बुन्देलखण्ड समेत पूरे उत्तर भारत में दीवाली पर इसी विशेष पटचित्र की होती है पूजा

दीपोत्सव के त्यौहार पर जिस गजमहालक्ष्मी पट चित्र की पूजा अर्चना पूरे बुन्देलखण्ड समेत पूरे उत्तर भारत में की जाती है..

बुन्देलखण्ड समेत पूरे उत्तर भारत में दीवाली पर इसी विशेष पटचित्र की होती है पूजा

दीपोत्सव के त्यौहार पर जिस गजमहालक्ष्मी पट चित्र की पूजा अर्चना पूरे बुन्देलखण्ड समेत पूरे उत्तर भारत में की जाती है, उसका चलन बुन्देलखण्ड के झांसी मण्डल स्थित ललितपुर के दशावतार मंदिर से शुरु हुआ। यह शायद ही कोई जानता हो कि बुन्देलखण्ड ही वह धरा है जहां से इस पटचित्र का चलन शुरु हुआ। इसका प्रमाण दशावतार मंदिर के स्तंभ पर उत्कीर्ण गजमहालक्ष्मी का चित्र है। इस पर शोध करते हुए इतिहासविद् ने इसका प्रमाण भी दिया है।
 
बुंदेलखण्ड में महालक्ष्मी की आराधना प्राचीन काल से ही प्रचलित है। उपनिषद, पौराणिक गाथाओं में देवी लक्ष्मी का वर्णन किया गया है। धन और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी की प्राचीन छवि गजलक्ष्मी के रूप में सर्वाधिक प्रचलित है।
  • बुन्देलखण्ड : दशावतार मंदिर से शुरू हुआ गजमहालक्ष्मी पटचित्र का चलन
हमारे घरों में दीवाली पर पट के रूप में देवी लक्ष्मी की गजलक्ष्मी की पूजा की जाती है। जिसमें देवी लक्ष्मी कमल पुष्प के आसन पर विराजमान होती हैं और उनके दायें-बाऐं दो गज अपनी सूड़ में कलश लिये होते हैं। गज इन कलशों में भरे जल से देवी लक्ष्मी का जलाभिषेक कर रहे होते हैं। बुन्देलखण्ड समेत पूरे उत्तर भारत में इसका चलन बुन्देलखण्ड के ललितपुर स्थित दशावतार मंदिर से बताया जाता है। 
 
5वीं-6वीं सदी का निर्माण है दशावतार मंदिर
इतिहासकार डॉ. चित्रगुप्त अपने एक शोध के अंतर्गत बताते हैं कि बुन्देलखण्ड में प्राचीन गजलक्ष्मी की प्रतिमा पायी गयी है। यह प्रतिमा बुन्देलखण्ड की हृदयस्थली वीरांगना भूमि झांसी से करीब 100 किलोमीटर दूरी पर स्थित ललितपुर जिले के देवगढ़ के विश्व प्रसिद्ध दशावतार मंदिर के एक स्तंभ पर उत्कीर्ण है। दशावतार मंदिर को पुरातत्वविद् 5वीं-6वीं सदी का निर्माण मानते हैं।
भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों को यहां की भित्तियों में मूर्ति के रूप में उत्कीर्ण किया गया है। इन्ही मूर्तियों के  बीच एक स्तंभ पर देवी लक्ष्मी का गजलक्ष्मी स्वरूप भी उत्कीर्ण है, जो मंदिर निर्माण के समय अर्थात 5वीं-6वीं सदी का है। संभवतः कालांतर में बुन्देलखण्ड इसी मूर्ति से प्रेरित होकर ही पूरे उत्तर भारत में इस शैली में देवी लक्ष्मी की मूर्तियों को उत्कीर्ण किया गया होगा। वह बताते हैं कि संभवतः पूरे देश में इसी पटचित्र की पूजा की जाती है।
 
झांसी समेत अन्य स्थलों पर भी हैं देवी महालक्ष्मी के मंदिर
डॉ. चित्रगुप्त बताते हैं कि मध्यकाल में रंग से चित्रकारी में इस स्वरूप को चित्रित किया जाने लगा। आधुनिक समय में जब प्रिंटिंग का समय आया तो गजलक्ष्मी के इस स्वरूप को छापा जाने लगा है। आज भी हम देवी के इस स्वरूप के चित्र की पूजा दीपावली के दिन करते हैं।
देवगढ़ में ही शांतिनाथ जैन मंदिर में 11 वीं सदी की एक प्राचीन मूर्ति भी मौजूद जो बहुत मनोहारी है। इसके अलावा देवी लक्ष्मी के मंदिर बुन्देलखण्ड के विभिन्न स्थलों पर मौजूद हैं। झांसी स्थित लक्ष्मी मंदिर मध्यकालीन है। इसके अलावा ओरछा, महोबा आदि स्थलों पर भी देवी लक्ष्मी के मंदिर हैं।
 
हिन्दुस्थान समाचार

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