धान में कंडुआ रोग बहुत ही घातक है : कृषि वैज्ञानिक
धान की फसल में कंडुआ रोग बेहद खतरनाक है यह रोग मौसम में सुगन्धित धान की प्रजातियों में फैलने का ज्यादा खतरा होता है इस रोग से धान के उत्पादन पर..

धान की फसल में कंडुआ रोग बेहद खतरनाक है। यह रोग मौसम में सुगन्धित धान की प्रजातियों में फैलने का ज्यादा खतरा होता है। इस रोग से धान के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। किसान इस रोग से बचाव के लिए समय पर दवा का छिड़काव करें तो कम होगा।
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यह बात कृषि विश्वविद्यालय बांदा के कृषि वैज्ञानिकों की टीम में शामिल प्रो. जीएस पवांर, डॉ. दिनेश शाह, डॉ. अनिकेत कोल्हापुरे, डॉ. धर्मेन्द्र कुमार तथा डॉ. विवेक सिंह ने कही। उन्होंने कहा कि बुन्देलखण्ड के कुछ जिलों में धान की खेती बहुतायत रूप से की जा रही है। बांदा जिले के नरैनी, अतर्रा, बिसण्डा, बबेरू, कमासिन तथा बड़ोखर खुर्द विकासखण्ड के कई ग्रामों में धान का अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों की खेती हो रही है। इसमें मुख्य रूप से सुगन्धित धान 1121तथा 1118 हैं। इन प्रजातियों में अभाषीय (फाल्स स्मट) रोग आने की काफी सम्भावनाएं हैं।
उन्होंने बताया कि यह रोग अस्टीलेजीनोइडिया नामक वायरस कवक द्वारा उत्पन्न होता है। पहले रोग का प्रकोप कम होता था तथा फसल को हानि नहीं होती थी। लेकिन इधर कुछ वर्षों से इस रोग का प्रकोप बढ़ रहा है। इस रोग के प्रमुख लक्षण में फूल आने की अवस्था के पश्चात् दूधिया अवस्था में दिखाई देते हैं।
धान के आकार बड़े हो जाते हैं। दाने पीले से संतरे रंग के और बाद में जैतूनी हरे रंग के गोलाकार दाने के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। रोगग्रस्त दाने अनियमित और बड़े आकार के हो जाते हैं।
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बचाव के लिए क्या करें
प्रारम्भ में रोग के लक्षण दिखाई देने पर रोगग्रस्त बालियों को सावधानी पूर्वक नष्ट कर देना चाहिए। इस रोग की रोकथाम के लिए ब्लाइटोक्स-40 (कॉपर आक्सीक्लोराईड) 1.25 किलोग्राम मात्रा का 500 से 600 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
छिड़काव 50 प्रतिशत बालियां आने पर करें तथा 10 दिन के अन्तराल पर 2 से 3 छिड़काव करें। कृषक भाई फसल में विभिन्न बीमारियों हेतु कृषि विश्वविद्यालय बांदा के वैज्ञानिक से सम्पर्क बात कर सकते हैं।
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