आशाओं के कौन कसेगा नकेल ? कमीशन के चक्कर में निजी अस्पतालों में हो रहा खेल

गरीब गर्भवती महिलाओं का सुरक्षित प्रसव सरकारी अस्पताल में कराया जाए, इसके लिए आशा बहुओं की तैनाती गांव...

May 19, 2023 - 05:15
May 19, 2023 - 05:40
 0  3
आशाओं के कौन कसेगा नकेल ? कमीशन के चक्कर में निजी अस्पतालों में हो रहा खेल

बांदा,

गरीब गर्भवती महिलाओं का सुरक्षित प्रसव सरकारी अस्पताल में कराया जाए, इसके लिए आशा बहुओं की तैनाती गांव गांव में की गई है। लेकिन भारी कमीशन की लालच में आशा बहुएं गर्भवती महिलाओं को सरकारी अस्पतालों के बजाय प्राइवेट अस्पतालों में ले जाती हैं। जहां प्रसव के दौरान प्रसूता महिलाओं के परिजनों से 60 -70 हजार रुपए वसूल किया जाता है। इसमें आशा बहुओं का 10 से 20 फीसदी कमीशन होता है।

यह भी पढ़ें-नाबालिग के साथ दूसरी शादी रचाने जा रहा था युवक, तभी पहली पत्नी मंडप में जा धमकी

ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों में बने सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में अधिकतर डिलीवरी के लिए आईं गर्भवती महिलाओं को संसाधनों की कमी के चलते बड़े सरकारी अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है। इस दौरान आशा बहुएं उनको सरकारी अस्पतालों में ले जाने के बजाय अधिक कमीशन के चक्कर में प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करा देती हैं। बांदा जनपद में सरकारी अस्पताल में स्ट्रेचर पर लेटी गर्भवती महिला ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, कि हम “इलाज कराने गाँव से आये हैं। वहां डॉक्टर ने कहा कि शहर के बड़े अस्पताल में दिखाओ क्योकि तुम्हारा ऑपरेशन होगा और खून की भी कमी है। इसलिए यहां आए है।” वह आगे बताती है, “आशा बहू ने कहा कि प्राइवेट में ऑपरेशन करा लो लेकिन इतने पैसे नहीं थे कि निजी अस्पताल में इलाज करा सके। इसलिए यहां अपने पति और परिवार वालों के साथ इलाज कराने आए हैं।”

यह भी पढ़ें- फेसबुक में धर्म छिपाकर रोहित बने युवक ने युवती से दोस्ती कर ली, फिर की बडी वारदात


बतातें चलें कि चौथे राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएच-4) के मुताबिक निजी अस्पतालों और निजी डॉक्टरों की देख-भाल में होने वाले प्रसव में सीजेरियन ऑपरेशन की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी हो रही है। नौ साल पहले देश में कुल 8.5 फीसदी बच्चे ऑपरेशन से होते थे, जबकि अब यह 17 फीसदी हो गया है। इसकी वजह निजी क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहे सीजेरियन के मामले हैं। 2006 में हुए पिछले सर्वेक्षण में निजी क्षेत्र में 27.7 फीसदी बच्चे सीजेरियन होते थे, अब 41 फीसदी हो गए हैं। उधर, सरकारी क्षेत्र में अब सीजेरियन के मामले 12 फीसदी रह गए हैं जबकि नौ साल पहले यह 15 फीसदी थे।

यह भी पढ़ें- निकाय चुनाव सकुशल संपन्न होने पर एसपी ने कराया महाभोज, कमिश्नर डीआईजी व डीएम हुई शामिल

वही इस बारे में अपना दल एस पार्टी बबेरू के विधानसभा अध्यक्ष अरुण कुमार पटेल ने बताया हैं कि “आशा बहू ज्यादा पैसे के चक्कर में प्राइवेट अस्पताल ले जाती हैं। प्राइवेट अस्पतालों में लाइन नहीं लगानी पड़ती। डॉक्टर से सीधे मिलकर काम करवा लेती है। एक बार में ही सारी जांच हो जाती है। इसलिए आशा प्राइवेट अस्पताल में प्रसव कराने जाती है।” साथ ही उनका कहना है कि निजी अस्पतालों से मिलने वाले मोटे कमीशन के चक्कर में गर्भवती महिलाओं को अस्पताल में गुमराह किया जा रहा है। प्रसव को पहुंचने वाली हर गर्भवती को लापरवाही और केस बिगड़ने का हौवा दिखाकर आशाएं निजी अस्पताल ले जाने की सलाह देती हैं। इतना ही नहीं निजी अस्पतालों में सुरक्षित प्रसव कराने की सलाह देकर आशाएं कमीशन के चक्कर में खेल करती हैं। प्राइवेट अस्पतालों में उनको वहां से ज्यादा कमीशन मिलता है। हर जांच में 10 से 20 प्रतिशत कमीशन मिलता है। जबकि सरकारी अस्पतालों से उन्हें पैसा नहीं मिलता इसलिए प्राइवेट अस्पताल में ले जाती है।”

यह भी पढ़ेंपाकिस्तानी कहने पर मुस्लिमों ने एसपी से की थानाध्यक्ष की शिकायत
इसी तरह नाम न छापने की शर्त पर एक स्त्री रोग विशेषज्ञ बताती हैं कि हम बड़े सरकारी अस्पताल में गर्भवती महिलाओं को रिफर करते हैं तो आशा बहू आनाकानी करती हैं और गर्भवती महिलाओं का ज्यादातर प्राइवेट अस्पतालों में ऑपरेशन कराती है, क्योंकि उनको वहां से ज्यादा कमीशन मिलता है। इस बारे एक आशा बहू बताती है, कि “सीएससी-पीएचसी में जब इलाज नहीं हो पाता है तब हम इन्हें प्राइवेट अस्पताल में ले जाते हैं क्योंकि इनके इलाज की जिम्मेदारियों और प्रसव करने की जिम्मेदारी हमारी होती है। सरकारी अस्पताल में अक्सर डॉक्टर नहीं होते हैं इसलिए प्राइवेट अस्पताल में दिखाते हैं। वह बताती हैं कि कभी कभी इलाज समय पर नहीं शुरू होता है। दर्द तेज हो रहा हो और प्रसूता को कुछ हो जाए तो दोषी हमको बताया जाता है, इसलिए हम इलाज के लिए प्राइवेट अस्पताल ले जाते हैं। 

गजब तो यह भी है कि मेडिकल कॉलेज बांदा के अध्ययनरत छात्र छात्राएं या डॉक्टर चाहे तो यही ऑपरेशन मेडिकल कॉलेज में बिना पैसों के कर सकते हैं लेकिन पैसे कमाने के चक्कर में पहले आशा बहुओं की मदद से मरीजो  को निजी अस्पतालो में रेफर करते है उसके बाद उन्हें किसी प्राइवेट निजी अस्पताल में ले जाकर 60-70 हज़ार लेकर ऑपरेशन कर देते हैं।  जिससे आम गरीब मरीज परेशान हो जाते हैं। वही जनपद में कुछ पुराने निजी अस्पताल ऐसे भी हैं जो आज भी अपने सिद्धांतों पर चल रहे हैं साथ ही मरीज़ों के पैसे भी कम कर देते हैं लेकिन दलालो व कमीशन खोरो से कोसो दूर रहते हैं। 

What's Your Reaction?

Like Like 0
Dislike Dislike 0
Love Love 0
Funny Funny 0
Angry Angry 0
Sad Sad 0
Wow Wow 0