ऑस्कर की दौड़ में पहुंचा बुन्देलखण्ड का अखबार ख़बर लहरिया
चित्रकूट की महिलाओं के बुंदेली बोली में शुरू किए गए अखबार खबर लहरिया पर आधारित डॉक्यूमेंट्री ‘राइटिंग विद फायर’ ने बेस्ट डॉक्यूमेंट्री की..
चित्रकूट की महिलाओं के बुंदेली बोली में शुरू किए गए अखबार खबर लहरिया पर आधारित डॉक्यूमेंट्री ‘राइटिंग विद फायर’ ने बेस्ट डॉक्यूमेंट्री की श्रेणी में भारत की ओर से 94वें एकेडमी अवॉर्डिस में अपनी जगह बना ली है।
दुनिया के प्रतिष्ठित अवॉर्ड में से एक एकेडमी अवॉर्ड्स के इस साल के नॉमिनेशन का एलान हो गया है। डॉक्यूमेंट्री की श्रेणी में भारत की ओर से ‘राइटिंग विद फायर’ ने इस लिस्ट में अपनी जगह बना कर सभी को हैरान कर दिया है। थॉमस और सुष्मित घोष द्वारा निर्देशित ‘राइटिंग विद फायर’ दलित महिलाओं द्वारा संचालित भारत के एकमात्र समाचार पत्र खबर लहरिया के उदय का वर्णन करती है।
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‘राइटिंग विद फायर’ मुख्य रिपोर्टर मीरा के नेतृत्व वाले दलित महिलाओं के महत्वाकांक्षी समूह की कहानी को दर्शाता है जो प्रासंगिक बने रहने के लिए प्रिंट से डिजिटल माध्यम पर स्विच करती हैं। खबर लहरिया को सन् 2009 के यूनेस्को साक्षरता पुरस्कार के लिये भी चुना गया था। यह पत्र दलित ग्रामीण महिलाओं द्वारा निरन्तर नामक अशासकीय संस्था के प्रोत्साहन से निकाला गया था जो अब इसी नाम से पोर्टल बन गया है।
इस अखबार को इलाके की बेहद गरीब, आदिवासी और कम-पढ़ी लिखी महिलाओं की मदद से निकाला गया था। संपादन और समाचार का पूरा काम महिलाएं करती थीं। ग्रामीण महिलाओं के इस अखबार में काम करने के लिए कम से कम आठवीं कक्षा पास होना जरूरी था, लेकिन नवसाक्षर भी जुड़े।इस अखबार और अब पोर्टल में सभी तरह की खबरें होती हैं लेकिन पंचायत, महिला सशक्तीकरण, ग्रामीण विकास की खबरों को ज्यादा महत्व दिया जाता है। समाचार स्थानीय बुंदेली बोली में और बड़े अक्षरों में छापे जाते थे, ताकि नवसाक्षर महिलाएं आसानी से पढ़ सकें। राजनीतिशास्त्र से मास्टर डिग्री ले चुकीं मीरा ने कहा कि संवाददाता के रूप में गांव की गरीब महिलाओं के जुड़ने का उनके परिवार व समाज के लोग ही विरोध करते थे लेकिन अब यह कम हो गया है।
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खबर लहरिया की संस्थापक सदस्य मीरा जाटव और नाजनीन बताती हैं कि जब वे बुंदेली में महिलाओं से पूछती हैं कि ‘का बहिनी कसत हौ, का होई गा हव’, का चहती हो... तो उनसे आत्मीयता और सम्मान मिलता है। 20 साल पहले जब ये अखबार शुरू किया गया था जब दबी, कुचली, शोषित महिलाएं ही खबरें लातीं, अखबार छपवातीं और फिर घर घर बेचतीं। बिना पढ़े लिखे लोगों को पढ़कर भी सुनाती थीं। शुरू में जिले में ढाई हजार प्रतियां घरों और दुकानों पर जाकर बेचती थीं। दो रुपये के मूल्य वाले साप्ताहिक अखबार में बेचने वाली महिला को 50 पैसे कमीशन मिलता था। अपनी भाषा में अखबार में छपी बातें सुनकर लोग खुलकर अपनी समस्याएं भी बताने लगे। अखबार प्रयागराज के भार्गव प्रेस में छपवाया जाता था। हालांकि अखबार को विज्ञापन नहीं मिलता था।
- ऐसे होती फंडिंग
महिलाओं की इस संस्था को फंडिंग करने के लिए निरंतर संस्था लगातार काम कर रही है। हर संघर्ष में कार्यरत महिलाओं के साथ कंधा मिलाकर सहयोग करती है। संस्था की संस्थापक सदस्य मीरा जाटव ने बताया कि पहले टाटा ग्रुप उन्हें फंडिंग करता था। अब इस समय मुंबई का दसरा फाउंडेशन फंडिंग करता है। कई बार फिल्मी कलाकारों आमिर खान, शाहरुख खान, जॉन इब्राहिम, विद्या बालन ने संस्था के कर्मचारियों का हौसला बढ़ाया। कौन बनेगा करोड़पति के सेट पर भी संस्था की कर्मचारी पहुंच चुकी हैं।
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