History & Documentary of Chitrakoot | चित्रकूट जनपद का इतिहास | All Tourist, historical Places

चित्रकूट उत्तर प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित है और चित्रकूट धाम मण्डल का पूर्वी जिला है। चित्रकूट जनपद का इतिहास...


चित्रकूट उत्तर प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित है और चित्रकूट धाम मण्डल का पूर्वी जिला है।

इतिहास

चित्रकूट जनपद का मुख्यालय कर्वी है। पूर्व में कर्वी व मऊ तहसीलें बाँदा जनपद में सम्मिलित थीं। पर 6 मई 1997 को प्रदेश सरकार ने इन तहसीलों को बाँदा जनपद से अलग कर नया जनपद छत्रपति शाहू जी महाराज नगर के नाम से बनाया। जिसे बाद में 4 सितम्बर 1998 को ‘चित्रकूट’ नाम में परिवर्तित कर दिया गया। जिस प्रकार तीर्थराज प्रयाग (इलाहाबाद) का नाम सभी तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ है, उसी प्रकार चित्रकूट तीर्थ के दर्शन बिना पुण्य फल प्राप्त नहीं हो सकता। चारों ओर से विन्ध्य पर्वत श्रंखलाओं और वनों से घिरा चित्रकूट एक पौराणिक नगर है। आदिकाल से यह भगवान राम की तपोस्थली के रूप में विख्यात है।

महर्षि वाल्मीकि की यह जन्मस्थली है। कामदगिरि पर्वत की 5 किमी परिक्रमा करके श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण करने की कामना करते हैं। प्रतिदिन रामघाट में मन्दाकिनी नदी की होने वाली आरती का दृष्य बड़ा ही मनोरम होता है। भगवान राम और भरत के मिलन के चिन्ह यहाँ स्पष्ट देखे जा सकते हैं। मराठों द्वारा बनवाया गया गणेष बाग खजुराहो शैली के मन्दिर निर्माण कला की याद दिलाता है, इसी कारण स्थानीय निवासी इसे मिनी खजुराहो भी कहते हैं।

भारत के तीर्थों में चित्रकूट को इसीलिए भी गौरव प्राप्त है क्योंकि रामभक्त हनुमान की सहायता से गोस्वामी तुलसीदास को भगवान राम के दर्षन प्राप्त हुए थे। त्रेतायुग का यह तीर्थ अपने गर्भ में संजोए स्वर्णिम प्राकृतिक दृष्यावलियों के कारण ही चित्रकूट के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहाँ की रमणीयता और पवित्रता के कारण ही महर्षि वाल्मीकि और मुनि भारद्वाज ने भगवान श्रीराम को अपना वनवास काल यहीं बिताने की सलाह दी थी।

दीपावली के दिन हजारों श्रद्धालु मंदाकिनी नदी में दीपदान करते हैं। वनवास की अवधि समाप्त होने पर भगवान श्रीराम का अयोध्या में जो राज्याभिषेक हुआ था उसकी याद में चित्रकूट के लोग घी के दिये जलाकर मंदाकिनी में प्रवाहित करते हैं और लाखों दीपों की ज्योति से मंदाकिनी का प्रवाह प्रकाशित हो उठता है।

चित्रकूट ही एक ऐसा तीर्थ रहा जिसे मुगल शासक औरंगजेब तुड़वा नहीं पाया। कहते हैं कि सन् 1683 ई. में जब औरंगजेब ने अपनी सेना को चित्रकूट के मन्दिरों को तोड़ने का आदेष जारी किया तो उसकी सेना बीमार पड़ गई। बाद में महंत बालकदास की शरण में जाने पर उसकी सेना के जवान ठीक हो गये।

औरंगजेब ने उसके बाद मन्दाकिनी तट पर बालाजी मन्दिर का निर्माण कराया और पूजा अर्चना में धन इत्यादि की व्यवस्था के लिए मन्दिर को 330 बीघा बगैर लगान की कृषि योग्य भूमि भी दान दी। ताम्रपत्र में टंकित औरंगजेब का यह फरमान आज भी मन्दिर में मौजूद है। देष का शायद यह पहला मन्दिर होगा जिसे मुगल शासक औरंगजेब ने बनवाया था।

ऐसा लगता है कि गोस्वामी तुलसीदास के समय तक यहाँ केवल ऋषि-मुनि या कुछ वन्य जातियाँ ही बसी थीं। तुलसी के बाद ही यहाँ मठों और मंदिरों का विकास हुआ। रामघाट के पास मंदाकिनी नदी पर पक्के घाटों का निर्माण व परिक्रमा पथ बनवाने में पन्ना नरेश अमान सिंह व हिंदूपत का काफी योगदान रहा। बाद में कई और रियासतें भी इस काम के लिए आगे आईं। सैकड़ों मठ-मंदिर व धर्मशालाएँ बनवाई गईं। यहाँ सदियों से प्रवाहित मंदाकिनी नदी का जल पवित्र तथा सभी पापों का नाश करने वाला कहा जाता है।

