पीएम केयर फंड पर कांग्रेस को सुप्रीम झटका

कोरोना संकट के दौरान कोरोना के मुकाबले  चर्चा मे अगर कोई शब्द था तो वह ' पीएम केयर फंड ' था। कोरोना और पीएम केयर फंड का चर्चा मे मुकाबला विपक्ष के सुरों के बदौलत हुआ ...

पीएम केयर फंड पर कांग्रेस को सुप्रीम झटका

कोरोना संकट के दौरान कोरोना के मुकाबले  चर्चा मे अगर कोई शब्द था तो वह ' पीएम केयर फंड ' था। कोरोना और पीएम केयर फंड का चर्चा मे मुकाबला विपक्ष के सुरों के बदौलत हुआ , जिसमें कांग्रेस पार्टी मुख्य भूमिका मे रही। कांग्रेस के वायनाड सांसद राहुल गांधी ने पीएम केयर फंड को जनता के साथ धोखा बताया था। जो मंगलवार को राहुल गांधी के लिए अमंगल साबित हो गया , इस कांग्रेस और राहुल गांधी की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगना पुनः शुरू होगें।

केन्द्र की भाजपा सरकार ने महामारी से निपटने के लिए पीएम केयर फंड की स्थापना की जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट मे तस्वीर साफ हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि पीएम केयर फंड एक पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट है। जिसके अध्यक्ष स्वयं प्रधानमंत्री हैं व सदस्य रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह , गृहमंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण हैं। इस फंड से अब तक तीन हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। जिसका सदुपयोग वैक्सीन बनाने , वेंटिलेटर उपलब्ध करवाने और अप्रवासी मजदूरों के प्रवास मे किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने मिली जानकारी के मुताबिक यह साफ कर दिया है कि प्रधानमंत्री राहत कोष में पीएम केयर फंड का धन स्थानांतरित करने का कोई कारण नजर नहीं आ रहा है। उन्होंने कहा कि एनडीआरएफ में दान देने को मना नहीं है। किन्तु पीएम केयर फंड महामारी से निपटने के लिए है तो इसकी अपनी अलग उपयोगिता है।

यही वजह है कि ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस अंधेरे मे तीर चलाती है और अपने ही चलाए तीर से घायल हो जाती है। यह एक बड़ा मुद्दा था जो जनता के बीच में कांग्रेस के खिलाफ बड़ा संदेश लेकर जा रहा है। इसलिए भाजपा एक बार फिर राहुल गांधी और कांग्रेस पर खुलकर हमलावर हो चुकी है। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और प्रवक्ता संबित पात्रा ने संयुक्त प्रेस वार्ता कर गांधी परिवार और कांग्रेस पर बड़ा हमला बोल दिया है। उन्होंने राहुल गांधी पर देश की एकता को तोड़ने व कमजोर करने जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं। वैसे सत्य है कि कांग्रेस अपने ही बिछाए जाल पर कबूतरों की तरह फंस जाती है।

इस प्रकरण के बाद निश्चित रूप से कांग्रेस का आत्मविश्वास कमजोर होगा और जनता के बीच भी राहुल गांधी के सवालों की विश्वसनीयता अधिक कमजोर हो जाएगी। इसलिए विपक्ष को यदि सत्ता पर आने की लालसा है तो कम से कम नैतिक व ईमानदार लड़ाई लड़ें तब शायद जनता के बीच विश्वास बन सके।

लेखक: सौरभ द्विवेदी, समाचार विश्लेषक

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