रामदर्शन मानव कोे मानवीय बनानेे की पाठशाला
- वनवासी राम को मर्यादा पुरूषोत्तम बनाने वाली चित्रकूट की भूमि पर भारतरत्न नाना जी देशमुख ने किया अनोखा प्रयोग
- श्रीराम के जीवन के विभिन्न प्रसंगों को बनाया गया आधार, नहीं होती किसी भी मूर्ति की पूजा, लोग हाथ जोड़े जाते हैं और हाथ जोड़कर बाहर निकलते हैं।
चित्रकूट की धरा पर राम का नाम उल्टा जपकर वाल्मीकि जी ब्रह्म के समान हो गए। बाबा तुलसीदास ने राम के नाम का जाप कर उन्हें एक बार नहीं दो बार यहीं पाया। महर्षि अत्रि, सरभंग, सुतीक्षण, अगस्त सहित कितने ऋषियों से श्री राम स्वयं जाकर मिले। वनवास के जीवन का सर्वाधिक समय चित्रकूट में बिताने वाले श्रीराम वास्तव में सबसे बड़े समाजसुधारक थे। नानाजी की नजरों से देखें तो वनवासी राम ही प्रेरणा के श्रोत हैं, क्योंकि राजा राम तो सभी शक्तियों के स्वामी हैं, वह कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन वनवासी राम के पास देने के लिए करूणा और प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।
परमहंस आश्रम, अनुसुइया के संत भगवानानंद महराज के बुलावे पर चित्रकूट आए नाना जी देशमुख ने वैसे तो चित्रकूट परिक्षेत्र का पिछड़ापन दूर करने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन, कृषि के विविध प्रकल्प दिए, पर ‘राम दर्शन‘ एक ऐसा प्रकल्प है जो राम को देश की सीमाओं से पार ले जाकर विश्वव्यापी बनाता है। मंडल आरक्षण और राम जन्म भूमि के विवाद के समय नाना जी की रामदर्शन को मूर्त रूप देने की परिकल्पना आकर ले रही थी। उनका मानना था कि वास्तव में चित्रकूट में ऐसी कोई जगह नहीं जहां पर राम के चरित्र का वास्तविक दर्शन हो रहा हो। मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश प्राधिकरण के अधिकारियों से बात करने के बाद उन्होंने तय किया कि इसका सरकारीकरण करना उचित नहीं होगा, और न ही यह उनकी कल्पना के अनुसार बन पाएगा। अपनी योजना के अनुसार नानाजी ने पुणे में वर्कशाप के माध्यम से कलाकारों का चयन किया।
देश भर में राम गुण गौरव प्रतियोगिता कराई गई। इसमें लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। लगभग सभी रामायणों का अध्ययन किया, कथावाचकों, संतों, महंतों व विद्वानों से मिले। रामायण काल के चित्रकूट में घटित विशेष प्रसंगों को उभारने के लिए मंत्रणाएं हुईं। उन्होंने तय किया गया कि इसे चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के सामने दीन दयाल शोध संस्थान की जमीन पर बनाया जाएगा। पूणे में कार्यशाला बनाई, यहां नागपुर के श्रीराम शेवालकर की अगुवाई में मूर्तिकला, भित्ति चित्र, रिलीफ वर्क व डायोरामा ( त्रिआयामी) आदि के धुरंधर कलाकार जुटे, इधर चित्रकूट में मुंगतूराम जैपुरिया की याद में राजाराम जैपुरिया के सहयोग से पांच मंदिरों के समूह का निर्माण प्रारंभ हुआ। देश के सुप्रसिद्व कलाकार श्री राम शेवालकर, सुहास बाहुलकर व अशोक सोनकुसरे के नेतृत्व चुनिंदा कलाकारों ने दिन रात एक कर दिया।
