बुन्देलखण्ड में तीन दिवसीय कजली मेले का आगाज साेमवार काे
बुन्देलखण्ड में सैकड़ों साल पुरानी परम्परा का गांव-गांव निर्वहन होने से यह पता चलता है कि आल्हा-ऊदल की वीरता आज भी लोगों के दिलों में समाई हुई है।
हमीरपुर। बुन्देलखण्ड में सैकड़ों साल पुरानी परम्परा का गांव-गांव निर्वहन होने से यह पता चलता है कि आल्हा-ऊदल की वीरता आज भी लोगों के दिलों में समाई हुई है। जोश भरने वाली वीरता की गाथा सुनकर युवा, वृद्ध समेत सभी लोगों की भुजायें फड़क उठती है। रक्षाबंधन के अगले दिन इन्हीं दोनों की वीरता से सम्बन्ध रखने वाला कजली मेला मनाये जाने के लिये तैयारियां पूरी कर ली गयी है। सोमवार को राखी बांधने के साथ ही तीन दिवसीय कजली मेले का आगाज होगा।
आल्हा गायक दिनेश कुमार के मुताबिक सैकड़ों साल पहले रक्षाबंधन के दिन राजा पृथ्वीराज चौहान ने महोबा में हमला कर दिया था। उनकी सेना ने रानी मल्हना के डोले लूट लिये थे तब वीर भूमि के लोगों ने इस त्यौहार को रद्द कर दिया था। इस ऐतिहासिक घटना के बाद आल्हा-ऊदल ने पृथ्वीराज चौहान की सेना से मोर्चा लेकर लूटे गये रानी मल्हना के डोले वापस लाये थे। इसीलिये उस दिन रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया गया था। भीषण संग्राम में पृथ्वीराज चौहान के बेटे सूरज सिंह की मौत हुयी थी। लूटे गये कजली से भरे डोले वापस मिलने के बाद महोबा के कीरत सागर में रानी मल्हना ने रक्षाबंधन के अगले दिन कजलियों का विसर्जन कर रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया था। इस दिन जलेबी घर-घर खाने की परम्परा भी है। बहनें भाईयों के हाथों में रक्षा सूत्र बांधती है। कजली लेकर महिलायें सावन गीत व कजली गीतों के साथ तालाबों में विसर्जन करती है।
आल्हा गायक दिनेश ने बताया कि बुन्देलखण्ड में रक्षाबंधन व कजली महोत्सव के दौरान यदि आल्हा न सुनाई पड़े तो सावन, मनभावन नहीं लगता है। लोग महोबा के दो महान वीर आल्हा-ऊदल की वीरता की गाथा बड़े ही उमंग से सुनते हैं और बुन्देलखण्ड की वीरता पर गर्व महसूस भी करते हैं। इस तरह आल्हा-ऊदल की वीरता आज भी यहां के लोगों के दिलों में बसी है। रविवार को पूरे देश में रक्षाबंधन की धूम मची हुई है लेकिन बुन्देलखण्ड के महोबा में यह पर्व आज नहीं मनाया जा रहा है। ऐतिहासिक परम्परा का निर्वहन करते हुये इस वीर भूमि में सोमवार को रक्षाबंधन मनाने के साथ ही तीन दिवसीय कजली मेले का आगाज होगा। हमीरपुर नगर के रमेड़ी मुहाल के अलावा ग्रामीण इलाकों में कजली मेले की धूम मचेगी।
राजा परमाल के दरबारी कवि थे आल्ह खंड के रचयिता
आल्हा गायक दिनेश कुमार ने बताया कि जिस खण्ड काव्य को सुनकर लोगों की भुजायें फड़क उठती है उसकी रचना करने वाले महान कवि जगनिक थे जो शूरवीर सेनापति व मंत्री भी थे। वह आगरा या फतेहपुर के नहीं बल्कि महोबा के ही रहने वाले थे। आजकल के आल्हा गायक आल्ह खण्ड को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत करते हैं, जिससे लोगों को सही जानकारी नहीं मिल पाती है। उदाहरण के तौर पर आल्ह खण्ड के रचयिता महाकवि जगनिक को आगरा या फतेहपुर का निवासी बताया जता है जबकि वास्तविकता यह है कि जगनिक महोबा के ही रहने वाले थे। वे राजा परमाल के दरबारी कवि थे।
आल्हा-ऊदल उन्हें मामा कहते थे। मूलरूप से कवि जगनिक आल्हा-ऊदल के ननिहाल के रहने वाले थे। आल्हा गायक ने बताया कि आल्ह खण्ड सैकड़ों सालों से शोध का विषय बना हुआ है। जगनिक के नाम और ग्राम पर भ्रांति बनी है। लोगों ने जगन, जागन, जगनायक आदि नामों से भी कवि को प्रस्तुत किया है। शोधकर्ता ने भले ही अलग-अलग नाम दिये हो मगर पृथ्वीराज रायसो, परमाल रायसो, वीर विलास, बालभट्ट विलास में कई बार जगनिक का नाम आया है। जगनिक ग्राम घटहरी छतरपुर मध्यप्रदेश के निवासी थे जो महोबा के एक मुहल्ले में रहते थे। यह मुहल्ला भी जगनिक के नाम से प्रसिद्ध रहा है।
हिन्दुस्थान समाचार