कोर्ट का वह ऐतिहासिक फैसला जिसने बदल दी भारत की राजनीतिक दिशा
आज से 46 साल पहले 12 जून को कोर्ट का एक फैसला आया और इसने भारत की राजनीतिक दिशा ही बदल दी। इसका असर यह हुआ कि बाद के..
रायबरेली,
आज से 46 साल पहले 12 जून को कोर्ट का एक फैसला आया और इसने भारत की राजनीतिक दिशा ही बदल दी। इसका असर यह हुआ कि बाद के अगले कई महीनों तक जनता इस फैसले का परिणाम झेलती रही और भारत में 'इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया' का नारा भी नेपथ्य में चला गया।
दरअसल, यह कहानी शुरू होती है रायबरेली से जहां के 1971 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद राजनारायण कोर्ट पहुंचे और 12 जून 1975 को अपने ऐतिहासिक फैसले में जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव में गड़बड़ी करने का दोषी पाया। जस्टिस सिन्हा ने इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द करते हुए छह साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। बस यहीं से देश की राजनीति ने करवट ली और इसका केंद्र बना रायबरेली।
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- वह ऐतिहासिक फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट का कोर्ट नं 24 और 12 जून 1975 का दिन। पूरे देश में इस दिन हलचल थी कि क्या होगा। लंबी बहस और दलीलों के बाद जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने अपना फैसला दिया, जिसके अनुसार कुल छह आरोपों में एक में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दोषी पाया गया और उनके चुनाव को रद्द करते हुए छह साल तक उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
दरअसल, 1971 में रायबरेली से इंदिरागांधी के खिलाफ़ हारे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनाव में याचिका दाख़िल करते हुए उनके ऊपर छह आरोप लगाए थे। आरोपों के मुताबिक, इंदिरा गांधी ने चुनाव में अपने निजी सचिव यशपाल कपूर जो भारत सरकार के एजेंट थे, उन्हें इलेक्शन एजेंट बनाया।
चुनाव लड़ने के लिये रिश्वत दी। वायुसेना के विमानों का चुनाव में दुरुपयोग किया। इलाहाबाद के डीएम और एसपी की मदद ली गई। मतदाताओं को कम्बल और शराब बांटे गए और सीमा से ज्यादा धन ख़र्च किये गए। हालांकि इनमें अन्य आरोप साबित नहीं हो पाए, केवल चुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का उन्हें दोषी पाया गया और उनके चुनाव को रद्द करते हुए छह साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई। इसी फैसले ने आपातकाल की नींव तैयार की और 13 दिन बाद ही 25 जून को देश मे आपातकाल लगा दिया गया।
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- राजनारायण ने पहले ही निकाला था विजय जुलूस
1971 में प्रधानमंत्री इंदिरागांधी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे राजनारायण अपनी जीत के पति इतने आश्वस्त थे कि परिणाम आने के पहले ही उन्होंने विजय जुलूस तक निकाल लिया था और समर्थकों ने मिठाइयां बांट दी थीं। हालांकि परिणाम आने के बाद राजनारायण को करीब एक लाख वोटों से हार मिली लेकिन वह इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं थे।
जयप्रकाश नारायण के साथी रवींद्र सिंह चौहान कहते हैं कि इस चुनाव को लेकर राजनारायण बहुत गंभीर थे और उन्हें अपनी जीत का पूरा भरोसा था। वह अपने लोगों से इसकी चर्चा करते रहते थे कि उनकी जीत तय है। चौहान का कहना है कि उनका यह विश्वास जनता के उत्साह और भरोसे के कारण था'।
पूर्व मंत्री गिरीश नारायण पांडे के अनुसार 'इस चुनाव में जमकर शराब और कम्बल वितरित किये गए, पुलिस और प्रशासन के लोग केवल कांग्रेस के एजेंट बनकर काम कर रहे थे। इन सबसे जनता को बरगलाया गया और परिणाम अलग आया'।
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- रायबरेली ने भी छोड़ा इंदिरा गांधी का साथ
आपातकाल के बाद 1977 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई, लेकिन इसके अलावा एक बड़ी खबर और थी कि रायबरेली से इंदिरागांधी चुनाव हार चुकी थीं। अब तक यहां से अपराजेय रहीं इंदिरा गांधी को रायबरेली की जनता ने 55 हजार,202 वोटों से हरा दिया था।
उन्हें केवल 1 लाख, 22 हजार, 517 वोट मिले, जबकि भारतीय लोकदल के उम्मीदवार राजनारायण को 1 लाख, 77 हजार, 719 वोट प्राप्त हुए थे। इंदिरागांधी की यह पहली और अंतिम हार थी ,जिससे वह इतना निराश हुईं कि तीन साल बाद रायबरेली से चुनाव जीतने के बावजूद उन्होंने यह सीट छोड़ दी।
रायबरेली से चुनाव हारने के बाद इंदिरागांधी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अब वह अपना पूरा समय परिवार को देंगी। हालांकि एक साल बाद ही वह चिकमंगलूर सीट से जीतकर संसद में आ गईं थी। 1980 में रायबरेली से चुनाव में भारी वोटों से जीतने के बाद भी उन्होंने अपनी दूसरी सीट मेडक का प्रतिनिधित्व किया और रायबरेली सीट को छोड़ दिया।
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हि.स