पीएम कर रहे डा. मुखर्जी के सपनों को साकार: सांसद
भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष चंद्रप्रकाश खरे की अध्यक्षता में कार्यकर्ताओं ने जनसंघ के संस्थापक डॉ. ...
चित्रकूट।
बलिदान दिवस के रूप में मनाई जनसंघ के संस्थापक की पुण्यतिथि
भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष चंद्रप्रकाश खरे की अध्यक्षता में कार्यकर्ताओं ने जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि को बलिदान दिवस के रूप में मनाते हुए श्रद्धासुमन अर्पित कर गोष्ठी का आयोजन किया। इसके अलावा 11 मंडलो और 850 बूथो पर कार्यक्रम हुए।
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मुख्यालय मे आयोजित गोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि सांसद आरके सिंह पटेल ने कहा कि भारतीय जनसंघ के संस्थापक, महान शिक्षाविद् एवं प्रखर राष्ट्रवादी डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को कलकत्ता के प्रतिष्ठित परिवार में शिक्षाविद् आशुतोष मुखर्जी के घर माता जोगमाया की कोख से हुआ। वे 1926 में इंग्लैंड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। 33 वर्ष की अल्पायु में 8 अगस्त 1934 को कलकता विश्वविद्यालय के सबसे कम आयु के कुलपति बन गए। वे कहते थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से सब एक हैं। जबकि धर्म के आधार पर विभाजन के वह कट्टर विरोधी थे।
उनकी धारणा थी कि किसी में कोई अन्तर नहीं है। सब एक ही रक्त के हैं। एक भाषा, एक संस्कृति और एक ही विरासत है। आजाद भारत के पहले मंत्री मंडल में गैरकांग्रेसी उद्योग मंत्री के रूप में शामिल हुए, परन्तु राष्ट्रवादी चिन्तन के चलते अन्य नेताओं से मतभेद बराबर बने रहे। फलतरू राष्ट्रीय हितों को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण उन्होंने मंत्रीमंडल से त्याग पत्र दे दिया। इसके बाद आरएसएस प्रमुख गोलवलकर से परामर्श करने के बाद 21 अक्तूबर 1951 को भारतीय जनसंघ का गठन किया और स्वयं इसके संस्थापक अध्यक्ष बने। स्वतंत्र भारत के 1952 में हुए पहले संसदीय चुनाव में डा. मुखर्जी सहित तीन सांसद भारतीय जनसंघ के चुन कर आए।
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वह जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। जम्मू कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान था। वहां का मुख्यमन्त्री वजीर ए आजम कहलाता था। जम्मू कश्मीर में जाने के लिए परमिट लेना पड़ता था। संसद में अपने भाषण में डा. मुखर्जी ने धारा 370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने संकल्प किया था कि या तो भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा। अपना संकल्प पूरा करने के लिए वह 8 मई 1953 को बिना परमिट लिए जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहां पहुंचते ही 11 मई को उन्हें गिरफ्तार कर नजरबन्द कर दिया गया।
40 दिन नजरबंद रहने के बाद 23 जून 1953 को सुबह 3.40 बजे जेल के अस्पताल में रहस्यमयी हालात में उनका मृत शरीर में मिला। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके सपनों को पूरा करने का काम कर रहे है। जिलाध्यक्ष ने कहा कि देश की एकता और अखंडता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले ऐसे महामानव सदियों में जन्म लेते हैं। बलिदान दिवस कार्यक्रम के जिला संयोजक शक्ति प्रताप सिंह तोमर ने कहां कि प्रत्येक मंडल सेक्टर व बूथ स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किए गए। कार्यक्रमों के माध्यम से देश के लिए बलिदान देने वाले डॉ. मुखर्जी का जीवन चरित्र जन-जन तक पहुंचाने का कार्य कर रहे है। गोष्ठी में पूर्व सांसद भैरो प्रसाद मिश्र, पूर्व राज्य मंत्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय, बुंदेलखंड विकास बोर्ड के सदस्य लवकुश चतुर्वेदी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस मौके पर हरिओम करवरिया, अश्वनी अवस्थी, राजेश्वरी द्विवेदी, रवि गुप्ता, अर्चना सिंह, शिवाकांत पांडे, भागवत त्रिपाठी आदि कार्यकर्ता मौजूद रहे।
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