3 बीघा जमीन.. वो भी गिरवी.. अब कैसे पालें अपने जवान दिव्यांग बच्चों को ?

9 बीघा खेती वो पहले ही बेंच चुके थे, 3 बीघा बची थी, पर अब वो भी गिरवी रखी है। आज नहीं तो कल वो भी बेंचनी पड़ेगी। ऐसे में घर कैसे चलेगा? बच्चों को कैसे पालेंगे? बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी? ये कुछ सवाल हैं जो शिवमोहन की पत्नी उनसे करती हैं तो शिवमोहन के पास कोई जवाब नहीं होता। 

3 बीघा जमीन.. वो भी गिरवी.. अब कैसे पालें अपने जवान दिव्यांग बच्चों को ?

बाँदा के अर्जुनाह गांव के शिवमोहन द्विवेदी की भरभराई आवाज में ये जो दर्द है, वो शायद इन लिखे हुए शब्दों से आपको समझ में न आये। पर आप उन्हें सामने देखेंगे तो उनके दर्द का अंदाजा आपको बखूबी हो जायेगा। शिवमोहन के घर का हाल ऐसा है कि पूंछिये मत... एक मात्र झोपड़ी, जिसमें अपने दो विकलांग बच्चों और पत्नी के साथ शिवमोहन रहते हैं। घर में आय का कोई साधन नहीं, जो था वो बच्चों के इलाज में खर्च हो गया। अब बची है तो सिर्फ उम्मीद... वो भी सरकार से.. प्रशासन से।

बाँदा से लगभग 20 किमी दूर महुआ ब्लाॅक के अन्तर्गत अर्जुनाह गांव आता है। इसी गांव में एक परिवार है शिवमोहन द्विवेदी का। आज से चार वर्ष पूर्व तक अर्जुनाह गांव में शिवमोहन द्विवेदी का भरा-पूरा परिवार रहता था, जिनके पास लगभग 12 बीघा खेती थी। परिवार में दो पुत्र व एक पुत्री थे, परन्तु समय के क्रूर चक्र के कारण पहले 19 वर्षीय लड़के विष्णु को तेज बुखार आया तो शिवमोहन उसे इलाज के लिए कानपुर के हैलट में ले गये। पर न जाने कौन सा बुखार था, और बुखार की तीव्रता ऐसी थी कि कई दिन डाॅक्टर विष्णु को बर्फ मे लिटाये रहे। लगभग अठारह महीने इलाज कराने के बाद विष्णु तो बच गया पर उसकी दोनों आखों की रोशनी चली गयी। एकाएक हंसता-खेलता जवान लड़का अब अंधेरे की गिरफ्त में था। इतना ही नहीं आंखों के साथ-साथ विष्णु को और भी शारीरिक अपंगता आ गयी। 

बेटे के इलाज में बुरी तरह से बर्बाद हुए शिवमोहन और उनकी पत्नी बताते हैं कि छः-सात महीने बाद ही उनकी 23 वर्षीय लड़की गिरिजा को भी वैसा ही तेज बुखार आया, उसे भी हैलट में भर्ती कराया पर गिरिजा की आंखों को भी न बचा सके। दोनों भाई बहन बच तो गये पर माँ-बाप इससे बुरी कदर टूट गये। अपने बच्चों के इलाज में शिवमोहन ने अपनी खेती की जमीन की भी चिंता नहीं की। 9 बीघा खेती वो पहले ही बेंच चुके थे, 3 बीघा बची थी, पर अब वो भी गिरवी रखी है। आज नहीं तो कल वो भी बेंचनी पड़ेगी। ऐसे में घर कैसे चलेगा? बच्चों को कैसे पालेंगे? बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी? ये कुछ सवाल हैं जो शिवमोहन की पत्नी उनसे करती हैं तो शिवमोहन के पास कोई जवाब नहीं होता। 

एक परिवार को सादा जीवन जीने के लिए क्या चाहिये? एक सुरक्षित मकान, खाने के लिए दोनों वक्त का पर्याप्त भोजन और तन ढकने के लिए उपयुक्त कपड़े। लेकिन आज इस परिवार के पास इन्हीं चीजों की कमी है। कहने को तो राशन कार्ड बना है पर उतने अन्न से गुजर बसर मुश्किल है। ग्राम प्रधान भी नहीं सुनता। परिवार को अन्य किसी सरकारी योजना का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा। ग्राम प्रधान की हठधर्मिता ऐसी है कि न तो आवास मिला और न ही सरकारी सहायता।

जब पास में कुछ है नहीं, तो शिवमोहन भी इसे नियति का खेल मान लेते हैं। लेकिन देश और प्रदेश की सरकार की ओर उनकी उम्मीद भरी नजर जाती है तो वहां से राहत न मिलती देखकर शिवमोहन अपने कर्मों का पाप/पुण्य समझ कर संतोष कर लेते हैं। शिवमोहन बताते हैं कि आज अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद के लोगों ने उनकी पीड़ा को समझा है और उन्होंने मदद का भरोसा दिया है।

हालांकि शिवमोहन की उम्मीद अभी भी टूटी नहीं है। वो कहते हैं कि एक बार डीएम साहब के पास अर्जी पहुंच जाये तो उनके बच्चों का भविष्य संवर सकता है। उन तक न पहुंचे तो कम से कम विधायक जी के पास ही उनकी अर्जी पहुंच जाये तो वो बहुत कुछ कर सकते हैं। शिवमोहन को उम्मीद है कि विधायक प्रकाश द्विवेदी की सभी लोग तारीफ करते हैं, और उन्होंने अपने क्षेत्र की जनता के लिए बहुत कुछ किया है। अगर उन्हें मालूम चल जाये, तो विधायक जी उसकी मदद जरूर करेंगे।

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