हमीरपुर : बुन्देलखण्ड में बेरोजगारी की सबसे बड़ी बाधा बनी उद्योग नगरी

बुन्देलखण्ड क्षेत्र में बेरोजगारी की रफ्तार पर ब्रेक नहीं लग रही है, दिनों दिन बेरोजगारी की समस्यायें बढ़ रही है..

हमीरपुर : बुन्देलखण्ड में बेरोजगारी की सबसे बड़ी बाधा बनी उद्योग नगरी

  • हजारों की संख्या में रोजगार के लिये युवकों ने किया पलायन

बुन्देलखंड क्षेत्र में बेरोजगारी की रफ्तार पर ब्रेक नहीं लग रही है। दिनों दिन बेरोजगारी की समस्यायें बढ़ रही है। बेरोजगारी का दंश झेल रहे युवक भी परिवार के लिये बोझ बने है। इनमें तमाम ऐसे भी बेरोजगार है जो रोजगार के लिये परदेश में पसीना बहा रहे है वही तमाम लोग यहां दर-दर भटक रहे है। हमीरपुर जनपद के सुमेरपुर कस्बे में स्थापित उद्योग नगरी भी इन दिनों बेरोजगारों के लिये सहारा नहीं बन सकी।

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उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में सबसे पिछड़े बुन्देलखंड क्षेत्र में बेरोजगारी के ठोस उपाय नहीं हो पाने की वजह से ये क्षेत्र विकास के नये आयाम को अभी नहीं छू पा रहा है। यहां के किसान दैवीय आपदाओं से परेशान पहले से ही है लेकिन उनकी संतानें भी बेरोजगारी की समस्या से निजात नहीं पा रही है।

जनपद में पढ़े लिखे युवक रोजगार के लिये हर तरफ परेशान देखे जा रहे है। हर घर में एक दो युवक बेरोजगारी का दंश झेल रहे है। वर्ष 1985 में सुमेरपुर कस्बे में उद्योग नगरी स्थापित होने से क्षेत्र के लोगों को बड़ी उम्मीद हुयी थी कि अब तो यहां घर और परिवार चलाने के लिये रोजगार मिलेगा लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी ही फेर गया है।

  • हर घर में मौजूद है एक दो बेरोजगार युवक, उद्योग भी सिमटे

एक दशक के अंदर उद्योग नगरी वीरान हो गयी है। इससे सुमेरपुर और आसपास के तमाम गांवों से कम से कम 20 हजार लोग रोजगार के लिये अन्य राज्यों के लिये पलायन कर गये है।

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जिला उद्योग केन्द्र के महाप्रबंधक केडी वर्मा ने शुक्रवार को यहां बताया कि सुमेरपुर औद्योगिक नगरी वाकई वीरान हो गयी है। अब तो गिनती में ही फैक्ट्रियां चल रही है। सरकार उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये कई कार्यक्रम चला रही है जिससे आने वाले समय उद्योग नगरी के दिन अच्छे आयेंगे। 

कांग्रेस सरकार में 506 एकड़ भूमि में बसाई गयी थी उद्योग नगरी

सुमेरपुर कस्बे में वर्ष 1985 में कांग्रेस के शासनकाल में 506 एकड़ भूमि उद्योग नगरी को बसाने के लिये अधिग्रहीत की गयी थी। वर्ष 1987-88 में फैक्ट्रियां भी बनकर तैयार हो गयी थी। वर्ष 2000 तक 80 से 90 फैक्ट्रियां काम करती रही लेकिन इसके बाद विद्युत सब्सिडी और असुरक्षा सहित अन्य कई कारणों से उद्योग नगरी के बुरे दिन शुरू हो गये। वर्ष 2007 तक 50 से अधिक फैक्ट्रियां बंद हो गयी और फैक्ट्री मालिक भी यहां से लौट गये। इन फैक्ट्रियों में हजारों युवक काम करते थे जो फिर से बेरोजगार हो गये।

फैक्ट्रियां चलने से  30 हजार युवाओं के घरों में जलते थे चूल्हे

बताया जाता है कि वर्ष 2007 तक दो दर्जन फैक्ट्रियां चलती रही लेकिन 2012 तक सिर्फ एक दर्जन ही फैक्ट्रियां रह गयी। ज्यादातर फैक्ट्रियों में ताले पड़ गये। शुरुआत में 80 से 90 फैक्ट्रियों में करीब 30 हजार युवक काम करते थे। लेकिन मौजूदा में चार पांच ही फैक्ट्रियां रह जाने से बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गये है। इनमें आधे लोग घर बैठ गये वहीं तमाम लोग गुजरात में मजदूरी कर रहे है। मौजूदा में करीब तीन हजार युवक यहां काम कर रहे है। फैक्ट्रियों में भी ये कामगार परिवार चलाने को दिन रात काम करते है।

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फैक्ट्रियां बंद होने से घटा कस्बे का व्यापार

उद्योग नगरी सुमेरपुर में जब सभी फैक्ट्रियां चल रही थी विभिन्न प्रांतों के तथा क्षेत्रीय 30 हजार से अधिक लोग कस्बे में रह रहे थे। कस्बे का व्यापार बढ़ा था। बाजार में रौनक रहा करती थी। लोग किराए का मकान लेकर रहते थे तो तमाम परिवारों का खर्च किराया से चलता था। सब्जी फल व्यापारियों व अन्य दुकानों की आय बढ़ी थी। हर क्षेत्र में लाभ ही लाभ था। मगर जब से उल्टी गिनती शुरू हुई तो कस्बे का व्यापार बिगड़ता चला गया जो लोग बाहर से आए थे वापस लौट गए।

इस तरह उद्योग नगरी की विफलता के साथ रोजगारों को तो झटका लगा ही कस्बे के व्यापार को भी गहरा झटका लगा है। व्यापारी वर्ग का कहना है कि उद्योग नगरी को फिर से बहाल करने की दिशा में भाजपा सरकार को नए सिरे से प्रयास करना चाहिए।

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हिन्दुस्थान समाचार

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