कोरोना की मार से शिक्षा जगत है परेशान, बुन्देलखण्ड अनएडेड स्कूल एसोसिएशन ने लगायी गुहार

बुन्देलखण्ड अनएडेड स्कूल एसोसिएशन ने इस मांग को देते हुए सरकार से प्रभावी हस्तक्षेप की मांग की है।

कोरोना की मार से शिक्षा जगत है परेशान, बुन्देलखण्ड अनएडेड स्कूल एसोसिएशन ने लगायी गुहार

कोरोना से निपटना सरकार की पहली प्राथमिकता थी, कोरोना ने जब अपनी भयानक स्थिति का आंकलन सभी को कराया तो मन में भय आना स्वाभाविक था। लिहाजा सरकार ने सब कुछ बंद करके सिर्फ कोरोना पर फोकस किया। इसीलिए भारतीय रेल के इतिहास में कभी न रूकने वाली रेलों के पहिये तक थम गये। व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद हुए तो बड़ी बड़ी फैक्ट्रियां भी बंद करनी पड़ी। उत्पादन लगभग शून्य हो गया। यहां तक कि स्कूल काॅलेज तक बंद कर दिये गये। जद्दोजहद जारी थी कोरोना से लड़ने की। आखिर 130 करोड़ देशवासियों की जिन्दगी का सवाल था।

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पर धीरे-धीरे स्थिति तो संभली है, या कहें कि अब कोरोना के साथ जीवन जीने की कला सिखाई जा रही है। सरकारें समझ रही हैं कि कोरोना के कारण जो अर्थव्यवस्था में नुकसान हुआ है उसे ज्यादा समय तक नहीं रोका जा सकता, इसीलिए धीरे-धीरे सब कुछ अनलाॅक की ओर बढ़ रहा है।

पर देश की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के केन्द्र में आने वाले स्कूल काॅलेज की ओर शायद सरकार का उतना ध्यान नहीं है, जितनी आशा थी। स्कूल काॅलेज के लिए कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश न दिये जाने से स्कूल प्रबन्धन चिंतित है तो वहीं अभिभावक भी। कुछ ऐसा ही दर्द लेकर बुन्देलखण्ड अनएडेड स्कूल एसोसिएशन का प्रतिनिधिमण्डल चित्रकूट धाम मण्डल के कमिश्नर गौरव दयाल की चैखट पर गया। 
एसोसिएशन के अध्यक्ष नवल किशोर चैधरी कहते हैं, जो सक्षम हैं वो ही सबसे ज्यादा फीस न लिए जाने की गुहार लगा रहे हैं। माना कि लाॅकडाउन में तमाम लोगों के उद्योग धंधे प्रभावित हुए पर उन लोगों का क्या जिन्हें बैठे-बैठे निर्बाध रूप से वेतन मिलता रहा। उन लोगों की ओर से जब कोरोना का रोना रोया जाता है, तो आश्चर्य लगता है।

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स्कूल प्रबन्धन भी परेशान है, क्योंकि उसे पर्याप्त फीस नहीं मिल रही है। हालांकि लोगों ने इस बात को समझा कि उनके फीस न देने से उन मध्यमवर्गीय अध्यापकों के ऊपर गहरा असर पड़ा है, जिनके घरों के चूल्हे उनकी फीस दिये जाने से जलते हैं। एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष विनोद यादव भी यही बातें कह रहे हैं।

तमाम अभिभावकों ने इस बात को समझा और बाद में सही पर वो आॅनलाइन क्लासेज कराने को तैयार हुए। चूंकि बच्चे के कीमती साल का सवाल था, लिहाजा ये साल बर्बाद न जाये, कैसे भी हो, उनका बच्चा पढ़ाई करे और अपने सहपाठियों के साथ ही वो अगले वर्ष नई क्लास में प्रमोट किया जाये। हालांकि इस बात में भी कोई दोराय नहीं कि तमाम स्कूल और अभिभावक अभी भी आॅनलाइन क्लास में एडजस्ट नहीं कर पाये हैं।

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एसोसिएशन के सचिव मनीष गुप्ता कहते हैं, सरकार बताये कि जो फीस जमा नहीं कर रहे और न ही इस सम्बन्ध में उन्होंने किसी भी प्रकार का कोई सम्पर्क स्कूल प्रबन्धन के साथ किया, उन लोगों के साथ क्या किया जाये?

बुन्देलखण्ड अनएडेड स्कूल एसोसिएशन ने इस मांग को देते हुए सरकार से प्रभावी हस्तक्षेप की मांग की है। कम से कम स्कूलों को ये अधिकार दिये जायें कि वो अपने स्कूल के प्रबन्धन के लिए उचित निर्णय ले सकें। अन्यथा आय अत्यधिक कम एवं खर्चा यथावत होने से अनेक स्कूलों के सामने बंदी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

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