शरदोत्सव के दूसरे दिन भक्ति गायन और शबरी लीला ने दर्शको का मन मोहा

दीनदयाल शोध संस्थान में आयोजित हो रहे शरदोत्सव की दूसरी सांस्कृतिक संध्या में सुप्रसिद्ध साधो द बैण्ड मुम्बई के भक्ति...

Oct 19, 2024 - 00:05
Oct 19, 2024 - 00:08
 0  2
शरदोत्सव के दूसरे दिन भक्ति गायन और शबरी लीला ने दर्शको का मन मोहा

चित्रकूट। दीनदयाल शोध संस्थान में आयोजित हो रहे शरदोत्सव की दूसरी सांस्कृतिक संध्या में सुप्रसिद्ध साधो द बैण्ड मुम्बई के भक्ति गायन एवं भक्तिमती शबरी लीला नाट्य की प्रस्तुति ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। 

शरदोत्सव के दूसरे दिन रामायणी कुटी के महंत रामहृदय दास, जानकी महल आश्रम के महंत सीताशरण दास, सनकादिक महाराज, गोविन्द दास, बलराम दास एवं मप्र सरकार की नगरीय निकाय एवं आवास राज्य मंत्री प्रतिमा बागरी, सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट के निदेशक डॉ बीके जैन, मध्य प्रदेश आजीविका मिशन के अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी संजय सराफ, बांदा कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ नरेंद्र प्रताप सिंह, मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा भूपेश द्विवेदी, डीआरआई के कोषाध्यक्ष वसंत पंडित ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। मंत्री ने कहा कि वैभव को त्याग कर समाज को प्रेरणा देने का काम नाना जी देशमुख ने किया है। समाज और देश की सेवा करने वाले व्यक्ति पूज्य हो जाते हैं। नाना जी ने संस्कृति, परंपरा और मानव सेवा का पाठ पढ़ाया है।

यह भी पढ़े : BSNL ने डिवाइस टू डिवाइस (D2D) कॉलिंग सुविधा लॉन्च की : अब बिना सिम कार्ड के कर सकेंगे बात

रामायणी कुटी के महंत राम हृदय दास ने कहा कि शरद पूर्णिमा के अवसर पर चित्रकूटधाम में शरदोत्सव मनाने की अनुपम छटा है। बड़ा संयोग है कि चंद्र के अमृत के रूप मे इस दिन नानाजी का अवतरण हुआ और उन्होंने सत्ता, पद को ठुकराते हुए समाज जीवन में कुछ करने एवं पं. दीनदयाल जी के विचारों को प्रासंगिक रूप देने, देश में अभिनव काम कर दिखाया है। सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए सविता दाहिया सतना के निर्देशन में लीला नाट्य भक्ति शबरी की प्रस्तुति दी गई। प्रस्तुति का आलेख योगेश त्रिपाठी एवं संगीत संयोजन मिलिन्द त्रिवेदी ने किया। लीला नाट्य में बताया गया है कि पिछले जन्म में माता शबरी एक रानी थीं, जो भक्ति करना चाहती थीं, लेकिन माता शबरी को राजा भक्ति करने से मना कर देते हैं। तब शबरी मां गंगा से अगले जन्म में भक्ति करने की बात कहकर गंगा में डूब कर अपने प्राण त्याग देती हैं। अगले दृश्य में शबरी का दूसरा जन्म होता है और गंगा किनारे गिरि वन में बसे भील समुदाय को शबरी गंगा से मिलती हैं। भील समुदाय शबरी का लालन पालन करते हैं और शबरी युवावस्था में आती हैं तो उनका विवाह करने का प्रयोजन किया जाता है, लेकिन अपने विवाह में जानवरों की बलि देने का विरोध करते हुए, वे घर छोड़ कर घूमते हुए मतंग ऋषि के आश्रम में पहुंचती हैं। जहां ऋषि मतंग माता शबरी को दीक्षा देते हैं। आश्रम में कई कपि भी रहते हैं जो माता शबरी का अपमान करते हैं। अत्यधिक वृध्दावस्था होने के कारण मतंग ऋषि माता शबरी से कहते हैं कि इस जन्म में मुझे तो भगवान राम के दर्शन नहीं हुए, लेकिन तुम जरूर इंतजार करना। भगवान जरूर दर्शन देंगे। 

यह भी पढ़े : बाँदा : जल संरक्षण पर विशेष बैठक सम्पन्न : जनपद में किए गए कार्यों की समीक्षा

भगवान राम और माता शबरी मिलाप प्रसंग में भगवान राम माता शबरी को नवधा भक्ति कथा सुनाते हैं और शबरी उन्हें माता सीता तक पहुंचने वाले मार्ग के बारे में बताती हैं। लीला नाट्य के अगले दृश्य में शबरी समाधि ले लेती हैं। अंतिम प्रस्तुति में मुम्बई के सुप्रसिद्ध साधो द बैंड के कलाकारों ने मयंक कश्यप के निर्देशन में कैलाश खेर के गीत ओरी सखी मंगल गावो री, धरती अम्बर सजाओ री प्रस्तुत किया तो दर्शक झूम उठे। इसके बाद कई प्रस्तुतियां देकर समां बांध दिया। गाने के बीच जय श्रीराम के जयघोष गूंजते रहे।

What's Your Reaction?

Like Like 0
Dislike Dislike 0
Love Love 0
Funny Funny 0
Angry Angry 0
Sad Sad 0
Wow Wow 0