राजनीति से सन्यास की घोषणा कर सभी को चैंका दिया। उन्होंने अपना पहला कार्यक्षेत्र उस बलरामपुर को बनाया जहां की जनता ने उन्हें जिताकर संसद में भेजा था। बिना किसी आर्थिक अनुदान के यहां पर पानी की समस्या का निराकरण करने के साथ ही लोगों को स्वावलंवन और विवादमुक्त स्वस्थ रहने का पाठ पढ़ाने के बाद उन्होंने चित्रकूट का रूख किया।
पीड़ित मानवता की सेवा करने का प्रण लेकर अपना जीवन खपाने वाले नाना जी के आराध्य वनवासी राम थे। उनकी नजर में राम का दर्शन बिलकुल अलग था। वह श्री राम को परमात्मा से ज्यादा समाजसुधारक मानते थे। इसकी स्पष्ट छाप राम दर्शन में मिलती है। यहां पर पांच मंदिरों के समूह में जहां विश्व भर में होने वाली रामलीलाओं, पुस्तकों व अन्य तरह से चरितार्थ राम के चरित्र को प्रस्तुत करने की सामग्री मौजूद है। वहीं ताड़का वध हो या फिर अहिल्या उद्वार सहित अन्य प्रसंगों को अलग ही ढंग से प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने श्री राम को विश्व के पहले समाजसुधारक के रूप में प्रस्तुत करने का काम किया। उनके द्वारा किए गए सेवाकार्यों की बात करें तो चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, सुरेंद्रपाल विद्यालय, आरोग्यधाम जेआरडीटाटा इंस्टीट्यूट, उद्यमिता विद्या पीठ, वनवासी बाल व बालिका आश्रम, गनीवां कृषि फार्म सहित बहुत सी संस्थाएं खड़ी कीं। सफल दंपती योजना उनका एक सफल प्रयोग रहा। जिसमें उन्होंने 500 गांवों को विवादमुक्त, स्वस्थ, स्वावलंबी बनाने का काम किया। उनके इस काम को देखने कई बार सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के जज भी आए। उनके प्रकल्पों के दर्शन करने के लिए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उप राष्ट्रपति सहित मुख्यमंत्री व अन्य मणमान्य व्यक्ति अक्सर आते रहते थे।
खुद दिव्यांग, बने हजारों दिव्यांगों की रोशनी जौनपुर का रहने वाला स्ंापूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का एक स्कालर गिरधर मिश्र चित्रकूट आता है। उसे अपने आराध्य श्री राघव जी की उर्जा में रचा बसा यह क्षेत्र अत्यंत विशेष दिखाई देता है। सद्गुरू सेवा संघ ट्रस्ट के रघुवीर मंदिर में श्री रामकथा सुनाते सुनाते वह चित्रकूट में आजीवन रहने का संकल्प कर लेते हैं। अपनी शिक्षा तो काशी में जाकर पूरी करते हैं लेकिन चित्रूकूट की धरती पर लगातार आते रहते हैं। कभी कर्वी में सच्चा आश्रम में तो कभी चित्रकूट के अन्य संतों के पास। इस दौरान छह महीने के पयोवृत अनुष्ठान के दौरान उनकी मुलाकात गुजरात के राजकोट की रहने वाली गीतादेवी से होती है। फिर आंखों से दिव्यांग गिरघर को आंखों के रूप में बड़ी बहन गीता देवी के रूप में आंखें मिल जाती हैंै। देश भर में घूम-घूम कर गिरधर श्रीराम कथा का पाठ अपने विशेश अंदाज में कर लोकप्रिय हो जाते हैं।
शिष्यों की संख्या लाखों में पहुंचने लगती है। गिरघर अपनी तीक्ष्ण मेघा के बल पर जगद्गुरू बन जाते हैं और नाम होता है रामभद्राचार्य। तुलसी पीठ की स्थापना के साथ ही तुलसी प्रज्ञाचक्षु विद्यालय की नींव विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंहल डालते हैं तो जगद्गुरू अपने सपने को बड़ा कर दिव्यांग विश्वविद्यालय के रूप में उसे पुष्पित और पल्लिवित करते हैं। बिना किसी सरकारी मदद के बड़ा प्रकल्प स्थापित करने वाले जगद्गुरू स्वामी रामभद्राचार्य आज पद्मविभूषण की उपाधि से विभूषित हैं। हिंदी, अंग्रेजी, सहित देश व विेदेश की विभिन्न भाषाओं में श्री रामकथा, वेद पुराण की मीमांशाओं पर कथा कहने की महारथ रखने वाले जगद्गुरू के द्वारा अभी तक हजारों विकलंागों को रोजगार से जोड़ा जा चुका है। विश्वविद्यालय हो या फिर बाल-बालिका विद्यालय या नेत्रहीन विद्यालय सभी जगहों पर निशुल्क भोजन व आवास का प्रबंध जगद्गुरू स्वयं ही करते हैं।
वैसे इनके अलावा चित्रकूट के लगभग सभी अखाड़े व अन्य महंत दरिद्र नारायण की सेवा का काम लगातार करते रहते हैं।
- आनंद सिंह पटेल
(लेखक चित्रकूट के समाजसेवी हैं)
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