पुस्तक समीक्षा : बुन्देली शब्दकोश
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@ पं. गुणसागर सत्यार्थी (साहित्य परिधि)
विदुषी डाॅ. सरोज गुप्ता, मूलतः झाँसी जिले के बड़ागाँव की निवासी हैं। राजकवि मुंशी अजमेरी, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के चिरगाँव में उनका विवाह हुआ, जो मुंशी जी के ही पड़ोस में कुलवधू हैं। परन्तु वर्तमान में उनका कार्य क्षेत्र म.प्र. का सागर है। इस प्रकार बुन्देली भाषामयी वृहद क्षेत्र से वे अपने आप साकार र्हुइं और अनेक क्षेत्रीय प्रभावों को उन्होंने निकट से देखा व समझा है।
प्रत्येक भाषा का अपना खास किस्म का स्वभाव व प्रवृत्ति होती है। बुन्देली की प्रकृति हिन्दी से नहीं अपितु संस्कृत के अधिक निकट है। बुन्देली आधुनिक हिन्दी से कहीं अधिक पुरातन भी है। कुछेक क्षेत्रीय प्रभाव को छोड़कर इसमें महाप्राणत्व के स्थान पर अल्पप्राणत्व ही अधिक होता है। डाॅ. सरोज गुप्ता ने बुन्देली के स्वभावगत शब्दों में यह बड़ी निपुणता से दर्शा दिया है। जैसे-हिन्दी में दूध, दही के उच्चारण में यह महाप्राण वर्ण होते हैं, किन्तु डाॅ. सरोज गुप्ता ने बुन्देली की प्रकृति को ध्यान में रख कर दही को दई, दूध को दूद, दूदन, दूदा जैसे रूप में देकर मुंशी अजमेरी जी के सिद्धान्त को प्रतिपादित किया है। यद्यपि उन्होंने शब्दकोश की परम्परा में शब्दों को वर्णमाला क्रम से लिखा और ‘अ’ वर्ण से उसका आरम्भ करके उच्च व्यंजन ‘ह’ तक के शब्द रखे हैं। किन्तु उनका हृदय उसे देख कर सन्तुष्ट नहीं हुआ। वह जानती हैं कि बुन्देली की प्रकृति तो हिन्दी से नहीं संस्कृत से मेल खाती है। इसलिए कोश पूरा हो जाने के बाद परिशिष्ट में संस्कृत कोशों की परम्परा को भी समेट लिया। वर्णमाला क्रम से बाहर उन्होंने बुन्देली शब्दों का मंथन करके एक वर्णीय शब्दों का संचय कर उसे विशेष बना दिया। जैसे- गों, चित, ध्यान, मन जिसका प्रयोग प्रायः बोलचाल में होता है- ऊसें भोैत कई पै वौ तौ गों में देतइ नइंयां।
तात्पर्य यह कि बुन्देली की प्रकृति में एकाक्षरी शब्दों की भरमार है, उसे यथावत् लेकर कोश को पूर्णता प्रदान की गई है। फिर अमरकोश की भाँति वर्णीय शब्दों को कोश में सम्मिलित किया है। बुन्देली के विलोम शब्दों का वर्ग, पर्यायवाची शब्दों का वर्ग, युग्मशब्दों का वर्ग, काल एवं समय बोधक शब्द वर्ग, लोकदेवता, दैनिक जीवन में उपयोगी शब्द एवं दूध-दही से सम्बन्धित शब्दों का वर्ग, गंधवर्ग, विभिन्न आवाजों संबंधी शब्द वर्ग, सुनार के व्यवसायिक शब्दों का वर्ग, गहने संबंधी शब्द, बर्तन एवं दैनिक जीवन में उपयोगी शब्दों का वर्ग, पशुओं के अंग-प्रत्यंग संबंधी वर्ग, गाड़ी के विभिन्न भागों के नाम सम्बंधी शब्दों का वर्ग, गालियों में भी पुरूषों द्वारा दी जाने गालियांे का अलग वर्ग लिया गया एवं स्त्रियों द्वारा दी जाने वाली गालियों का वर्ग भी अलग दिया है। गहनों के भी उपवर्ग अंग-प्रत्यंग द्वारा अलग दिए गए हैं। बुन्देली व्यंजन, बुन्देली के उत्सव धर्मी व्यंजन, लोकपर्व, लोकवाद्य, लोकनृत्य, आदि अनेक वर्गो में बुन्देली के शब्दों का क्रम बड़ा मोहक बन पड़ा है। बुन्देली की जन प्रकृति भिन्न है तो उसका व्याकरण भी बहुत कुछ भिन्न है, उसे भी संक्षेप में समझाया गया है। बुनियादी क्रियाएं, और अन्त में बुन्देली कहावतों के सहारे शब्दार्थ करने का अपना ही तरीका है।
डाॅ. सरोज गुप्ता का यह प्रामाणिक वृहद बुन्देली शब्दकोश ग्रंथ अपना अलग और महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला मूल्यवान ग्रंथ बन पड़ा है, जो बुन्देली की विरासत के रूप में स्थापित होने की सामथ्र्य रखता है।
पुस्तक का नाम : प्रामाणिक वृहद बुन्देली शब्दकोश
प्रकाशन : उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ (उ.प्र.)
मूल्य : 360 रूपये मात्र
सम्पादक : डाॅ. सरोज गुप्ता अध्यक्ष हिन्दी विभाग
पं. दीनदयाल उपाध्याय शासकीय स्नातकोत्तर कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय सागर (म.प्र.)
समीक्षक : साहित्य परिधि पं. गुणसागर सत्यार्थी, कुण्डेश्वर, टीकमगढ़ (म.प्र.)
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