भारत के प्रथम क्रांतिकारी जिन्हें आज के दिन फांसी पर चढ़ाया गया था, जानिए कैसे शुरू की अंग्रेजो से जंग

15 अगस्त का दिन हमारे देश में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है मन में देश प्रेम की भावना जागृत होती है, हम इस दिन देश को..

Apr 8, 2022 - 01:55
Apr 8, 2022 - 02:03
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भारत के प्रथम क्रांतिकारी जिन्हें आज के दिन फांसी पर चढ़ाया गया था, जानिए कैसे शुरू की अंग्रेजो से जंग
ऐतिहासिक क्रांति के नायक शहीद मंगल पांडे (Hero of the historical revolution Shaheed Mangal Pandey)

15 अगस्त का दिन हमारे देश में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है मन में देश प्रेम की भावना जागृत होती है, हम इस दिन देश को आजाद कराने वाले शहीदों को सम्मान के साथ स्मरण करते हैं। इन देशभक्तों की वजह से हमारा देश स्वतंत्र हुआ 18 57 की क्रांति के महानायक अमर बलिदानी देश की क्रांति के पुरोधा मंगल पांडे का नाम सर्वप्रथम लिया जाता है। भारत की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी सबसे प्रथम फांसी के फंदे पर लटका दिए गए बात तब की है जब अंग्रेज हमारे देश के शासक थे।

हुगली नदी के किनारे बैरकपुर नगर में अंग्रेजी सेना की छावनी थी मंगल पांडे वही सिपाही के रूप में भर्ती हुए थे, वह बहुत शांत और गंभीर स्वभाव वाले मृदुभाषी सिपाही थे। 1857 की ऐतिहासिक क्रांति के नायक शहीद मंगल पांडे का नाम भले ही कोई माने ना माने लेकिन भारतीय स्वतंत्रता के संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है जिन्होंने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संग्राम में अपनी प्रथम गोली दाग कर और अपना पहला बलिदान देकर महान क्रांति का श्रीगणेश, किया था।

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले जो बलिया में है के ग्राम नगवा में पंडित दिवाकर पांडे के पुत्र मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को हुआ 22 वर्ष की उम्र में 10 मई 1949 को ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में सिपाही भर्ती हुए उनकी तैनाती 34 इन्फेंट्री रेजीमेंट बैरकपुर में की गई वे काफी स्वस्थ और गठीला शरीर के थे, तथा अपनी बहादुरी साहस एवं गंभीरता के लिए प्रसिद्ध थे इनकी लंबाई 8 फुट ढाई इंच थी।

इनकी शरीर की बनावट व लंबाई ताकत व शक्ति के बारे में महान लेखक अमृतलाल नागर की किताब गदर के फूल में वर्णित है। वे सेना में एक अच्छे सैनिक के रूप में जाने जाते थे। अंग्रेजी लेखक डब्लू एच फ्री सेट ने अपनी पुस्तक द टेल ऑफ द ग्रेट म्यूनिट 1901 में लिखा है कि मंगल पांडे में एक अच्छे सैनिक के गुण मौजूद थे उनकी माता पूज्य अभय रानी ने अपने अभय पुत्र का नाम देवसेना नायक मंगल के नाम पर मंगल दिया।

ऐतिहासिक क्रांति के नायक शहीद मंगल पांडे (Hero of the historical revolution Shaheed Mangal Pandey)

29 मार्च 1857 रविवार का दिन था इन्फेंट्री रेजीमेंट बैरकपुर सेना के क्षेत्र में यह खबर फैल गई की भारत में यूरोपियन सेना आ गई है कंटोनमेंट पूरी तरह से गोरी सेना से भर जाएगा और भारतीय सैनिकों को दंडित कर सेना से बाहर कर दिया जाएगा। बंगाल नेटिव इन्फेंट्री पांचवी कंपनी के सिपाही नंबर 1446 मंगल पांडे को जैसे ही समाचार मिला कि अंग्रेज आ गए हैं सिपाहियों की जात समाप्त होने वाली है वे अपनी बंदूक लेकर बैरक से बाहर निकले और क्वार्टर गार्ड के सामने अपनी स्थिति संभाली। उन्होंने अपने साथियों से भी साथ आने को कहा मंगल पांडे ने अंग्रेजी सत्ता को ललकारते हुए कहा कि हम कोलहू के बैल नहीं है जो चाहे हमें जिस तरह जोत ले और ना ही हम काबुल के कबूतर हैं जो हमें जैसा चाहे सब्जी बना कर निकल जाए।, हम स्वाभिमानी भारतीय वीर हैं।

