आईपीएस राजा बाबू सिंह की संयोजकत्व में हुआ बृहद पौधा रोपण
बुंदेलखंड में 36 से 38 प्रतिशत युवा पलायन करते हैं। यहां का युवा इस वजह से पलायन करता है क्योंकि यहां एक फसली खेती होती है। खरीफ की फसल ...
बुंदेलखंड में खरीफ की फसल युवाओं का पलायन रोकने में होगी कारगर: कुलपति
बांदा
बुंदेलखंड में 36 से 38 प्रतिशत युवा पलायन करते हैं। यहां का युवा इस वजह से पलायन करता है क्योंकि यहां एक फसली खेती होती है। खरीफ की फसल के दौरान खेत खाली पड़े रहते हैं। अगर खरीफ की फसल का भी किसान उत्पादन करें तो युवाओं को पूरे साल रोजगार मिल सकता है जिससे उन्हें पलायन नहीं करना पड़ेगा।
यह बात शनिवार को पचनेही गांव में स्थित फिनिक्स फार्म हाउस में प्रकृति श्रृंगार महोत्सव 2023 में मुख्य अतिथि बांदा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर नरेंद्र प्रताप सिंह ने अपने उद्बोधन में कहीं। उन्होंने कहा कि आईपीएस राजा बाबू सिंह को पर्यावरण से बहुत प्रेम है। इसका उदाहरण उनके उनके 25 बीघे जमीन में चारों तरफ दिखने वाली हरियाली है। उन्हें पेड़ पौधों और खेती के बारे में बहुत अच्छा ज्ञान है। उन्हें जब कृषि से संबंधित कोई नवाचार की जानकारी मिलती है, त़ो उसे वह हमें भी शेयर करते हैं। पुलिस की नौकरी के बावजूद पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनका यह लगाव सराहनीय है।
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कुलपति ने कहा कि बुंदेलखंड में पलायन रोकने के लिए किसानों को खरीफ की खेती के प्रति जागरूक करना होगा ताकि खेत खाली न रहे पूरे साल खेती होते रहे। जिससे लोगों को रोजगार मिल सके। पलायन का दूसरा बड़ा कारण अन्ना प्रथा भी है। अन्ना जानवरों की वजह से खेती नहीं हो पाती है। इसके लिए उन्होंने कृषि विश्वविद्यालय में 51 एकड़ में स्थापित किए गए नंद नंदिनी गौशाला का उल्लेख किया और कहा कि यहां पर अन्ना जानवरों को रखा गया है। जिनसे न सिर्फ दूध मिलता है बल्कि गोमूत्र और गोबर का भी उपयोग ह़ो रहा है। इस मॉडल को लागू करके किसान अपनी आर्थिक स्थिति भी सुधार सकते हैं। इसके अलावा किसानों को कृषि आधारित उद्योग भी लगाना चाहिए।
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इसी प्रकार उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान के निदेशक डॉ. संजय सिंह बताया कि सरकार जिले के हर ब्लॉक में एक कोऑपरेटिव बना रही है। इस कोऑपरेटिव में 30 सदस्य होते हैं। इसके लिए ऑफिस भी बनाया जाता है। जिसमें कुछ कर्मचारी होते हैं। सरकार कृषि आधारित जो भी योजनाएं बनाती है। पहले इसी कोऑपरेटिव को भेजी जाती है। जिसके माध्यम से किसानों को सीधे जानकारी मिलती है। उसके माध्यम से बीज कृषि यंत्र, खाद आदि की जानकारी मिलती है। इसके लिए सरकार की ओर से चार लाख रुपए की मदद की जाती है। इसी तरह से किसान उत्पादक संगठन भी बनाया जाता है। इसमें 10 मेंबर होते हैं। यही मेंबर 300 सदस्य बनाते हैं। इस संगठन का कार्य होता है कि वह अपना उत्पादन रिटेलर के माध्यम से बेचे किसी कंपनी की जाल में न फंसें।
