कोरोना संक्रमित के स्वस्थ होने से सुकून मिलता है ! 

कोरोना संक्रमित के स्वस्थ होने से सुकून मिलता है ! 

@ सौरभ द्विवेदी

कोरोना संक्रमण का मामला गांव से बड़ा भयावह नजर आने लगा है। जैसे ही खबर मिलती है कि कोई गांव मे आया व्यक्ति संक्रमित है , फिर अनिश्चित कालीन अंधेरा छा जाता है। वहीं जब कोई कोरोना संक्रमित व्यक्ति ठीक होता है और संक्रमित व्यक्तियों की संख्या घटती नजर आती है, वैसे ही आम मनुष्य को सुकून क्यों महसूस होता है ? 

इससे पहले भी आपके आसपास और रिश्ते में व गांवदारी मे कोई ना कोई व्यक्ति बीमार होता था। लेकिन कोरोना संक्रमित के ठीक होने से आपको राहत क्यों ? यह अंतर्मन से समझने योग्य है।

इसमे जीवन का दर्शन छिपा है। मानवता का दर्शन छिपा है। बस स्वयं से आपको महसूस करना है। आखिर किसलिए किसी के ठीक होने से आपको राहत मिलती है ? हाल ही में जनपद चित्रकूट में पांच व्यक्तियों के स्वस्थ होने की खबर आई तो बड़ी राहत मिली लेकिन यह राहत आखिर कब तक टिकती ? संभवतः भूख से तृप्त होने के बाद पुनः भूख का लग आने जैसा है। दोपहर की राहत भरी सूचना शाम तक पुनः आई सूचना से मन भयभीत हुआ। अब पता नहीं कब और कैसे व कितनी देर कौन संक्रमित हो सकता है। 

यह ज्यादा सावधानी बरतने का दौर है। सरकार द्वारा बताए गए नियम का पालन करना आवश्यक है। डब्लूएचो द्वारा बताई गई सावधानियां अपनाई जाएं। आयुष मंत्रालय द्वारा बताए गए पेय पदार्थ लिए जाएं। जैसे कि अच्छी कंपनी का गिलोई व तुलसी अर्क एक साथ लेने से इम्युनिटी स्ट्रांग रहती है, परंतु यह विशेषज्ञ से राय लेकर ही लेना शुरू करें। 

कुल मिलाकर महसूस यह करना है कि आज की तरह हम हमेशा को हो जाएं। चूंकि आज हमें दूसरे की चिंता है, कोई और संक्रमित हुआ तो हमारे संक्रमित होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए जैसे ही केस कम होते हैं तो आत्मबल आ जाता है और जैसे ही केस बढ़े वैसे ही आत्मबल कमजोर पड़ जाता है। 

जिदंगी घड़ी की पेंडुलम की भांति हिल - डुल रही है। जैसे एक पेंडुलम लेफ्ट - राइट होता है वैसे ही जिंदगी भी लेफ्ट - राइट हो रही है। बल्कि मध्य मे स्थाई रूप से ठहर जाना ही सोशल डिस्टेंस है और अब यही कारगर उपाय है। साथ ही होना बहुत कुछ चाहिए था लेकिन होता नहीं दिख रहा। इस देश और समाज को अवसाद में पहुंचने से पहले हर किसी को एक - दूसरे को संभालना होगा अन्यथा मध्यवर्ग से लेकर गरीब तपके का युवा व बुजुर्ग आदि की जिंदगी बुरी तरह से सांसत मे आ जाएगी। बहरहाल अभी सबको अपनी जिंदगी बचाने की पहल जारी रखनी है। 

अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करना होगा। वह व्यक्ति को सीधे आर्थिक लाभ मिले जिससे उसका मनोबल उच्च रहे। यह दौर अफसरों की मानवता के दर्शन का वक्त है। जब बहुत सी जिंदगियों को बचाने का दारोमदार उन पर है। हर तरह से हर विभाग के अफसर मददगार हो जाएं तो भी देश बचाया जा सकता है अन्यथा एक गहन अंधकार के सिवाय कुछ और नजर नही आता। 

समाज को आर्थिक - सामाजिक भागेदारी निभानी होगी। जिससे जीवन ऊर्जा सब मे भरी रहे और हम इस जंग को जीत कर परचम लहरा सकें।

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