अंग्रेज हमारी भारतीय स्वाधीनता को छीन कर हमारा धर्म नष्ट करने पर तुले हैं हम इसे कदापि सहन नहीं कर सकते। भारत के वीर साथियों धूर्त अंग्रेज आप पर हावी हैं, हमें चर्बी के कारतूस देकर अपवित्र करना चाहते हैं ताकि हमें आसानी से इसाई बनाया जा सके। मंगल पांडे का रूद्र रूप देखकर 34 वी रेजीमेंट के अफसरों के पसीने छूट गए उन्होंने एक सिपाही एड्वेंट टेंट के आवास पर भेज कर लेफ्टिनेंट बात को इस बात की जानकारी दी लेफ्टिनेंट बाग तत्काल अपनी तलवारों पिस्तौल ले कर घोड़े पर सवार होकर वाटर गार्ड के सामने आ पहुंचा। 

29 मार्च 1857 को जिन अंग्रेजो ने मुगलों पेशवा राजपूतों सीखो को प्लासी के युद्ध में परास्त कर दिया 1757 से 1857 तक इस देश को लूटा अंग्रेजों पर 100 बरस के बाद इस महान वीर सपूत ने गोली मारकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नीव रखी। लेफ्टिनेंट बागवा, अंग्रेज सर जेंट मेजर जी पीयूश अन को गोली से मार कर सत्ता संग्राम की घोषणा कर दी। मंगल पांडे ने कहा कि स्वदेश व स्वयं की रक्षा हेतु प्राणों की आहुति देना मैं अपना नैतिक कर्तव्य मानता हूं।

जियो भी शान से, मरो भी शान से अरे देश के निर्लज्ज जो तुम्हें शर्म आनी चाहिए मुट्ठी भर अंग्रेज गोरे तुम पर हुकूमत कर रहे हैं मेरा साथ दो बंदूक उठा लो इन्हें मार दो कोई भी जिंदा बचकर ना भागने पाए। मूर्खाे, हम पर औरतें, बच्चे हंसेंगे गुलामी में जीने की अपेक्षा हंसते-हंसते देश के लिए बलिदान होना शेषकर है। तुम अपना खून दो खून की होली खेलो राष्ट्रहित सर्वाेपरि है, यह फिरंगी जाएंगे देश आजाद होगा हमें आजादी मिलेगी। मुझे पूरा विश्वास है भले ही देश की आजादी के लिए 100 बरस लगे मैं बड़ा भाग्यशाली हूं कि भारत माता की सेवा में मुझे अपने प्राणों की आहुति देने का अवसर सर्वप्रथम कुछ ही समय पश्चात होने जा रहा है।

मैं भारत माता से प्रार्थना करता हूं कि मेरा जन्म भारत में ही हो मैं सौ जन्म तक राष्ट्र के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर बलिदान हूं यही मेरी अंतिम इच्छा है। ईश्वर से प्रार्थना यह मक्कार फिरंगी झूठे दगाबाज एक मंगल को फांसी पर चढ़ा कर स्वतंत्रा संग्राम रोकना चाहते हैं, अब यह रुकने वाला नहीं है। आज के बाद पूरे भारत में लाखों मंगल पांडे तैयार हो जाएंगे और देश की आजादी के लिए बलिदान हो जाएंगे।

मुझे पूरा विश्वास है देश की रक्षा आजादी के लिए हिंसा करना बहुत बड़ा पुण्य का कार्य है। मंगल पांडे  स्टोरी आप इन इंडियन रिवॉल्यूशनरी 5 अप्रैल 1857 को कोर्ट मार्शल में चल रही बहस के दौरान तत्कालीन अंग्रेजी न्यायाधीश के समक्ष यह विचार व्यक्त किए। जहां यह घटना घटी वहां 20 व्यक्तियों का तोपखाना दल भी कार्य पर था। गोली चलने की आवाज सुनकर अन्य सिपाही भी सादी वर्दी में लाइन में आ गए लेकिन शेख पलटू को छोड़कर घायल बाग की सहायता करने के लिए कोई भी आगे नहीं बढ़ा, बल्कि वहां उपस्थित सिपाहियों ने घायल अंग्रेज अफसर को अपनी बंदूक की बट से मारा और जमीन पर गिरा दिया। जब शेख पलटू ने मंगल पांडे को गिरफ्तार करने को कहा तो अन्य सिपाहियों ने उसे गालियां दी। 

ऐतिहासिक क्रांति के नायक शहीद मंगल पांडे (Hero of the historical revolution Shaheed Mangal Pandey)

इसी बीच कर्नल एम जी व्हीलर को इस घटना की जानकारी मिली तो वह मंगल पांडे का सामना करने क्वटर गार्ड जा पहुंचा, किंतु जब उसे पता चला कि मंगल पांडे को पकड़ने के प्रयास में दो अंग्रेज गोली से मारे जा चुके हैं मंगल पांडे की तो वह मंगल पांडे का रौद्र रूप देखकर सहम गया। उसकी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हुई और वह मंगल पांडे से भयभीत होकर वहां से भाग गया।

गोली से घायल मेजर ने यह समाचार सेना के जनरल हेयर से को दिया तो सेना में ही सेवारत अपने दो पुत्रों को साथ लेकर मैदान की ओर चल पड़ा इसी बीच डिवीजन स्टाफ मेजर रास भी अपने एक लड़के के साथ परेड मैदान में जा पहुंचा। तब तक वहां सिपाहियों की काफी भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी किंतु किसी भी सिपाही ने मंगल पाडे का साथ नहीं दिया।

