झाँसी का लहर देवी मंदिर, जहां आल्हा ने अपने बेटे इन्दल की चढ़ाई थी बलि

झाँसी महोबा के बड़े लड़इया आल्हा एवं उदल ने झाँसी में लहर देवी मंदिर की स्थापना की थी । यह एक ऐसा देवी माँ मंदिर है जहां दिनभर..

झाँसी का लहर देवी मंदिर, जहां आल्हा ने अपने बेटे इन्दल की चढ़ाई थी बलि
झाँसी का लहर देवी मंदिर..

झाँसी महोबा के बड़े लड़इया आल्हा एवं उदल ने झाँसी में लहर देवी मंदिर की स्थापना  की थी । यह एक ऐसा देवी माँ मंदिर है जहां दिनभर में 3 स्वरूपों में देवीजी दर्शन देती हैं। प्रातः उनके बाल्यकाल का दर्शन होता है। दोपहर में वह युवावस्था में होती हैं और शाम को वृद्धावस्था स्वरूप में आ जाती हैं। लहर की देवी की इस लीला की अनुभूति भक्त भी करते हैं। यही कारण है कि ह़जारों भक्त माता के चरणों की आराधना में लीन ऩजर आते हैं।

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मन्दिर के मुख्य पुजारी महन्त मोहन गिरि के अनुसार मन्दिर में देवी की स्थापना महोबा के बड़े लड़इया आल्हा एवं उदल ने की थी। पृथ्वीगढ़ के राजा ज्वाला सिंह ने आल्हा की पत्‍‌नी व महोबा की रानी मछला का अपहरण कर लिया था।

कहा जाता है कि रानी को मुक्त कराने और ज्वाला सिंह को युद्ध में पराजित करने के लिए आल्हा ने माता के चरणों में अपने पुत्र इन्दल की बलि यहीं चढ़ाई थी। किवदन्ती है कि माता ने प्रसन्न होकर इन्दल को पुनः जीवित कर दिया था। इसके पश्चात माता के प्रति लोगों की आस्था काफी बढ़ गई। लहर की देवी को मनिया देवी के रूप में भी जाना जाता है।

महन्त मोहन गिरि का कहना है कि मनिया देवी मैहर की माँ शारदा की बहन हैं। माँ शारदा से भी आल्हा और ऊदल की कथा जुड़ी है। उन्होंने बताया कि मन्दिर 8 शिला स्तम्भों पर खड़ा हुआ है। प्रत्येक स्तम्भ पर आठ योगिनी अंकित हैं। इस प्रकार कुल चौसठ योगिनी के स्तम्भों पर मन्दिर टिका हुआ है। सभी स्तम्भ गहरे लाल सिन्दूरी रंग में रंगे हैं।

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माँ लहर देवी के तीनों स्वरूपों के दर्शन के लिए सुबह से शाम तक भक्तों का ताँता लगा रहता है। माता का 3 बार श्रृंगार भी किया जाता है। सच्चे मन से माँ की आराधना करने वाले भक्त उनके तीनों स्वरूप के साक्षात दर्शन कर सकते हैं। मन्दिर के मुख्य द्वार के समीप ही एक शिला स्तम्भ भी है।

झाँसी का लहर देवी मंदिर..

कहा जाता है कि इसी शिला स्तम्भ पर आल्हा ने अपने पुत्र इन्दल की बलि दी थी। महन्त मोहन गिरि बताते हैं कि कालान्तर में पहूज नदी का पानी पूरे क्षेत्र में पहुँच जाता था। नदी की लहरें माता के चरणों को स्पर्श करती थी इसलिए इसका नाम लहर की देवी पड़ गया। 

यूँ तो माँ के भक्त यहाँ हमेशा आते हैं, लेकिन नवरात्र में यहाँ अपार भीड़ उमड़ती है। नवरात्र में अष्टमी की रात्रि को भव्य आरती होती है। इस आरती का विशेष महत्व है। मन्दिर के पुजारी के अनुसार इस आरती में शामिल होने और उसके दर्शन के लिए ह़जारों की संख्या में भीड़ उमड़ती है।

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