बांदा : अवधूत महाराज की हठ साधना से छोटा सा गांव बना सिमौनी धाम
सिमौनी धाम स्वामी अवधूत महाराज की जन्म स्थली है, उन्होंने इसी गांव के बगल से बह रही गडरा नदी में खड़े होकर धूप व बारिश के बीच घोर तपस्या कर..
सिमौनी धाम स्वामी अवधूत महाराज की जन्म स्थली है, उन्होंने इसी गांव के बगल से बह रही गडरा नदी में खड़े होकर धूप व बारिश के बीच घोर तपस्या कर सिद्धि प्राप्त की थी, वे शुरू से ही हठी स्वभाव के रहे, इसी हठ ने उन्हें उनकी घोर साधना के संकल्प को पूरा कराया और उनकी हठ साधना के कारण ही छोटा सा गांव सिमौनी, सिमौनी धाम के नाम से समूचे देश में विख्यात हो गया।बबेरू तहसील मुख्यालय से 13 किमी. दूर ग्राम सिमौनी जो आज आस्था का केंद्र बन चुका है।
यह भी पढ़ें - भगवान श्री राम की तपोभूमि में शिव-पार्वती का स्वरुप बना भिक्षा मांग रहा बचपन
वर्ष 1923 में पं. रामनाथ के घर एक बेटे का जन्म हुआ। जिसका नाम बलराम रखा है। वही बालक आगे चलकर स्वामी अवधूत महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। स्वामी जी ने प्रारंभिक स्तर की शिक्षा ग्रहण करने के बाद हठ साधना के पूर्व राजनीति के क्षेत्र में उतरकर वर्ष 1955 में ग्राम प्रधानी के चुनाव में भाग्य आजमाया। पराजय के बाद घर छोड़कर वैराग्य धारण कर रात्रि में चित्रकूट स्थित ब्रह्मलीन परशुराम स्वामी जी के आश्रम में जाकर वस्त्र त्याग कर संत बनने की दीक्षा ली।
कुछ दिन रुकने के बाद गुरु आश्रम से खड़ाऊ व कमंडल लेकर चले गए। वृंदावन में भी कुछ दिनों तक साधना किया। वहां से पुनः आश्रम लौटे। अति प्राचीन साधना स्थली सिमौनी जोकि देव पुरुष श्याम मौनी के नाम से प्रख्यात हुआ। कुछ दूर से निकले गडरा नाला में भीषण ठंड में जल सूर्योदय के पूर्व के समय तक गले तक घुस कर शरीर को तपाते व गर्मियों तपती धूप में बालू में पड़े रहकर शारीरिक वासनाओं को जला डाला।
इसके पश्चात 1966 में गौरक्षा आंदोलन में संतों के ऊपर गोली चलने के दौरान वहां भी योद्धा की तरह डटे रहे और जेल भी गए। वर्ष 1967 में स्वामी जी को हनुमान जी ने स्वप्न में आदेश दिया कि भंडारा करो तभी से मौनी बाबा की समाधि स्थल पर प्रथम भंडारा छोटे रूप में शुरू किया गया। इसके बाद स्वामी जी ने उज्जैन के क्षिप्रा नदी के किनारे आश्रम बनाकर तपस्या की। यहां पांच वर्ष गुजारे। दिल्ली के घड़ौली में अवधूत आश्रम बनाकर भक्तों सहित रहकर तप साधना में लीन हो गए। हर वर्ष 15 से 17 दिसंबर तक मेला व भंडारे का आयोजन होता है। जिसमें लाखें की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं और बाबा का आशीर्वाद प्राप्त कर भंडारे में प्रसाद ग्रहण करते हैं।
यह भी पढ़ें - ब्रिटिश कम्पनी चित्रकूट में लगाएगी खमीर प्लांट, मिलेगा 5000 लोगों को रोजगार
महाप्रसाद की पंगत
आठ दशक पहले अवधूत महाराज द्वारा शुरू किया गया भंडारा हर साल बृहद रूप धारण करता जा रहा है।जहां साधु संतों के अलावा लाखों की तादाद में आसपास के गांव के लोग प्रसाद ग्रहण करने पहुंचते हैं।महाप्रसाद की पंगत में भाईचारे का सद्भाव देखते ही बनता है। इस महाप्रसाद में धर्म की दीवार भी बाधक नहीं बनती ,आसपास मुस्लिम बहुल गांव की बस्ती आबाद है और यहां के लोग भी भंडारे में अपना योगदान देते हैं।
51 वर्षों से चल रहा अखंड संकीर्तन
हनुमान जी के परम उपासक बलराम अवधूत महाराज द्वारा जहां सिमौनी धाम में हर साल विशाल भंडारा कराया जाता है। वही वर्ष 1969 में अखंड राम नाम संकीर्तन की शुरुआत कराई जो लगातार आज भी जारी है।