चित्रकूट : शास्त्रों और पुराणों में कई स्थानों पर किया गया अन्नदान का उल्लेख : त्रिपाठी

भगवान श्री कृष्ण के जलविहार एवं तुलादान के बाद 56 प्रकार के व्यंजनों से महाभोग...

चित्रकूट : शास्त्रों और पुराणों में कई स्थानों पर किया गया अन्नदान का उल्लेख : त्रिपाठी

महाभोग और प्रसाद वितरण के साथ हुआ जल विहार कार्यक्रम का यादगार समापन
 
चित्रकूट। भगवान श्री कृष्ण के जलविहार एवं तुलादान के बाद 56 प्रकार के व्यंजनों से महाभोग लगाया गया और विशाल भंडारे का आयोजन हुआ। जिसमें गरीबों को भोजन कराकर, वस्त्र देकर उनका सम्मान किया गया।

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प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित नारायण दत्त त्रिपाठी ने बताया कि एक बार भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रदेव के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था। तब उन्हें लगातार सात दिन भूखा रहना पड़ा था। इसके बाद उन्हें सात दिनों और आठ पहर के हिसाब से 56 व्यंजन खिलाए गए थे। इस घटना के बाद से ही श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाने की परंपरा आरंभ हुई। इसमें 56 प्रकार के आहार होते हैं, जो भगवान श्री कृष्ण को प्रिय हैं।  भक्त (भात), सूप (दाल), प्रलेह (चटनी), सदिका (कढ़ी), दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी),  सिखरिणी (सिखरन), अवलेह (शरबत), बालका (बाटी), इक्षु खेरिणी (मुरब्बा), त्रिकोण (शर्करा युक्त), बटक (बड़ा), मधु शीर्षक (मठरी), फेणिका (फेनी), परिष्टाश्च (पूरी), शतपत्र (खजला), सधिद्रक (घेवर), चक्राम (मालपुआ), चिल्डिका (चोला), सुधाकुंडलिका (जलेबी), धृतपूर (मेसू), वायुपूर (रसगुल्ला),  चन्द्रकला (पगी हुई), दधि (महारायता), स्थूली (थूली), कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), खंड मंडल (खुरमा), गोधूम (दलिया), परिखा,  सुफलाढया (सौंफ युक्त), दधिरूप (बिलसारू),  मोदक (लड्डू), शाक (साग), सौधान (अधानौ अचार), मंडका (मोठ), पायस (खीर), दधि (दही), गोघृत, हैयंगपीनम (मक्खन), मंडूरी (मलाई), कूपिका, पर्पट (पापड़), शक्तिका (सीरा), लसिका (लस्सी), सुवत, संघाय (मोहन), सुफला (सुपारी), सिता (इलायची), फल, तांबूल, मोहन भोग, लवण, कषाय, मधुर, तिक्त, कटु, अम्ल का भोग लगाया जाता है। पंडित नारायण दत्त त्रिपाठी ने बताया कि भंडारे की परंपरा भारत में प्राचीन काल से चली आ रही है। समय के साथ अब इसका स्वरुप बदल गया है।

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प्राचीन काल में यह अन्नदान के रुप में जाना जाता था। अन्नदान का उल्लेख शास्त्रों और पुराणों में कई स्थानों पर किया गया है। उन्होंने कहा कि राजे-महाराजे यज्ञ, हवन और धार्मिक अनुष्ठान करवाते रहते थे। इनमें गरीबों और जरुरतमंदों को भोजन और वस्त्र वितरित करते थे। आज वही परंपरा भंडारे के रुप में विकसित हो गई। उन्होंने बताया कि संसार में सबसे बड़ा दान अन्न दान है। अन्न से ही यह संसार बना है और अन्न से इसका पालन हो रहा है। अन्न से शरीर और आत्मा दोनों की ही संतुष्टि होती हैं। इसलिए अन्नदान सभी प्रकार के दान से उत्तम है। उन्होंने बताया कि पद्मपुराण के सृष्टिखंड में एक कथा का उल्लेख किया गया है। इसमें ब्रह्मा और विदर्भ के राजा श्वेत के बीच हुए संवाद से पता चलता है कि जो व्यक्ति अपने जीवन काल में जो भी दान करता उसे वही वस्तु मृत्यु के बाद परलोक में प्राप्त होता है। राजा श्वेत तपस्या के बल पर ब्रह्मलोक पहुंच गए, लेकिन अन्नदान नहीं करने के कारण उन्हें भोजन नहीं मिला।

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इस मौके पर भाजपा जिलाध्यक्ष लवकुश चतुर्वेदी, जिला पंचायत अध्यक्ष अशोक जाटव, ब्लॉक प्रमुख पहाड़ी सुशील द्विवेदी, जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष पंकज अग्रवाल, नगर पालिका अध्यक्ष नरेंद्र गुप्ता, पूर्व राज्य मंत्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय, भाजपा नेता बब्बू त्रिपाठी, कमलेश मिश्रा, सानू गुप्ता, केशव शिवहरे, गुड्डन दुबे, रामकरण सिंह बच्चन, अनुज त्रिपाठी, अंकुर त्रिपाठी, प्रधुम्न अग्रवाल आदि मौजूद रहे।

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