बीहड़ के बागी में मिलिए दस्यु सरगना ददुआ से

पाठा के जंगल में तीन दशक तक आतंक का पर्याय बने रहे दस्यु सरगना शिव कुमार उर्फ ददुआ क्यों डाकू बना और जंगल में 30 साल..

Nov 30, 2020 - 08:21
Dec 5, 2020 - 17:47
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बीहड़ के बागी में मिलिए दस्यु सरगना ददुआ से
बीहड़ के बागी पोस्टर

पाठा के जंगल में तीन दशक तक आतंक का पर्याय बने रहे दस्यु सरगना शिव कुमार उर्फ ददुआ क्यों डाकू बना और जंगल में 30 साल उसने कैसे बिताए, कौन थे इसके दुश्मन और कैसे हुई उसकी मौत? इन सारे सवालों को जानना चाहते हैं तो देखिए एम एक्स प्लेयर में रिलीज हुई फिल्म बीहड के बागी में। इसमें ददुआ दद्दू के रूप में नजर आएंगे और आप इनसे जुड़े सभी रहस्यों को इस फिल्म के  के जरिए जान पायेंगे।

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फिल्म का ओरिेजनल प्लाॅट क्या है, और उसका निर्माण कहां और किस प्रकार किया गया? फिल्म के रिलीज के साथ कहानी व अन्य बिन्दुओं पर फिल्म के नायक दिलीप आर्य ने बताया कि फिल्म का प्लाॅट शिवकुमार के ददुआ बनने की कहानी है। इसमें हमने उनके जीवन के उन पहलुओं को छूने का प्रयास कर रहे हैं कि वह किन परिस्थितियों में डाकू बना और फिर क्या रणनीति अपनाई कि जिससे वह 30 वर्षों तक अजेय बने रहे।

फिल्म नगरी मुम्बई में सेट लगाने की जगह चित्रकूट में उन स्थानों पर शूटिंग की, जहां कभी ददुआ का विचरण होता था। फिल्म में उन स्थानों को भी दिखाया गया है जो आने वाले समय में चित्रकूट जिले को पर्यटन की दृष्टि से बढ़ावा दे सकते हैं। शबरी प्रपात के साथ चित्रकूट के तमाम किले, नदियां, पहाड़, झरने व अन्य स्थान दिखाए गए हैं। देवकली, कौबरा, गढ़चपा, मानिकपुर, कर्वी, सेमरदहा, मालिनटंकी के साथ चमरौंहा, सकरौंहा आदि स्थानों पर शूटिंग की।

फिल्म में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका

फिल्म के निर्देशक रितम श्रीवास्तव हैं। ये सुप्रसिद्ध निर्देशक प्रकाश झा के सहयोगी रहे। इन्होंने गंगाजल, सत्याग्रह, आरक्षण, राजनीति आदि फिल्मों में प्रकाश झा के साथ काम किया है। फिल्म केें मुख्य अभिनेता दिलीप आर्य को इस फिल्म से लान्ॅच किया जा रहा है। सौभाग्य से यह समीपवर्ती फतेहपुर जिले के रहने वाले हैं। इन्होंने बचपन से ही डाकू ददुआ की काफी कहानियां सुन रखीं थीं। जिससे उन्हें फिल्म में अभिनय करने में मदद मिली।

दिलीप ने लखनऊ भारतेंदु नाट्य अकादमी तथा फिल्म एवं टेलीविजन इंस्टीट्यूट से डिग्री ली है। वह इसके पूर्व कई फिल्मों में छोटे रोल कर चुके हैं। स्थानीय होने के कारण इनकी भाषा व हाव-भाव में अच्छी पकड़ है, जिससे फिल्म में डायलाॅग डिलेवरी काफी अच्छी हो सकी। इसे कई फिल्म प्रतियोगिताओं में भेजा गया है। जहां काफी सराहना मिली है। कोलकाता में इसे बेस्ट नेरेटिव अवाॅर्ड मिला है।

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बताते चलें कि इस फिल्म का निर्माण तानाशाह के नाम पर किया गया था।  अब इसका नाम बदलकर बीहण के बागी कर दिया गया है।

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