हमीरपुर-महोबा संसदीय सीट पर बसपा को नहीं मिल रहा प्रत्याशी
हमीरपुर महोबा संसदीय में लोकसभा चुनावों में सपा को सीट से बाहर का रास्ता दिखाने वाली बसपा उम्मीदवार के चयन...
उम्मीदवार को लेकर पार्टी में चल रहा मंथन
हमीरपुर। हमीरपुर महोबा संसदीय में लोकसभा चुनावों में सपा को सीट से बाहर का रास्ता दिखाने वाली बसपा उम्मीदवार के चयन को लेकर परेशान है। दो बार यहां की सीट पर कब्जा करने वाली बसपा फिर पुराने चेहरे पर दांव लगाने की तैयारी में है। फिलहाल अभी पार्टी उम्मीदवार के नाम पर फैसला लेने के लिए मंथन कर रही है।
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हमीरपुर महोबा संसदीय क्षेत्र में सबसे लम्बे समय तक कांग्रेस ने यहां राज किया था। लेकिन क्षेत्रीय दलों के जातीय समीकरणों के हवा देने के कारण वर्ष 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस का मजबूत जनाधार खिसकर जनता दल में दल चला गया था। लोधी जाति के गंगाचरण राजपूत ने पहली बार चुनाव में किस्मत आजमायी और कांग्रेस से ताज छीनकर संसदीय सीट पर कब्जा कर लिया था। 1989 के आम चुनाव में ही पहली बार बहुजन समाज पार्टी ने कदम रखा और इस संसदीय क्षेत्र में 14.4 फीसद मत हासिल कर बसपा तीसरे नम्बर की सशक्त पार्टी के रूप में उभरकर सामने आयी। बसपा के पन्द्रह पचासी के नारे से कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचा था। वर्ष 1991 के आम चुनाव भाजपा के पक्ष में आये। लम्बे समय बाद झांसी के बड़े उद्योगपति विश्वनाथ शर्मा ने भाजपा के टिकट से चुनाव लड़कर हमीरपुर-महोबा संसदीय सीट पर जीत का परचम फहराया था। जनता दल के गंगाचरण राजपूत 23.4 फीसद मत पाकर उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था जबकि बसपा के वोटों का ग्राफ बढ़कर 20.5 फीसद हो गया था। हालांकि वह तीसरे स्थान पर ही रही लेकिन कांग्रेस का 1991 के चुनाव में पूरी तरह से सफाया हो गया था। वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने वोटों का ग्राफ बढ़ाने और सीट हथियाने के लिये जनता दल छोड़कर आये गंगाचरण राजपूत को चुनावी समर में उतारा था।
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गंगाचरण राजपूत ने लोधी मतों और भाजपा के परम्परागत मतों के कारण यहां की सीट पर कब्जा किया। 24.31 पीसद मत पाकर सपा दूसरे स्थान पर रही। चुनाव में मायावती ने पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद सिंह पर अपनी प्रतिष्ठा लगायी थी जिसमें पार्टी तीसरे स्थान पर तो रही लेकिन उसका वोटों का ग्राफ बढ़कर 21.95 फीसद तक हो गया था। 1998 में भाजपा ने फिर इस संसदीय सीट पर हैट्रिक लगायी। भाजपा के खाते में 35.01 फीसद मत आये थे। हालांकि भाजपा का करीब चार प्रतिशत वोट का नुकसान हुआ था। जबकि सपा को करीब चार प्रतिशत मत से हार का मुंह देखना पड़ा था। बसपा के टिकट से चुनाव मैदान में आये पूर्व मंत्री चौधरी ध्रूराम लोधी 25.58 फीसद मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे।
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अब पुराने चेहरे पर ही बसपा लगा सकती है दांव
हमीरपुर-महोबा संसदीय सीट के लिए बसपा पुराने चेहरे पर दांव लगा सकती है। पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने बताया कि यहां की सीट से चुनाव लडऩे के लिए मोहम्मद फतेह खान समेत तमाम लोगों ने आवेदन कर रखा है। साथ ही बसपा के पूर्व विधानसभा प्रत्याशी मनफूल निषाद ने भी चुनाव लडऩे की तैयारी की है। पार्टी के भरोसेमंद लोगों का कहना है कि पार्टी में उम्मीदवार पर मुहर लगाने के लिए मंथन चल रहा है। बता दे कि पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा ने मनफूल निषाद को उम्मीदवार बनाया था। पहली र्म$तबा में ही 47157 मत पाकर मनफूल तीसरे स्थान पर रहे थे।
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34 फीसदी से ज्यादा वोट लेकर बसपा ने सीट पर किया था कब्जा
करीब डेढ़ दशक पहले बसपा ने लोकसभा चुनाव में पच्चीस फीसदी से ज्यादा मत लेकर राष्ट्रीय दलों को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में सोशल इंजीनियर कार्ड के जरिए पहली बार मायावती ने अशोक सिंह चंदेल को टिकट दिया था। जातीय अंकगणित में इन्होंने यहां की सीट पर जीत का परचम फहराया। उन्हें 34.19 फीसदी वोट मिले थे। जबकि लगातार तीन लोकसभा चुनावों में यहां की सीट पर कब्जा करने वाली भारतीय जनता पार्टी तीसरे स्थान पर चली गई थी। भाजपा को संसदीय क्षेत्र में कुल मतों में मात्र 26.81 फीसदी ही मत मिल पाए थे।
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लोकसभा चुनाव में दो बार बसपा ने जीती थी संसदीय सीट
हमीरपुर-महोबा संसदीय क्षेत्र में क्षत्रिय, ब्राह्मण और मुस्लिम मतदाता आम चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाते है। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में यहां की सीट पर बसपा ने कब्जा किया था लेकिन 2004 के आम चुनाव में सपा ने ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगाया तो जातीय समीकरणों के खेल में सपा ने सीट पर कब्जा कर लिया था। सपा को 36.5 फीसदी मत मिले थे। बसपा 33.4 फीसदी मत पाकर दूसरे स्थान पर रही। वर्ष 2004 के चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग के कार्ड पर ठाकुर बिरादरी के नए चेहरे को बसपा ने उम्मीदवार बनाया तो यहां की सीट फिर बसपा के खाते में आ गई थी।
हिन्दुस्थान समाचार