प्राकृतिक व जैविक खेती का मॉडल विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किया गया - सूर्यप्रताप शाही

प्राकृतिक व जैविक खेती का मॉडल विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किया गया, जो एक सराहनीय कदम है...

प्राकृतिक व जैविक खेती का मॉडल विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किया गया - सूर्यप्रताप शाही

खेती बाड़ी-दूध दूहान, यही है किसान की पहचान - सूर्यप्रताप शाही

बाँदा : प्राकृतिक व जैविक खेती का मॉडल विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किया गया, जो एक सराहनीय कदम है। विश्वविद्यालय में लगाये गये ड्रैगन फ्रूट, किन्नू, मौसमी, खजुर, अंजीर ईत्यादि आज फल दे रहे हैं। वर्तमान सरकार द्वारा चित्रकूट व झाँसी मण्डल के लिये कई महत्वपूर्ण योजनायें संचालित हो रही हैं। जिसमें प्रमुख रूप से सिंचाई के लिये ड्रिप व स्प्रिंकलर के यन्त्रों पर 50 प्रतिशत तक का अनुदान देय है। जैविक खेती के लिये लगभग 17 लाख किसान प्रदेश में लाभान्वित हैं। चना मसूर व गेहूं की उपज लगभग 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ी है।

यह वक्तव्य कृषि विश्वविद्यालय, बाँदा द्वारा आयोजित तीन दिवसीय किसान मेले के द्वितीय दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में पधारे प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने किसानों को सम्बोधित करते हुये दिया।

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उन्होने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय, बाँदा में छुट्टा व घुमन्तु जानवरों को परिसर के अन्दर रखकर उन्हे संरक्षित किया जा रहा है। इस कार्य के लिये वर्तमान कुलपति एवं विश्वविद्यालय परिवार को बधाई। गोबर और गोमुत्र का प्रयोग भी इस कार्य से सम्भव हो पायेगा।  कई खाद्यानों के बीज किसानों को मुफ्त में दिये गये हैं। सांवा, कोदो, मडूवा हमारे खेतों के साथ-साथ खाने से भी गायब हो गये हैं। वर्तमान प्रदेश एवं केन्द्र की सरकार मिलेट उत्पादन व उपयोग पर बहुत सारे कार्यक्रम एवं जागरूकता अभियान चला रही है।

ज्ञात हुआ है कि विश्वविद्यालय व कृषि विज्ञान केन्द्र के गृह विज्ञान के वैज्ञानिक इन मिलेट से लड्डु, इडली, रोटी व अन्य खाद्य पदार्थों को बनाने को प्रशिक्षण दे रहीं हैं। जो एक सराहनीय कदम है। इसके लिये सरकार श्री अन्न के बीज 48388 किसानों को मुफ्त में बाटें हैं। लगभग 50 हजार किसानों को सरसो (2 किग्रा.), चना (16 किग्रा.) व मसूर (08 किग्रा.) के बीज मुफ्त में बाटें गये हैं। विश्वविद्यालय में पशु चिकित्सा महाविद्यालय को धन आवंटित कर इसे शुरू करने की पहल सरकार द्वारा की जा रही है। कार्यक्रम के दौरान किसान मेला के स्मारिका का विमोचन, स्टॉल एवं कृषि प्रदर्शनी का भ्रमण कृषि मंत्री एवं अन्य अतिथियों द्वारा किया गया।

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आज मंत्री द्वारा विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित केनकथा गौ संवर्धन एवं संरक्षण इकाई का उद्घाटन फीटा काटकर किया गया है। इस इकाई में केनकथा नस्ल की गायों का संवर्धन एवं संरक्षण किये जाने की योजना है। मंत्री जी ने उद्यान महाविद्यालय के फल बागों का अवलोकन किया। अधिष्ठाता, उद्यान प्रो. एस.वी.द्विवेदी ने विभिन्न फलों ड्रैगन फ्रूट, किन्नू, मौसमी, संतरा, खजुर, अंजीर, बेर, जामुन, बेल, आंवला, नींबू ईत्यादि फसलों पर चल रहे शोध कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताया।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि बाँदा चित्रकूटधाम के सांसद, आर. के. सिंह पटेल ने कहा कि पहले गाय घर में बांधी जाती थी और किसान खेतों में काम करता था, परन्तु आज गाय रोड व खेत पर है और किसान घर पर रहता है। पहले खेती-बाड़ी का चलन था, आज खत्म हो रहा है। कृषि विश्वविद्यालय एवं कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक कृषि तकनीकियों के प्रसार के लिये घर-घर जा रहे हैं, परन्तु उसे अपनाने वाले बहुत कम किसान हैं। विश्वविद्यालय द्वारा दलहन तिलहन व मोटे अनाज पर अच्छा कार्य किया जा रहा है।

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कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय परिसर में और वृहद स्तर पर किसान मेला कराया जायेगा, जिसमें अन्य प्रदेश के किसान भी प्रतिभाग कर सकें, ऐसा प्रयास किया जा रहा है। पिछले दो वर्षों में कई चुनौतियों के बावजूद विश्वविद्यालय का पूरा परिवेश बदला हुआ है। विश्वविद्यालय में लगभग 100 एकड़ में प्राकृतिक खेती की जा रही है, जिसके लिये हमारे वैज्ञानिक सराहना के पात्र हैं। विश्वविद्यालय में केन वैली की गाय केनकथा व बुन्देलखण्डी बकरी के संरक्षण का कार्य किया जा रहा है। विश्वविद्यालय में एक ईको पार्क भी बनाया जा रहा है। अगले दो-तीन वर्षों में विश्वविद्यालय वर्षा जल संरक्षित कर एक-एक बूंद जल का उपयोग करेगा।

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दलहन अनुसंधान केन्द्र, कानपुर के निदेशक डा. जी.पी.दीक्षित ने कहा कि बुन्देलखण्ड दाल का कटोरा कहा जाता है। किसान इन फसलों की नई प्रजातियों को उगाकर अधिक धन अर्जित कर सकता है। चना मसूर महत्वपूर्ण फसल है। आज मेले में लगभग 3000 से अधिक किसान बुन्देलखण्ड के विभिन्न जिलों से तथा विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन डा. धीरज मिश्रा और डा. बी.के.गुप्ता ने किया।

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