बांदा के महुई व घुरौ्ड़ा गांव में कैसे बढ़ा जलस्तर ?
अगर प्रशासन चाहे ले तो हर मुश्किल काम आसान हो जाता है, प्रशासन की पहल पर ही बांदा जनपद के 470 ग्राम पंचायतो में एक साथ कुआं तालाब में पानी लाएंगे, बांदा को खुशहाल बनाएंगे...
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अगर प्रशासन चाहे ले तो हर मुश्किल काम आसान हो जाता है, प्रशासन की पहल पर ही बांदा जनपद के 470 ग्राम पंचायतो में एक साथ कुआं तालाब में पानी लाएंगे, बांदा को खुशहाल बनाएंगे, नारे का उद्घोष करते हुए प्रशासनिक अमला और ग्रामीणों ने जल संरक्षण के लिए जो काम किया । उसमें अब सकारात्मक परिवर्तन साफ दिखाई देने लगा है। इसी अभियान का नतीजा है जनपद के महुई और घरौंडा गांव में जल स्तर बढ़ना।
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जनपद के विकास खंड तिंदवारी अंतर्गत ग्राम पंचायत महुई की आबादी लगभग दो हजार है,दो वर्ष पहले ग्राम पंचायत के लोग पेयजल एवं भू जल की समस्या से त्रस्त थे , तालाब सूख गए थे फरवरी से जून तक हैंडपंपों से पानी भी नहीं निकलता था, ग्रामीणों से लगातार हैंडपंप के शिकायत मिलती थी। इसी दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी हीरालाल ने जनपद के 470 ग्राम पंचायतों में एक साथ कुआं तालाब जियाओ अभियान की शुरुआत की।पुरानी परंपरागत और देहाती शैली को अपनाते हुए ग्रामीणों को जल संरक्षण के अभियान से जोड़ा गया, इतना ही नहीं कुआं और तालाबों के प्रति लोगों को जल स्रोतों की आस्था से जोड़ा गया।जल चैपाल, अलाव पर चैपाल, दीपदान और खिचड़ी भोज का आयोजन किया गया।
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इसके बाद श्रमदान से तालाबों में खंती का निर्माण शुरू किया गया। इतना ही नहीं जल संरक्षण हेतु रूफ वॉटर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर बनाया गया। पुराने सूखे कुओं की सफाई कराई गई। वर्षा जल को इनसे जोड़ा गया ,सूखे कुआं और हैंडपंप के पास खतियां खोदी गई।हैंड पंप के पास सोखते गड्ढे भी बनाए गए। किसानों के खेतों में श्रमदान एवं मनरेगा से कन्वर्जेंस करते हुए मेड़बंदी की गई ।तालाब और खेत तालाब भी खोदे गए ।काले हिरणों को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए गड्ढे चरही के निर्माण कराए गए।
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परंपरागत शैली के अपनाने से जिले के इन दोनों गांवों में जलस्तर बढ़ने लगा, जो कुएं गर्मी में सूख जाते थे उनमें इस साल लबालब पानी भरा रहा।तालाबों में भी पानी रहा, साथ ही हैंड पंप भी निरंतर पानी देते रहे ,जिससे इस क्षेत्र की पेयजल समस्या से भी लोगों को राहत मिली।ग्रामीणों के अनुसार वाटर लेवल में सकारात्मक सुधार हुआ है, हैंडपंप के रिबोर होने की शिकायतें कम हो गई है।लगभग 20 फीट जलस्तर बढ़ गया है।
बांदा के जलग्राम जखनी के सामाजिक कार्यकर्ता उमाशंकर पांडेय बताते हैं ‘हमने बस ऐसी व्यवस्था की है, जिससे खेत का पानी खेत में ही रहे. इसके लिए खेत पर मेड़ बंदी कर दी गई है. इस तरह बारिश का पानी या सिंचाई का पानी खेत पीते हैं और बचा हुए पानी को नाली या दूसरे निकासी तरीकों से पास बनाए गए तालाब में डाल दिया जाता है. इस तरह भू-जल स्तर भी बढ़ रहा है और पानी की बरबादी से भी बचाव हो रहा है।
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वही घुरौंडा गांव के गजेन्द्र बताते हैं कि समाजसेवी उमाशंकर पांडेय के कहने पर उनके बेटों ने खेतों पर मेड़ बंदी करवाई तो पहले उन्हें लगा था कि उनका 60-70 हजार रुपए का नुकसान हो गया. लेकिन पानी रुकने से फायदा हुआ और अब दो फसल ले रहे हैं। जिसे अभी तक नुकसान समझा जा रहा था, वो फायदे का सौदा बन गया, साथ ही इससे वॉटर लेबल भी बढ़ गया है।
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