महाकुम्भ : अखाड़ों का चुनाव, कढ़ी पकौड़ी की संगत, फिर काशी रवानगी

बसंत पंचमी पर तीसरे अमृत स्नान के बाद अखाड़े प्रयाग से प्रस्थान की तैयारी में हैं। प्रयाग की भूमि छोड़ने...

महाकुम्भ : अखाड़ों का चुनाव, कढ़ी पकौड़ी की संगत, फिर काशी रवानगी

महाकुम्भ नगर। बसंत पंचमी पर तीसरे अमृत स्नान के बाद अखाड़े प्रयाग से प्रस्थान की तैयारी में हैं। प्रयाग की भूमि छोड़ने से पूर्व निरंजनी और महानिर्वाणी दो अखाड़ों में नई सरकार चुनी जाएगी। इन अखाड़ों में नई सरकार चुनने की प्रक्रिया बसंत पंचमी के स्नान के बाद ही शुरू हो चुकी है। सात फरवरी को अष्टकौशल के चुनाव के साथ ही कढ़ी-पकौड़ी की संगत के बाद अखाड़े वाराणसी की ओर चल पड़ेंगे। बता दें, सात फरवरी को ही दोनों अखाड़ों में अष्टकौशल के श्री महंतों के नामों की घोषणा की जाएगी। इसके लिए अखाड़ों की सभी मढ़ियों में श्री महंत के नाम तय हो रहे हैं।

चुनाव अखाड़ों की परंपरा का हिस्सा : परंपरा के मुताबिक, तीसरे अमृत स्नान के बाद इनका चुनाव होता है। निरंजनी अखाड़ा सचिव श्री महंत राम रतन गिरि के अनुसार, सभी मढ़ियों से श्री महंतों को प्रतिनिधित्व दिया जाना है। वसंत स्नान के बाद इसकी प्रक्रिया आरंभ हो गई है। अब सात फरवरी को अष्टकौशल के नाम घोषित होंगे। इसके साथ ही नई कार्यकारिणी गठित हो जाएगी। महानिर्वाणी अखाड़ा सचिव श्री महंत यमुनापुरी का कहना है कि सात फरवरी को अखाड़े काशी के लिए रवाना हो जाएंगे।

जूना अखाड़े का काशी में होगा चुनाव : जूना अखाड़े के अष्टकौशल और सचिव का चुनाव काशी में होगा। जूना अखाड़े की कार्यकारिणी का कार्यकाल महज तीन साल का होता है जबकि निरंजनी और महानिर्वाणी अखाड़े का कार्यकाल छह साल के लिए होता है। जूना अखाड़े की नई कार्यकारिणी गठित होने के साथ ही सचिव को भी काशी में ही नई जिम्मेदारी दी जाएगी।

कढ़ी पकौड़ी की संगत के बाद काशी के लिए रवानगी : सात फरवरी को नए अष्टकौशल की मौजूदगी में परंपरागत कढ़ी-पकौड़ी की संगत होगी। इसके साथ ही नवनिर्वाचित अष्टकौशल महंत छावनी की धर्म ध्वजा की तनियां सांकेतिक रूप से ढीली करके अखाड़ों को काशी के लिए प्रस्थान करने का संकेत देंगे। निरंजनी और महानिर्वाणी अखाड़े अपने ‘देव भाल’ प्रयागराज स्थित मुख्यालय में स्थापित करेंगे और ईष्ट देव के साथ होली तक काशी में प्रवास करेंगे। महाशिवरात्रि स्नान के बाद बाबा विश्वनाथ के साथ होली खेलने के बाद संन्यासियों का कुंभ प्रवास पूर्ण माना जाएगा। होली के बाद ही सभी संन्यासी अपने-अपने स्थानों को लौटेंगे।

अखाड़े में 52 मढ़ियों के संत : रमता पंच व श्री महंत चार वेदों के ज्ञाता होते हैं। आनंदवार व भूरवार संप्रदाय को मिलाकर बने आनंद अखाड़ा में दोनों के दो-दो श्री महंत होते हैं। इतने ही रमता पंच होते हैं। इनका चुनाव छह वर्ष में होता है। अखाड़े में 52 मढ़ियों के संत हैं। श्री निरंजनी अखाड़ा के साथ इनका शिविर लगता है। बोलचाल में यह निरंजनी अखाड़ा का छोटा भाई कहा जाता है।

हिन्दुस्थान समाचार

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