लोकतंत्र सेनानी 26 को काला दिवस मनाएंगे, क्यों लगा आपातकाल जानिये
जनपद बांदा के लोकतंत्र सेनानी आपातकाल की 46 वीं वर्षगांठ काला दिवस के रूप में मनाएंगे कोविड महामारी के चलते इस साल कोई..
जनपद बांदा के लोकतंत्र सेनानी आपातकाल की 46 वीं वर्षगांठ काला दिवस के रूप में मनाएंगे कोविड महामारी के चलते इस साल कोई बड़ा कार्यक्रम आयोजित भी किया जा रहा है।
लोकतंत्र सेनानी कल्याण परिषद के जिला अध्यक्ष अतर वीर सिंह ने बताया कि आगामी 26 जून को संगठन के कार्यालय में काला झंडा लगाया जाएगा साथ ही एक पट्टीका लगा कर उसमें आपातकाल विरोधी वाक्य लिखे जाएंगे।जिले के सभी लोकतंत्र सेनानी भी अपने घरों में काले झंडे लगाकर ऐसी ही पट्टिका लगाएंगे।सभी लोग काली पट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शित करेंगे।
यह भी पढ़ें - बेकाबू कार बंजारों की झोपड़ी में घुसी, चार को रौंदा एक मासूम की मौत
- इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था।
आज से 45 साल पहले इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया था। 25 जून, 1975 को लगा आपातकाल 21 महीनों तक यानी 21 मार्च, 1977 तक देश पर थोपा गया।
25 जून और 26 जून की मध्य रात्रि में तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर करने के साथ ही देश में पहला आपातकाल लागू हो गया था।
यह भी पढ़ें - अवैध संबंधों के चलते मां ने ही रची थी बेटी की हत्या की साजिश, मां सहित चार गिरफ्तार
- नेताओं की गिरफ्तरियां
आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे। अभिव्यक्ति का अधिकार ही नहीं, लोगों के पास जीवन का अधिकार भी नहीं रह गया था। 25 जून की रात से ही देश में विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया था।
जयप्रकाश नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नाडीस आदि बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया था। जेलों में जगह नहीं बची थी। आपातकाल के बाद प्रशासन और पुलिस के द्वारा भारी उत्पीड़न की कहानियां सामने आई थीं। प्रेस पर भी सेंसरशिप लगा दी गई थी।
हर अखबार में सेंसर अधिकारी बैठा दिया गया, उसकी अनुमति के बाद ही कोई समाचार छप सकता था। सरकार विरोधी समाचार छापने पर गिरफ्तारी हो सकती थी। यह सब तब थम सका, जब 23 जनवरी, 1977 को मार्च महीने में चुनाव की घोषणा हो गई।
यह भी पढ़ें - बांदा की जिला पंचायत सदस्य धार्मिक स्थल पर मिलीं
- आपातकाल की पृष्ठभूमि
लालबहादुर शास्त्री की मौत के बाद देश की प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा गांधी का कुछ कारणों से न्यायपालिका से टकराव शुरू हो गया था। यही टकराव आपातकाल की पृष्ठभूमि बना था। आपातकाल के लिए 27 फरवरी, 1967 को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने बड़ी पृष्ठभूमि तैयार की।
एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सुब्बाराव के नेतृत्व वाली एक खंडपीठ ने सात बनाम छह जजों के बहुतम से से सुनाए गए फैसले में यह कहा था कि संसद में दो तिहाई बहुमत के साथ भी किसी संविधान संशोधन के जरिये मूलभूत अधिकारों के प्रावधान को न तो खत्म किया जा सकता है और न ही इन्हें सीमित किया जा सकता है।
यह भी पढ़ें - हमीरपुर : ट्रक की टक्कर से रिटायर्ड दरोगा समेत दो युवकों की मौत
- चुनाव को निरस्त होने पर इमर्जेंसी लगाने का फैसला
1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी को जबर्दस्त जीत दिलाई थी और खुद भी बड़े मार्जिन से जीती थीं। खुद इंदिरा गांधी की जीत पर सवाल उठाते हुए उनके चुनावी प्रतिद्वंद्वी राजनारायण ने 1971 में अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर इंदिरा गांधी के सामने रायबरेली लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने वाले राजनारायण ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया है।
मामले की सुनवाई हुई और इंदिरा गांधी के चुनाव को निरस्त कर दिया गया। इस फैसले से आक्रोशित होकर ही इंदिरा गांधी ने इमर्जेंसी लगाने का फैसला लिया।
यह भी पढ़ें - रोजगार देने में नंबर वन पर उप्र की एमएसएमई, दूसरे नंबर पर गुजरात