प्रचार के अभाव में मुद्दे हुए गौण, अब पार्टी और कार्यकर्ताओं की मेहनत का चुनाव
तामझाम, शोरशराबा और भीड भाड से दूर साइलेंट फेज में चल रहे चुनाव प्रचार में इस बार चुनावी मुद्दे भी गौण हो गए हैं। महोबा जिले की..

महोबा,
तामझाम, शोरशराबा और भीड भाड से दूर साइलेंट फेज में चल रहे चुनाव प्रचार में इस बार चुनावी मुद्दे भी गौण हो गए हैं। महोबा जिले की दोनों विधानसभा सीटों महोबा व चरखारी पर चुनावी मुकाबला पार्टी की छवि , कार्यकर्ताओं का जोर और प्रत्याशी की मेहनत पर आकर टिक गया है।
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महामारी के पहले चुनावों में भारी भरकम खर्च, भारी लाव लश्कर, शोर शराबे की परम्परा रही है। कोरोना की धमक के चलते चुनाव आयोग द्वारा रैलियों और सभाओं पर लगाई गई रोक से न शोर, न अनावश्यक भीड़ , गुपचुप अंदाज में चुनावी अभियान जारी है ।
महोबा सीट पर भाजपा ने निवर्तमान विधायक राकेश गोस्वामी को, समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस छोडकर सपा में आए मनोज तिवारी को, कॉंग्रेस ने पूर्व विधान परिषद सदस्य जयवंत सिंह के पुत्र सागर सिंह को महोबा से मैदान में उतारा है जबकि बसपा ने कारोबारी संजय साहू को चुनाव मैदान में उतारा है।
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एक लंबे समय के बाद भारतीय जनता पार्टी ने 2017 में महोबा जिले में राकेश गोश्वामी की उम्मीदवारी में जीत हासिल की थी, जबकि इसके पूर्व समाजवादी पार्टी 2012 में एवं 2007 में बहुजन समाज पार्टी को जिले का नेतृत्व मिला। महोबा जिले में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, व पलायन बड़े मुद्दे हैं। जिले में रोज़गार का कोई बडा केंद्र न बन सका। क्रेशर उद्योग भी दम तोडने की कगार पर है।
सरकारी नीति के अनुसार कार्य न कर पाने के कारण क्रशर कारोबार मध्यप्रदेश स्थानांतरित हो रहा है। रोजगार जिससे की एक बड़े मजदूर तबके का भला हो सके , युवाओं को रोजगार मिल सके, पलायन रुक सके अभी तक क्षेत्र में ऐसी कोई योजना नजर नहीं आयी वही दूसरी तरफ शिक्षा के नजरिये से भी जिले ने कोई विकास नहीं किया एक मात्र राजकीय बालिका विद्यालय , एक महाविद्यालय जो पूर्व से ही चल रहे हैं बार बार माँग के कोई नया विद्यालय , महाविद्यालय जिले का न मिल पाया, इसी प्रकार कई बार केंद्र एवं प्रादेशिक स्तर पर घोषणा के वावजूद मेडिकल कालेज या बेहतर स्वास्थ्य सेवा से सम्बंधित कोई भी विकास जिले को नहीं मिला है।
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