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कार्यक्रम में भारतीय चारा अनुसंधान झांसी के वैज्ञानिक बीपी कुशवाहा ने बताया कि झांसी में एशिया का पहला चारा अनुसंधान केंद्र है। जिसके माध्यम से पशुओं को खिलाये जाने वाले चारे के बारे में विभिन्न प्रजातियां की जानकारी किसानों तक पहुंचाई जाती है। उन्होंने कहा कि पशुपालन के साथ खेती जरुरी होती है और खेती में पशुओं के लिए चारे की भी जरूरत होती है। चारे का उत्पादन होने से पशुओं के पोषण में लागत कम आती है और दूध का उत्पादन ज्यादा होता है इसलिए किसान चारे के बारे में हमारे केंद्र से जानकारी हासिल करें और पशुओं को अच्छा चारा खिलाएं। इसी तरह इसी अनुसंधान केंद्र के प्रकाश द्विवेदी ने भी किसानों को चारे से होने वाले फायदे की जानकारी दी।
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कार्यक्रम के अंत में पर्यावरण संरक्षण के लिए अतुलनीय कार्य करने वाले पचनेही के लाल आईपीएस राजा बाबू सिंह ने किसानों को प्रकृति आधारित खेती करने से, होने वाले फायदे की जानकारी दी। रिप्रेजेंटेटिव फार्मिंग के बारे में उन्होंने बताया कि एक बार मैं वृंदावन में घूम रहा था वहां एक पुरानी हवेली जर्जर अवस्था में थी। जिसमें तरह-तरह के पौधे उगे थे। जिस व्यक्ति ने हवेली बनाई होगी उसने अनंत काल तक रहने की कल्पना की होगी। लेकिन जिस जगह पर उसने हवेली बनाई। उसी जगह पौधे उगे थे। इसी तरह बारिश होने पर मात्र 1 फुट की जगह में देखेंगे वहां 50 तरह की वनस्पति उगती हैं। जैसे एक पटाखा फूटता है तो ऊपर कुछ देर के लिए धुंधला सा छा जाता है। बाद में उजाला होता है। ठीक इसी तरह से प्रकृति के मूल स्वरूप में विविधता होती है। इसलिए प्रकृति आधारित खेती करें। खेतों को बार-बार जुताई करने से इसकी उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है। इसलिए खेती का स्वरूप बदलना चाहिए। उन्होंने भी कहा कि सभी लोग पौधारोपण जरूर करें ताकि जिस तरह हम अपने पूर्वज को याद करते हैं। इसी तरह हमारे बच्चे भी अपने पूर्वज को याद कर सकें। आईपीएस राजा बाबू सिंह ने अपने पर्यावरण प्रेम के बारे में बताया कि उन्होंने कश्मीर में 332 एकड़ में एयरपोर्ट के पास अखरोट बादाम चेरी सेव आदि के 7000 पौधे लगवाए हैं। अगले साल तक इनमें फल आने लगेंगे।
इसके पहले फिनिक्स फार्म हाउस के कोर कमेटी के मेंबर सिद्धार्थ सिंह ने बताया कि फिनिक्स एक चिड़िया होती है जो अपने आप जलकर राख भी बदल जाती है और उसी राख से उसका फिर जन्म होता है। इस तरह से यह चिड़िया अमर होती है। इसी चिड़िया के नाम पर फार्म हाउस है। यहां पर प्रकृति को ध्यान में रखकर ही पौधे लगाए गए हैं। जिसमें जैविक खादो का प्रयोग किया जाता है। क्षेत्र के किसानों को जैविक खाद पर आधारित खेती करने को जागरूक किया जाता है। इसी तरह कमर्शियल टैक्स के एडिशनल कमिश्नर मेरठ ने बताया कि खेती में कीटनाशक व फर्टिलाइजर खाद से बचें,जैविक व कंपोस्ट युक्त खाद का इस्तेमाल करें। बार-बार एक ही फसल को न उगाये। रीजेनरेटिव फार्मिंग को बढ़ावा दे।
संगोष्ठी में श्री श्री 1008 कुर्सेजाधाम महाराज, इस्कॉन मुंबई के राधिका बल्लभ महाराज, मुंबई के ही ब्रजेश लोहिया सहित बड़ी संख्या में किसान मौजूद रहे। कार्यक्रम की शुरुआत में आईपीएस और इस कार्यक्रम के संयोजक/ संरक्षक राजा बाबू सिंह व कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ नरेंद्र प्रताप सिंह ने आए हुए मेहमानों के साथ पौधा रोपण किया।