एक नजर

  • क्षेत्रफल 3216 वर्ग किमी
  • जनसंख्या 991730
  • पुरुष 527721
  • महिला 464009
  • ग्रामीण 90.29 प्रतिषत
  • शहरी 9.71 प्रतिषत
  • लिंगानुपात 879 (प्रति 1000 पुरुषों पर)
  • साक्षरता 64.27 प्रतिषत
  • जनसंख्या घनत्व 308 व्यक्ति/वर्गकिमी

प्रमुख दर्षनीय स्थल

  • गणेषबाग (मिनी खजुराहो)
  • रामघाट
  • कामदगिरि पर्वत
  • जानकी कुण्ड
  • सती अनुसूया अत्रि आश्रम
  • गुप्त गोदावरी
  • हनुमान धारा
  • स्फटिक षिला
  • भरतकूप

आवागमन

वायुमार्ग चित्रकूट का सबसे निकटतम एयरपोर्ट इलाहाबाद 131 किमी दूर है। जबकि खजुराहो एयरपोर्ट यहाँ से लगभग 185 किमी दूर है। यहाँ पर हवाईपट्टी जरूर बनी है परन्तु केवल निजी अथवा वीआईपी विमानों के लिए। लखनऊ एयरपोर्ट अपेक्षाकृत दूर अवष्य है परन्तु यहाँ से भी चित्रकूट पहुंचने के अन्य साधन मिल जाते हैं।
रेलमार्ग कर्वी यहाँ का प्रमुख रेलवे स्टेषन है। इलाहाबाद, जबलपुर, दिल्ली, झांसी, लखनऊ, हावड़ा, वाराणसी, मुम्बई, ग्वालियर, आगरा व मथुरा जैसे शहरों से चित्रकूट का सीधा सम्पर्क है।

सड़कमार्ग चित्रकूट के लिए इलाहाबाद, बाँदा, झांसी, कानपुर, लखनऊ, सतना, छतरपुर, मैहर, फैजाबाद, दिल्ली आदि शहरों से सीधी बस सेवा है।


कामदगिरि पर्वत लाखों श्रद्धालुओं की मनोकामना को पूर्ण करता हुआ यह पर्वत अनेक आष्चर्यों से भरा हुआ है। किंवदन्ती है कि इस पर्वत के अन्दर एक विषालकाय मन्दिर है, जहाँ सिद्ध तपस्वी ध्यानरत हैं। चार मुख्यमन्दिरों समेत पर्वत की परिक्रमा करने वाले की मनोकामना जरूर पूरी होती है, ऐसा विष्वास है।
गुप्त गोदावरी यहाँ दो गुफायें हैं, एक चैड़ी व ऊंची है तो दूसरी लम्बी, संकरी व जल से भरी हुई। आज भी पर्यटक सबसे ज्यादा इसी स्थान को देखने आते हैं। यहाँ भगवान राम ने दरबार भी लगाया था।

हनुमान धारा पर्वत में काफी ऊंचाई पर स्थित हनुमान जी की मूर्ति पर जलधारा का गिरना इस बात को साबित करता है कि लंकादहन के बाद हनुमान जी की देह में जलन को दूर करने हेतु भगवान राम ने जलधारा निकालकर उनकी देह में गिराई।

गणेष बाग यहाँ खजुराहो शैली की कामकला का विस्तृत चित्रांकन है। पेषवा बाजीराव के शासनकाल में निर्मित इस मन्दिर में काम, योग तथा भक्ति का अद्भुत सामंजस्य दिखता है।

प्रमुख व्यक्तित्व

  • नाना जी देषमुख

चित्रकूट और नाना जी एक दूसरे के पूरक हैं, अपने जीवन के 60 वर्ष व्यतीत करने के बाद नाना जी ने चित्रकूट में दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना कर अपना शेष जीवन यहाँ के विकास के लिए लगा दिया। जिले के लगभग पाँच सौ गांवों के आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन पर उन्होंने अपना ध्यान केन्द्रित किया। उन्हीं का सतत् प्रयास था कि आज लगभग 100 गांव मुकद्मेंबाजी से पूर्णतः मुक्त हैं। उनके द्वारा स्थापित देष का पहला ग्रामीण ‘ग्रामोदय विष्वविद्यालय’ लगातार इस क्षेत्र के लोगों को बेहतर षिक्षा उपलब्ध करा रहा है। जब तक सांस रही, नाना जी त्याग और तप की प्रतिमूर्ति बने रहे।

  • रणछोड़ दास जी महाराज

चित्रकूट को आध्यात्मिक रूप से बल देने का कार्य सद्गुरु श्री रणछोड़ दास जी महाराज ने किया है। उनके अनुयायियों की संख्या लाखों करोड़ों में है। कोई उन्हें सन्त मानता है तो कोई भगवान। मानवता की सेवा के लिए उन्होंने अपने प्रिय षिष्य उद्योगपति अरविन्द भाई मफतलाल के सहयोग से सन् 1968 में श्री सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट की स्थापना की, जो आज बेसहारा व गरीबों के स्वास्थ्य और षिक्षा के लिए बेहतर प्रयास कर रहा है। दूर-दूर से निःषुल्क इलाज के लिए आने वाले गरीबों को यहाँ से बेहतर स्वास्थ्य लाभ मिलता है।

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