इसके बावजूद भी वह वीर अपनी आन मान मर्यादा के लिए लड़ता रहा जब मंगल पांडे ने देखा वह घिर चुका है तो उसने अपनी बंदूक की नाल सीने पर रखकर पैर से घोड़ा दबा दिया और गोली से घायल होकर जमीन पर गिर पड़े। उनके शरीर से खून की धारा बहने लगी घाव हल्का होने के कारण बच गए और गिरफ्तार कर लिए गए 5 अप्रैल 1857 को बैरकपुर में ही 34 रेजीमेंट के मेश हाउस में उन पर विशेष अदालत मे दिन के 11 बजे मुकदमा चलाया गया जो 3 दिन तक चला तीसरे दिन 7 अप्रैल को प्रेसिडेंसी डिवीजन के कमांडिंग अफसर मेजर जनरल पीहर सेके हस्ताक्षर से सिपाही नंबर 1446 मंगल पांडे को दोषी मानते हुए फांसी की सजा का हुकुम दिया। इस आदेश में उन्हें सेना के सारे सिपाहियों की उपस्थिति में परेड मैदान पर खुले आम फांसी पर लटकाए जाने का आदेश दिया गया, ताकि अन्य कोई सिपाही फिर विद्रोह का सामना कर सके।

यह उल्लेख करना अनिवार्य है कि मंगल पांडे को फांसी देने का निर्णय अदालत में सुनवाई से पूर्व भी कर लिया जा चुका था। जांच कार्यवाही मात्र दिखावा थी ताकि जनता का विश्वास बना रहे महत्वपूर्ण तथ्य है कि उन्हें फांसी देने के लिए कोई जल्लाद तैयार नहीं हुआ स्थानीय स्तर पर तो, कोलकाता से जल्लाद बुलाए गए 8 अप्रैल 1857 को अशुभ दिन प्रातः 5.30 विशेष रक्षकों के साथ मंगल पांडे को मात्र 26 वर्ष 2 माह 9 दिन की अल्प आयु में ही अंग्रेजी सत्ता ने अपनी कुरता का शिकार बना कर जवानों के सामने परेड मैदान बैरकपुर में फांसी पर लटका दिया। इस प्रकार मंगल पांडे ने अपने प्राणों की आहुति दी 

उस समय अंग्रेजों की ताकत को चुनौती दी उनके साहस ने क्रांति की चिंगारी जलाई जो हमें आजादी के रूप में मशाल बनकर रास्ता दिखाती रही। उस समय आजादी आंदोलन के सक्रिय भागीदारी करने वाले सिपाहियों को पांडे कहकर संबोधित किया जाने लगा स्वधर्म स्वराज्य एवं स्वाभिमान के लिए जिस सता के बीज का रोपण किया था, वह आज सशक्त बट वृक्ष बन कर आजाद भारत के रूप में दुनिया के सामने खड़ा  है। फांसी के फंदे को गले में डालते समय उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। उदासी का कोई चिन्ह नहीं था, वह झूमता हुआ फांसी के फंदे पर चढ़ा चेहरे पर देशभक्ति की भावना चमक रही थी उनकी निगाहें कह रही थी अंग्रेज तुम बहुत दिन तक हमारे देश में राज्य नहीं कर सकते।

ऐतिहासिक क्रांति के नायक शहीद मंगल पांडे (Hero of the historical revolution Shaheed Mangal Pandey)

1 दिन अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा भारत के महान क्रांतिकारियों ने मंगल पांडे को अपना आदर्श माना क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह ने 8 अप्रैल 1929 को मंगल पांडे के बलिदान दिवस पर असेंबली में बम फेंककर देश के क्रांतिकारियों की ताकत का परिचय कराया, मां लक्ष्मीबाई ने, बहादुर शाह जफर ने, मंगल पांडे को आजादी की पहली गोली माना।  क्रांतिकारी की स्मृति में राजधानी दिल्ली में मंगल पांडे के नाम पर मार्गों का नाम रखा गया। लक्ष्मी नगर से मदर डेयरी तक मंगल पांडे मार्ग उत्तर प्रदेश में मध्य प्रदेश में उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले के प्रत्येक गांव में युवक मंगल दल, महिला मंगल दल गठित किए गए।  अमर शहीद क्रांतिकारी मंगल पांडे का 8 अप्रैल को बलिदान दिवस है, इसी दिन 1857 को प्रातः 5 बजे फांसी हुई थी। मैं उनको अपनी ओर से सच्ची श्रद्धांजलि देता हूं, नमन करता हूं, ईश्वर से प्रार्थना करता हूं, कि वे हम सब को आशीर्वाद प्रदान करें देश की रक्षा करें।

वंदे मातरम।

उमा शंकर पांडे 

संयोजक

क्रांतिकारी मंगल पांडे फाउंडेशन

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