दिल्ली चुनाव में पर्यावरण का मुद्दा : गायब क्यों? पीपल मैन डॉ. सिंह ने जताई चिंता।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की चुनावी राजनीति में प्रदूषण, वायु गुणवत्ता और हरित नीतियों को प्रमुख मुद्दा होना चाहिए...

Jan 30, 2025 - 09:25
Jan 30, 2025 - 09:42
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दिल्ली चुनाव में पर्यावरण का मुद्दा : गायब क्यों? पीपल मैन डॉ. सिंह ने जताई चिंता।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की चुनावी राजनीति में प्रदूषण, वायु गुणवत्ता और हरित नीतियों को प्रमुख मुद्दा होना चाहिए, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से पर्यावरण का सवाल अक्सर हाशिए पर चला जाता है। चुनावी अभियान में राजनीतिक दल रोजगार, बिजली-पानी, सड़क, कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों पर तो जमकर बहस करते हैं, लेकिन दिल्ली में हर साल गंभीर वायु प्रदूषण और जल संकट के बावजूद पर्यावरण नीति पर ठोस चर्चा नहीं होती। यह लेख इसी विषय की पड़ताल करेगा कि आखिर दिल्ली के चुनावी विमर्श से पर्यावरण का मुद्दा क्यों गायब है और क्या इसे चुनावी एजेंडे का प्रमुख हिस्सा बनाया जा सकता है।

दिल्ली का गंभीर पर्यावरण संकट

दिल्ली विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है। हर साल अक्टूबर से जनवरी के बीच स्मॉग की मोटी परत राजधानी को ढक लेती है, जिससे लोगों को श्वसन संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) और अन्य एजेंसियों के आंकड़े दिखाते हैं कि दिल्ली की हवा में पीएम 2.5 और पीएम 10 कणों की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों से कई गुना अधिक होती है।

इसके अलावा, यमुना नदी की स्थिति भी चिंताजनक है। दिल्ली में बहने वाली यमुना का लगभग 70% हिस्सा अत्यधिक प्रदूषित हो चुका है। उद्योगों से निकलने वाले रासायनिक कचरे, सीवर का अनुपचारित पानी और बढ़ता कंस्ट्रक्शन वेस्ट जल प्रदूषण को गंभीर बना रहे हैं।

चुनावी बहस से पर्यावरण गायब क्यों?

1. मतदाताओं की प्राथमिकताएँ

दिल्ली का आम मतदाता प्रदूषण को लेकर चिंतित तो है, लेकिन चुनावी प्राथमिकताओं में स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और बुनियादी सुविधाएँ पर्यावरण से ऊपर रहती हैं। राजनीतिक दल मतदाताओं की इन्हीं प्राथमिकताओं के आधार पर अपने एजेंडे तय करते हैं।

2. तात्कालिकता की कमी

पर्यावरणीय समस्याएँ धीमी गति से असर डालती हैं और उनका प्रभाव दीर्घकालिक होता है। दूसरी ओर, बिजली-पानी की किल्लत या सुरक्षा जैसे मुद्दे तुरंत असर डालते हैं, इसलिए वे चुनावी मुद्दे बन जाते हैं।

3. राजनीतिक दलों की उदासीनता

अधिकांश राजनीतिक दल चुनावी घोषणापत्र में पर्यावरण से जुड़े कुछ वादे तो करते हैं, लेकिन चुनाव प्रचार में इन मुद्दों को प्रमुखता नहीं मिलती। पर्यावरण संबंधी नीतियों को लागू करना जटिल और दीर्घकालिक प्रक्रिया है, जिसमें तुरंत वोट जुटाने की क्षमता नहीं होती।

4. दोषारोपण की राजनीति

दिल्ली में पर्यावरण की जिम्मेदारी केवल राज्य सरकार की नहीं, बल्कि केंद्र सरकार, पड़ोसी राज्य हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश की भी है। हर साल पराली जलाने पर राजनीतिक बहस होती है, लेकिन इसका कोई ठोस समाधान नहीं निकलता।

5. कॉरपोरेट हित और विकास मॉडल

दिल्ली में निर्माण कार्य, औद्योगिक गतिविधियाँ और बढ़ते वाहन बड़े पैमाने पर प्रदूषण फैलाते हैं। सरकारें इन्हें नियंत्रित करने के बजाय विकास का नाम देकर प्राथमिकता देती हैं।

क्या पर्यावरण को चुनावी एजेंडे में शामिल किया जा सकता है?

1. सशक्त जन जागरूकता अभियान

अगर दिल्ली के नागरिक पर्यावरण को चुनावी मुद्दा बनाने के लिए संगठित रूप से आवाज़ उठाएँ, तो राजनीतिक दल इसे गंभीरता से लेंगे।

2. मीडिया की भूमिका

मीडिया को चाहिए कि वह चुनावी बहसों में पर्यावरण संबंधी सवालों को मजबूती से उठाए और पार्टियों को जवाब देने के लिए बाध्य करे।

3. राजनीतिक दलों की जवाबदेही

राजनीतिक दलों को अपने घोषणापत्र में केवल वादे करने के बजाय ठोस रोडमैप देना चाहिए कि वे कैसे दिल्ली की हवा और पानी को स्वच्छ बनाएंगे।

4. ग्रीन वोटर मूवमेंट

दिल्ली में एक "ग्रीन वोटर मूवमेंट" शुरू किया जा सकता है, जिसमें नागरिक यह संकल्प लें कि वे केवल उन उम्मीदवारों को वोट देंगे, जो पर्यावरण को अपनी प्राथमिकता बनाएँगे।

5. कानूनी और नीतिगत सुधार

दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार को मिलकर सख्त कानून बनाने होंगे, जिससे उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषकों को नियंत्रित किया जा सके, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जा सके और यमुना की सफाई को प्राथमिकता दी जा सके।

निष्कर्ष

दिल्ली की पर्यावरणीय चुनौतियाँ इतनी गंभीर हैं कि उन्हें नजरअंदाज करना घातक साबित हो सकता है। चुनावी राजनीति में इस विषय को प्रमुखता न मिलने से समस्या और जटिल होती जा रही है। अगर मतदाता, मीडिया और जागरूक नागरिक पर्यावरण को एक प्राथमिक चुनावी मुद्दा बनाते हैं, तो राजनीतिक दलों को भी इसे गंभीरता से लेना पड़ेगा।

जब तक दिल्ली का हर नागरिक स्वच्छ हवा और स्वच्छ पानी को अपने अधिकार के रूप में नहीं देखेगा, तब तक यह मुद्दा चुनावी घोषणापत्रों में महज औपचारिकता बना रहेगा।

अब समय आ गया है कि हम चुनाव में सिर्फ विकास और बुनियादी सुविधाओं की बात न करें, बल्कि यह भी पूछें कि हमें शुद्ध हवा और साफ पानी कब मिलेगा? जब दिल्ली का हर मतदाता पर्यावरण के लिए मतदान करेगा, तभी राजनीति की दिशा बदलेगी और राजधानी की हवा वास्तव में साफ हो सकेगी।

लेखक: डॉ. रघुराज प्रताप सिंह (पीपल मैन ऑफ इंडिया के नाम से विख्यात पर्यावरणविद)

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