चित्रकूट के लकड़ी के खिलौने
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हममें से कितने लोगों ने चित्रकूट में बने हुए लकड़ी के खिलौनों से खेला है। वो रंग-बिरंगी फिरंगी तो सभी को याद ही होगी। कभी सीधी तो कभी उल्टी करके अपनी नोक के सहारे फुर्र से नाचती फिरंगी बरबस ही सबकी नजरों का केन्द्र होती थी। बच्चों के खिलौने तो बनते ही थे पर बड़ों के लिए भी तमाम गृहस्थी व अन्य उपयोगी सामान यहाँ के कुशल शिल्पी अपने हाथों से बनाते थे। आज भी चित्रकूट का यह काष्ठ शिल्प उद्योग भलीभांति चल रहा है पर चाइनीज सामानों से मिल रहा जबरदस्त कम्पटीशन इसकी रीढ़ तोड़ने पर आमादा है।
चित्रकूट के ही सीतापुर क्षेत्र में रहने वाले संजय सिंह एक कुशल कारीगर हैं। वे घर पर ही लकड़ी के खिलौनों का निर्माण करते हैं। संजय बताते हैं कि वन विभाग साल में 2 बार शिल्पी कार्ड पर लकड़ी देता है। सवा पाँच सौ रूपये में वन विभाग से खरीदी गई 1 क्विंटल लकड़ी घर लाते-लाते तकरीबन 800 रूपये की पड़ जाती है। फिर घर में काॅमर्शियल बिजली कनेक्शन होने के कारण ठंड में 2 किलो वाॅट तथा गर्मी में 3 किलो वाॅट के हिसाब से बिजली बिल का ढाई हजार से 3 हजार रूपये तक अदा करना पड़ता है। खिलौनों के निर्माण में आई लागत व बिक्री के बाद उन्हें प्रति खिलौना लगभग 2 से 3 रूपये का मुनाफा होता है। हालांकि यह कम जरूर है पर यदि इसकी बिक्री बढ़ जाये तो यही कला उन्हें फायदा दे सकती है।
संजय सिंह बताते हैं कि लकड़ी का सारा सामान कौरैया की लकड़ी से बनाया जाता है, इसकी विशेषता यह होती है कि यह मुलायम रहती है, जिससे निर्माण के दौरान मशीनों को कोई नुकसान नहीं होता। परन्तु इसका एक दुर्गुण यह है कि यह घुन लगने के कारण जल्दी खराब भी हो जाती है। इस लकड़ी से बच्चों के खेलने के लिए चकला-बेलन, किचेन सेट, लट्टू, फिरंगी, गाड़ियाँ, डमरू इत्यादि खिलौनों का निर्माण बहुतायत में होता है। बाहर से आने वाले पर्यटक इन उत्पादों को बेहद पसन्द करते हैं।
यहाँ के अधिकांश कारीगरों का कहना है कि यदि सरकार का साथ मिल जाये तो यह उद्योग और भी फलफूल सकता है। कभी इस क्षेत्र में लकड़ी उद्योग का बड़ा नाम हुआ करता था पर सरकारी उदासीनता व बढ़ते कम्पटीशन के चलते हालात मुश्किल भरे हैं। किसी प्रकार से वे अपने परिवार का भरण-पोषण कर पा रहे हैं। सरकार को चाहिए कि जिस प्रकार वे गरीब, मजदूर व बेसहारा लोगों के लिए तरह-तरह के अभियान चलाकर आधुनिक भारत के निर्माण का सपना दिखा रहे हैं। उसी प्रकार इस लकड़ी उद्योग को सरकारी मदद कर इसमें लगे सैकड़ों लोगों को सहारा देने का काम करे।
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