पूरी दुनिया में भारत का मस्तक ऊंचा करने वाले बुंदेलखंड के मेजर ध्यानचंद के नाम अब खेल रत्न पुरस्कार

दद्दा ध्यानचंद्र। ये ऐसा नाम है जिसने बुंदेलखंड के झांसी से निकलकर पूरी दुनिया में भारत का मस्तक ऊंचा कर दिया। ध्यानचंद्र ने भारतीय हॉकी..

पूरी दुनिया में भारत का मस्तक ऊंचा करने वाले बुंदेलखंड के मेजर ध्यानचंद के नाम अब खेल रत्न पुरस्कार
मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand)

मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand)

मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand)

दद्दा ध्यानचंद्र। ये ऐसा नाम है जिसने बुंदेलखंड के झांसी से निकलकर पूरी दुनिया में भारत का मस्तक ऊंचा कर दिया। ध्यानचंद्र ने भारतीय हॉकी को विश्व विजेता बनाकर हिटलर को भी झुका दिया था। पूरे देश को उन पर नाज है। बुंदेलखंड के लिए तो वे एक अवतार जैसे हैं। अब केंद्र सरकार ने खेल रत्न पुरस्कार का उनके नाम पर कर दिया है।

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अब इसे मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार के नाम से जाना जाएगा। इससे पहले यह अवॉर्ड पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम हुआ करता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट के जरिए इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि मुझे पूरे भारत के नागरिकों से खेल रत्न पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद के नाम पर रखने के लिए कई अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं। उनकी भावना का सम्मान करते हुए, खेल रत्न पुरस्कार को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कहा जाएगा।

मेजर ध्यानचंद सिंह का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। चौदह साल की उम्र में उन्होंने पहली बार हॉकी स्टिक हाथ में पकड़ी थी। सोलह वर्ष की आयु में वे सेना की पंजाब रेजीमेंट में शामिल हो गए और शीघ्र ही उन्हें अच्छे हॉकी खिलाड़ियों का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ, जिसके फलस्वरूप ध्यानचंद के करियर को उचित दिशा मिलने लगी। सेना से संबंधित होने के कारण ध्यानचंद को मेजर ध्यानचंद के नाम से पहचान मिलने लगी।

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1922 और 1926 के बीच, मेजर ध्यानचंद केवल पंजाब रेजिमेंट और आर्मी हॉकी टूर्नामेंट में खेले। वह न्यूज़ीलैंड का दौरा करने वाली आर्मी हॉकी टीम का हिस्सा बने। ध्यानचंद के अद्भुत कौशल और उत्कृष्ट प्रदर्शन के कारण, भारतीय सेना हॉकी टीम एक मैच हारकर और अठारह हॉकी मैच जीतकर भारत लौट आई। भारत लौटने के बाद, ध्यानचंद को सेना में लांस नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया।

मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand)

भारतीय हॉकी महासंघ के गठन के बाद, इसके सदस्यों ने वर्ष 1928 में एम्स्टर्डम में होने वाले ओलंपिक खेलों में अच्छे खिलाड़ियों की एक टीम भेजने की पूरी कोशिश की। इसीलिए उन्होंने वर्ष 1925 में एक अंतर-राज्य हॉकी चौम्पियनशिप शुरू की। जिसमें पांच राज्यों (संयुक्त प्रांत, बंगाल, राजपूताना, पंजाब, मध्य प्रांत) की टीमों ने भाग लिया। ध्यानचंद को आर्मी हॉकी टीम से यूनाइटेड प्रोविंस टीम में भी चुना गया था।

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मेजर ध्यान श्चंदश् सिंह पहली बार सेना के बाहर हॉकी मैच का हिस्सा बन रहे थे। यहीं से उनके अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत हुई। उन्होंने लगभग हर मैच में सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी का खिताब अपने नाम किया। अपने अनोखे और अद्भुत खेल के कारण उन्होंने लगातार तीन ओलंपिक खेलों, एम्स्टर्डम ओलंपिक 1928, लॉस एंजिल्स 1932, बर्लिन ओलंपिक 1936 (कप्तानी) में टीम के लिए तीन स्वर्ण पदक जीते।

ध्यानचंद ने ओलंपिक खेलों में 101 और अंतर्राष्ट्रीय खेलों में 300 गोल किए, एक ऐसा रिकॉर्ड जिसे आज तक कोई नहीं तोड़ सका है। एम्स्टर्डम हॉकी ओलंपिक मैच में 28 गोल किए गए थे, जिनमें से ग्यारह गोल अकेले ध्यानचंद ने किए थे। हॉकी के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित सेंटर-फॉरवर्ड खिलाड़ी ध्यानचंद ने वर्ष 1948 में 42 वर्ष की आयु तक हॉकी खेलने के बाद हॉकी से संन्यास ले लिया।

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मेजर ध्यानचंद सिंह को वर्ष 1956 में भारत के तीसरे सर्वाेच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। मेजर ध्यानचंद का साल 1979 में कैंसर जैसी लंबी बीमारी से जूझने के बाद निधन हो गया था। उनकी मृत्यु के बाद, उनके जीवन को सम्मान देने के लिए भारत की राजधानी दिल्ली में उनके नाम पर एक हॉकी स्टेडियम का उद्घाटन किया गया। इसके अलावा भारतीय डाक सेवा ने ध्यानचंद के नाम से डाक टिकट भी चलाए।

मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand)

जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने भी ध्यानचंद के खेल से प्रभावित होकर उन्हें जर्मन सेना में एक उच्च अधिकारी बनाने की पेशकश की, लेकिन ध्यानचंद ने अपनी विनम्रता और विनम्र व्यवहार दिखाते हुए इस पद से इनकार कर दिया। मेजर ध्यानचंद ने अपने प्रशंसकों के लिए अपनी आत्मकथा गोल में अपनी जीवनी और महत्वपूर्ण घटनाओं को शामिल किया है। हॉकी में करियर बनाने वाले युवाओं के लिए उनका जीवन और खेल दोनों एक मिसाल हैं।  झांसी मे उनकी समाधि स्थल और स्टैचू बना है।

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