हमीरपुर में सैकड़ों साल पुराने ऐतिहासिक कंस मेला में कोरोना का लगा ग्रहण
जनपद के मौदहा कस्बे में 402 साल पुराने ऐतिहासिक कंस मेले में अब कोरोना का ग्रहण लग गया है, प्रशासन के निर्देश पर फिलहाल इस बार कंस मेला रद्द कर दिया गया है..
- कोरोना संक्रमण के चलते प्रशासन ने एतिहासिक परम्परा का आयोजन भी रद्द
- पहले दिन शाम को सजता था कंस दरबार, अगले दिन निकलते थे कंस का विमान
जनपद के मौदहा कस्बे में 402 साल पुराने ऐतिहासिक कंस मेले में अब कोरोना का ग्रहण लग गया है। प्रशासन के निर्देश पर फिलहाल इस बार कंस मेला रद्द कर दिया गया है। तीन दिवसीय कंस मेला के दौरान अति प्राचीन तालाब में श्रीकृष्ण लीला का मंचन करते हुये नागनाथन का दृश्य देखने के लिये भारी भीड़ भी जुटती थी। लेकिन अबकी मर्तबा इस परम्परा के टूटने से लोगों में मायूसी देखी जा रही है।
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मौदहा कस्बे में कंस मेले की शुरुआत करीब चार सौ दो साल पहले अनंत चौदस के दिन हुयी थी। मेले के आयोजन से जुड़े बुजुर्ग रमाशंकर गुप्ता ने बताया कि कंस मेले का आयोजन गल्ला व्यापार संघ एवं आढ़त संघ के पदाधिकारी करते रहे है। इस बार तीन दिवसीय ऐतिहासिक कंस मेले का आगाज 1 सितम्बर से होना था लेकिन कोरोना वायरस महामारी के संक्रमण के चलते ये आयोजन रद्द कर दिया गया है।
इस ऐतिहासिक मेले के पहले दिन शाम गुड़ाही बाजार में कंस दरबार सजाया जाता है। इसके बाद 1 सितम्बर को कंस मेला की शोभायात्रा पूरे कस्बे में निकाली जाने की परम्परा रही है, जिसमें शोभायात्रा में कंस का विमान, श्रीकृष्ण व अन्य देवी देवताओं की अनोखी झांकियां शामिल रहती थी। शोभायात्रा कस्बे के एतिहासिक मीरा तालाब पहुंचकर वहां कंस सहित अन्य दैत्यों का वध का मंचन होता था।
बीच तालाब में श्रीकृष्ण नागनाथन की लीला भी अनोखे अंदाज में की जाती थी जिसे देखने के लिये लाखों की भीड़ उमड़ती थी। इसके अलावा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ ही विशाल दंगल की धूम मचती थी। कंस मेला के दौरान ओरी तालाब में 51 घंटे का अखण्ड कबीरी भजन के कार्यक्रम भी कराये जाते थे। लेकिन इस बार ये एतिहासिक आयोजन और मेला कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गया है।
मौदहा कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक मनोज कुमार शुक्ला ने मंगलवार को बताया कि कोविड-19 के कारण ये आयोजन नहीं होंगे। उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण के कारण क्षेत्र में किसी भी तरह के कार्यक्रम व मेल के आयोजन की अनुमति नहीं है। ऐतिहासिक कंस मेले को लेकर औपचारिकता निभाने वाले कार्यक्रम भी नहीं होंगे।
कंस, पूतना व बकासुर की सजती थी झांकियां
ऐतिहासिक कार्यक्रम का नेतृत्व करने वाले रमाशंकर गुप्ता का कहना है कि मौदहा कस्बे में तीन दिवसीय कंस मेला के पहले दिन शाम को गुड़ाही बाजार में कंस का दरबार सजाया जाता था। इस दरबार में ही बकासुर व पूतना सहित अन्य झांकियां भी सजायी जाती है। इन झांकियों को देखने के लिये कस्बे के लोगों की भीड़ उमड़ती थी। अगले दिन सभी झांकियों को शामिल कर मीरा तालाब ले जाया जाता था। जहां कंस सहित सभी दैत्यों का वध की लीला का मंचन होता है।
आम लोगों की मदद से चलती है ऐतिहासिक परम्परा
कस्बे के रमाशंकर गुप्ता ने बताया कि यहां का कंस मेले का इतिहास चार सौ साल पुराना है जिसे स्थानीय लोगों की मदद से हर साल सम्पन्न कराया जाता रहा। इतने बड़े आयोजन के लिये नगर पालिका या अन्य सरकारी संस्थायें कोई मदद नहीं करती। नगर पालिका सिर्फ कस्बे में स्वागत गेट बनवाती है। कंस विमान, देवी देवताओं की झांकियां और विभिन्न लीलाओं के मंचन का खर्च गल्ला व्यापार व आढ़ती संघ के लोग ही करते रहे हैं। पच्चीस प्रतिशत मदद स्थानीय लोग करते हैं।
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बुन्देलखण्ड क्षेत्र में विख्यात है ऐतिहासिक कंस मेला
शिवसेना के प्रदेश उपप्रमुख महंत रतन ब्रह्मचारी ने बताया कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र के कोने-कोने में यहां का एतिहासिक कंस मेला मशहूर है। इसे देखने के लिये हमीरपुर के अलावा महोबा, बांदा, चित्रकूट, छतरपुर (मध्यप्रदेश), टीकमगढ़, झांसी, जालौन और फतेहपुर से बड़ी संख्या में लोग आते है। बताते हैं कि तीस साल पहले तीन दिवसीय कंस मेला के दौरान नौटंकी का आयोजन होता था मगर अब इनकी जगह कई अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने ले ली है।
कंस मेला में हुआ था बवाल, हटाये गये थे डीएम, एसपी
वर्ष 2018 में कंस मेला में बवाल हो गया था। बवाल के कारण कंस लीला और अन्य कार्यक्रम नहीं हुये थे। शोभायात्रा निकालने में दो पक्षों में झड़पे होने पर लाठी चार्ज और आंसु गैस के गोले दागे गये थे। सांसद समेत तमाम नेताओं को भी कार्यक्रम से भागना पड़ा था। पथराव में तत्कालीन ए.एसपी घायल हुये थे। सरकार ने भी डीएम आरपी पाण्डेय, एसपी और ए.एसपी सहित कई अफसर हटाये थे। पिछले साल प्रशासन ने एतिहासिक परम्परा के आयोजन सम्पन्न कराया था।
हिन्दुस्थान समाचार