नानाजी व उनकी टीम दिन रात पुणे और चित्रकूट में कार्य को देखती रही। नाना जी की संकल्पना के हिसाब से राम दर्शन तैयार हुआ, एक-एक पेंटिंग व मूर्ति पर नानाजी ने खुद अपने हाथों इबारत उकेरी, कि इस प्रसंग की जरूरत क्यांें थी और राम ने इस चरित्र को जीकर समाज को क्या दिया है। अहिल्या उद्वार हो या फिर ताडका का वध, नाना जी ने पैनी दृष्टि से अलग ही व्याख्या प्रस्तुत कर अपनी प्रतिभा से सभी को आश्चर्य में डाल दिया। देश भर के मूर्धन्य विद्वानों ने उनके कार्य की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। राम दर्शन में प्रवेश करते समय हनुमान जी की अपने हाथों से सीना फाड़कर सीता राम की मूर्ति हो या फिर अंदर प्रवेश करते समय एक तरफ वाल्मीकि और दूसरी तरफ तुलसी की प्रतिमाएं लोगों को बरबस मोहने लगीं। पहले परकोटे में विभिन्न देशों से लाई गई रामचरित्र की प्रतियां, वस्त्र, मुखौटे आदि रखे गए हैं। यहां पर कोरिया, चीन, जापान, म्यामार, रूस, थाईलैंड, इंडोनेशिया सहित अन्य देशों की वस्तुएं देखकर लोग आश्चर्य से भर उठते हैं। इसके बाद गुफा मे प्रवेश करने के बाद शुरू होता है राम जी के जीवन चरित्र का वास्तविक रूप। हर प्रसंग की अपनी सार्थकता और उसमें हिंदी व अंग्रेजी में लिखे गए बोध वाक्य अपनी कहानी स्वयं कह देते हैं। चार परकोटों के बाहरी भाग के उपवन में विभिन्न गृहों, नक्षत्रों व राशियों से प्रभावित लोगों को जानकारी देते पौधों को लगाया गया। चित्रकूट के प्रसंग हो या अन्य प्रसंग सभी को देखकर लोगों को रोमांच उत्पन्न हो जाता है।
मूर्तियां व पेंटिंग ऐसी कि मानों लगता है अभी बातें ही करने लगेंगी। अंतिम परकोटे में महाराजा राम व माता जानकी के सिंहासन पर विराजमान स्वरूप को देखकर लोग सुधबुध खो देते हैं। इसी परकोटे पर सभी भाषाओं की रामायण भी रखीं गई हैं। आध्यात्म, कंबन, राधेश्याम, विचित्र रामायण का स्वरूप देखकर लोग प्रसन्न हांे उठते हैं। नानाजी ने राम दर्शन के जरिए यह दिखाने का प्रयास किया कि अगर मनुष्य चाहे तो वह देवत्व को प्राप्त कर सकता है। पीड़ित और उपेक्षित के लिए नाना जी की शब्दावली आज भी वही है‘ हम अपनों के लिए हैं, अपने वे हैं जो पीड़ित और उपेक्षित हैं। इन्हें समाज की मुख्यधारा में लाकर बराबरी का अहसास कराने के लिए उंचा उठाने की जरूरत है। नाना जी ने चित्रकूट परिक्षेत्र के 500 गांवों में यही काम किया।
उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने देखा कि कैसे चित्रकूट परिक्षेत्र के गांव विवाद मुक्त होने के साथ ही स्वावलंबी बन गए। शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि, पशु पालन व रोजगार का स्तर सुधर गया। रामदर्शन नाना जी बनाई एक ऐसी कृति हैं जो धर्म, संप्रदाय,जाति, भाषा की सीमाओं के उपर का बोध कराता है। यहां पर किसी धर्म के व्यक्ति के प्रवेश पर कोई प्रतिबंध नही है। राम दर्शन में बनाई गईं प्रदर्शनी वास्तव में राम का व्यापक स्वरूप प्रस्तुत कर उन्हें जन -जन का राम बनाती है। राम दर्शन के शुभारंभ के अवसर पर भी नानाजी ने जहां एक ओर प्रसिद्व श्री राम कथा वाचक मोरारी बापू को बुलाया, वहीं समाजवादी नेता जार्ज फर्नाडीस व भाजपा नेता सैयद शाहनवाज हुसैन ने भी अपनी सहभागिता दर्ज कराई।
डाॅ. भरत पाठक
(लेखक दीनदयाल शोध संस्थान के उपाध्यक्ष व गंगा विचार मंच के राष्ट्रीय संयोजक हैं)