शक्तिपीठ है कामदगिरि पर्वत, राम ने रावण पर विजय को किया था शक्ति पूजा
कामदगिरि से तीन योजन या 12 कोस या 36 किलोमीटर के व्यास में चारों ओर परम पावन चित्रकूट...
मत्स्य पुराण सहित कई पुराणों में है प्रमाणिकता
चित्रकूट। चित्रकूट महिमा अमित कही महामुनि गाइ। आय नहाए सरित वर सिय समेत दोउ भाइ। प्रथम बार महर्षि वाल्मीकि ने राम जी के आश्रम पहुंचने पर चित्रकूट की महिमा को विस्तृत रूप से सुनाया था और वहां तपस्या के योग्य होने से रहने की सलाह दी थी। चित्रकूट अपने आप में विश्व का दिव्य तीर्थ है। जहां भगवान श्रीराम, माता जानकी और लक्ष्मण के साथ सदा सर्वदा विराजते हैं।
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वरिष्ठ साहित्य रामलाल द्विवेदी ने बताया कि कामदगिरि से तीन योजन या 12 कोस या 36 किलोमीटर के व्यास में चारों ओर परम पावन चित्रकूट है। जिसका तमाम पुराणों में समग्र वर्णन मिलता है। सृष्टि रचना के विस्तार के लिए ब्रह्मा जी ने कठोर तपस्या करके यहीं यज्ञ किया था। वही सतयुग कालीन यज्ञ वेदी भगवान शंकर के पास स्थित है। इसी चित्रकूट में ही सप्तर्षियों के रुप में प्रसिद्ध महर्षि अत्रि और अंगिरा ने तपस्या किया था और आर्ष दृष्टि से वेदों का दर्शन करके विस्मृत वेदों को पुनः जीवंत किया था। महासती अनसूया एवं अत्रि के पुत्र रूप में त्रिदेव में विष्णु के अंशावतार भगवान दत्तात्रेय, शिव के अंश दुर्वासा और ब्रह्मा के अंश चंद्र देव ने जन्म लिया था। अंगिरा के पुत्र बृहस्पति जो देवो के गुरु बने थे ,यहीं तपस्यारत थे। आगे विवेचना कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार आचार्य रामलाल द्विवेदी प्राणेश ने बताया कि चित्रकूट क्यों एक शक्तिपीठ भी है। जिसकी जानकारी ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंच पाई है।
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वास्तव में भगवान श्रीराम दुष्टों के संहार, तपस्यारत संतो को उनकी तपस्या के फल स्वरूप दर्शन देने के लिए ही वनवास में आए थे। ’राम ने यहां रावण वध के पूर्व शक्ति पूजा भी की थी। राजा के राजकुमार दशरथ नंदन राम तपस्या करके ही मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर निकले थे और इस चित्रकूट ने ही राम को रामत्व प्रदान किया था। शक्ति की आराधना करने वाले भक्तों को मातायें ज्यादा प्रिय लगती है कि मातृशक्तियां ज्यादा करुणामयी होने से शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इसीलिए सीताराम, राधेकृष्ण, उमामहेश्वर में शक्ति का नाम आगे रखा जाता है। चित्रकूट में मनोकामनाएं इसीलिए सिद्ध होती हैं कि राम का नाम जपते हुए भी माता सीता प्रसन्न होती है क्योंकि यह माता सीता का ही शक्तिपीठ है। भागवत के एक श्लोक के अनुसार सीता विन्ध्ये विंध्याधिवासिनी। सह्याद्रावेकवीरा तु हरिश्चंद्रे तु चंद्रिका। देवी भागवत, मत्स्य पुराण एवं चित्रकूट माहात्म्य तंत्र चूड़ामणि से चित्रकूट में शक्तिपीठ होना प्रामाणिक हो जाता है।
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मत्स्य पुराण के अनुसार कामदगिरि पर्वत पर भगवान विष्णु के चक्र से सती माता का दाहिना स्तन गिरा था। इसलिए शक्तिपीठ के रूप में इसकी मान्यता है। तांत्रिक लक्ष्मी कवच में भी वर्णन आता है। सुखदा मोक्षदा देवी चित्रकूट निवासिनी। भयं हरेद् सदा पायाद् भवबंधनाद् विमुच्यते। इस प्रकार संतों को भक्तों में मोक्ष देने वाली साक्षात माता सीता यहां विराजित है जो भव बंधन से भक्तों को छुड़ा देती है। जानकारी के अनुसार परिक्रमा पथ में तुलसीदास के गुरु स्थान नरहरिदास के मंदिर के ठीक पहले पत्थर पर उकेरी हुई देवी माता का लघु विग्रह या मूर्ति स्थित है। जहां चक्र का निशान भी है, क्योंकि वृहद मूर्ति नहीं है और ज्यादा प्रचार नहीं है। दूसरा साक्षी गोपाल मंदिर में नौ देवियों की छोटी प्रतिमाएं हैं।